एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

मैंने वो दिन भी देखे हैं

जब जीना पल पल मुश्किल था,
मैंने वो दिन भी देखे हैं 

मैं आपातकालीन सेज पर,
पड़ा हुआ था रुग्णालय में 
मेरी सांसे सहम रही थी ,
पास खड़ी मृत्यु के भय में
लेकिन जीने की उत्कंठा ,
मुझको दिला रही थी शक्ति 
आत्मीय जन और मित्रों की 
कई दुआएं,पूजा, भक्ति 
मुझे छीन कर मृत्यु मुख से 
फिर से वापस ले आई थी 
और चिकित्सक की मेहनत भी
 धीरे-धीरे रंग लाई थी 
नियति की लीला के आगे ,
सबने ही घुटने टेके हैं 
जब जीना पल पल मुश्किल था,
 मैंने वो दिन भी देखे हैं 

उठ ना पाता था बिस्तर से,
 तन इतना कमजोर हुआ था 
आशा और निराशाओं का 
मन में ऐसा दौर हुआ था 
मन कहता था हिम्मत रख, जी,
 बुरा वक्त है कट जाएगा 
तेरे सब सत्कर्मों का फल 
तुझ में नवजीवन लायेगा
मेरी इच्छा शक्ति रह रह,
मुझको दिला रही थी ढाढस 
नई जिंदगी शुरू हो गई ,
पहले के जैसी जस की तस
दौर दूसरा यह जीवन का ,
शुरू हुआ खुशियां लेके है 
जब जीना पल पल मुश्किल था 
मैंने वो दिन भी देखे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

1 टिप्पणी:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-