एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 30 जून 2019

इच्छाओं का अंत नहीं है

महत्वकांक्षाये मत पालो ,हर दिन बढ़ती ही जाती है
बहुत हृदय को दुःख देती है ,पूर्ण नहीं जब हो पाती है
सुख दुःख आते ऋतुओं जैसे  ,हर ऋतू सदा बसंत नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी किसी से करो न आशा ,चाहे अपने हो कि पराये
निकले पंख ,सीख कर उड़ना ,नीड छोड़ ,बच्चे उड़ जाये
कोई किसी का साथ निभाता ,है जीवन पर्यन्त  नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम चाहे कितना भी धो लो,किन्तु सफ़ेद न होता काजल
श्वान पूंछ सीधी  ना होती ,रखो नली में लाख दबाकर
सुन्दर पुष्प दिखे  कागज के ,आती मगर सुगन्ध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी एक को ,दो को दस को ,तो तुम मुर्ख बना सकते हो
ऊंचे ऊंचे  सपन दिखा कर ,तुम बहला फुसला  सकते हो
किन्तु तुम्हारा बड़बोलापन ,करता कोई पसंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
बात बात पर पंगा मत लो ,कहीं कोई दंगा ना करदे
पोल तुम्हारी हाथ आगयी ,तो  तुमको  नंगा ना करदे
मिलजुल रहो ,प्रेम से बढ़ कर ,कहीं कोई आनंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम्हारी एक एक हरकत को ,नज़र हरेक की देख रही है
समझे ना तुम्हारी मंशा ,दुनिया इतनी   मुर्ख नहीं है
जो भी बोलो ,तौल मोल कर,गप्पों पर  प्रतिबंध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '          

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-