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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

दस सिर सहमत नहीं रहे थे |

 लंका-नगरी बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |
बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||
सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-
बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |
ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ  भी  ना  कर पाया था |
 असंतुष्ट  हो  वचन  सहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
[2.jpg]
दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |
क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |
अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब  अकुलाया था |
पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |
बाएं से चौथे सिर ने नम-आँखों, दर्द  छुपाया था-
भाई   ने   तो   पैर   गहे   थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |
दूजे  ने  रौशनी  गंवाई  एक आँख  बाली  से घिर |
तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |
मन्दोदरी से चौथा चाहे  बातचीत हरदम आखिर |
पर  सबके  अरमान  दहे  थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
File:Sita Mughal ca1600.jpg[bhrun-hatya_417408824.jpg]
शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |
दो पैरों  के, बीस  हाथ  के,  कर्म - कुकर्म  सदा भाये |
मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |
नया  दशानन  पैरों  की  दस  जोड़ी  पर सरपट धाये |
दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -
सब सिर के अरमान लहे थे |
दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/c/ce/Mohammed_Ajmal_Kasab.jpg Train inferno: Burning oil tankers after a tanker train caught fire following derailment near Chanmana village between
Aluabari and Mangurjaan railway stations in Kishanganj district of Bihar on Wednesday.

एक दीप अँधेरे में ...


एक दीप अँधेरे में ...
बरसों से मंदिर के कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 
रोशनी की तलाश में भटककर खुद से लड़ रहा है 
कितने दिन बीत गए ...
अपने रूप को , आईने में नही देख पाया 
थोड़ा सा तेल 
वहीं पुरानी बाती 
उसी कपाट पर 
बंद , पडा अपनी दशा से परेशान
फिर भी धीमें -धीमें  जल रहा है 
उस उजले दिन की इंतजार में 
बुझता और जलता 
नया सबेरा ढूंढ़ रहा है 
बरसों से मंदिर की कपाट में 
एक दीप अँधेरे में जल रहा है 

 लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " 

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

दशानन

दशानन
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लंकाधिपति रावण के,
दस सर थे ,पर,
पेट एक ही था
झुग्गीवाली गरीबी के रावण के  भी,
दस सर होते हैं,
मगर पेट भी दस होते है
इसीलिये,
एक राज करता था,
दूसरे रोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

दशरथ का वनवास

दशरथ का वनवास
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हे राम तुम्हारे नाम किया ,मेने निज राज पाट सारा
तुमने पत्नी के कहने पर ,वनवास मिझे क्यों दे डाला
  त्रेता में पत्नी कहा मान, मैंने तुमको वन भेजा था
पर पुत्र वियोग कष्टप्रद था,मेरा फट गया कलेजा था
मै क्या करता मजबूरी थी,रघुकुल का मान बचाना था
जो था गलती से कभी दिया,मुझको वो वचन निभाना था
ये सच है मैंने तुम्हारा,सीता का ह्रदय दुखाया था
पर ये करके फिर मै जिन्दा,क्या दो दिन भी रह पाया था
उस युग का बदला इस युग में,ये न्याय तुम्हारा है न्यारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
उस युग में तो सरवन कुमार,जैसे भी बेटे होते थे
करवाने तीरथ मात पिता ,को निजकंधों पर ढोते थे
थे पुरु से पुत्र ययाति के,दे दिया पिता को निज यौवन
तुम भी तो मेरा कहा मान,चौदह वर्षों भटके वन वन
माँ,पिता देवता तुल्य समझ ,पूजा करती थी संतानें
उनकी आज्ञा के पालन ही,कर्तव्य सदा जिनने जाने
उस युग का तो था चलन यही ,वह तो था त्रेता युग प्यारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
तब वंचित मैंने तुम्हे किया,था राज पाट ,सिंहासन से
पर इस युग में ,मैंने तुमको ,दे दिया सभी कुछ निज मन से
ना मेरी तीन रानियाँ थी,ना ही थे चार चार बेटे
मेरी धन दौलत के वारिस ,तुम ही थे एक मात्र बेटे
तुम थे स्वच्छंद नहीं मैंने ,तुम पर कोई प्रतिबन्ध किया
तो फिर बतलाओ किस कारण,तुमने मुझको वनवास दिया
मेरी ही किस्मत थी खोटी,ये  दोष नहीं है तुम्हारा
हे राम तुम्हारे नाम किया ,मैंने निज राज पाट सारा
         मदन मोहन बहेती 'घोटू'



सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

रावण के दस सर

रावण के दस सर
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रावण ,वीर था,और विद्वान था
उसे शास्त्र और शास्त्र  दोनों का ज्ञान था
और उसके दस सर थे
और ये ही मुसीबत की जड़ थे
 एक सर बीच में था,
और एक तरफ चार सर थे ,
और दूसरी तरफ पांच सर थे
इससे उसके दिमाग का बेलेंस बिगड़ गया था,
और वो सीताहरण जैसी हरकत कर गया था
काश उसके नौ या ग्यारह सर होते
और दिमाग का बेलेंस बराबर हो जाता
तो आज उसकी भी तारीफ होती
और वो पूजा जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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