एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 14 जनवरी 2017

 तुम क्यों होते हो परेशान 

आई जीवन की अगर शाम 
तुम क्यों होते हो  परेशान 
ये रात अमां की ना काली ,भैया ये तो दीवाली है 
तुम इसे मुहर्रम मत समझो,ये ईद सिवइयों वाली है 
तुमने उगता सूरज देखा ,तपती दोपहरिया भी देखी
यौवन के खिलते उपवन को ,महकाती कलियाँ भी देखी 
हंसती गाती और मुस्काती ,दीवानी परियां भी देखी 
कल कल करती नदियां देखी ,तूफानी  दरिया भी देखी 
कब रहा एक सा है मौसम 
खुशियां है कभी तो कभी गम 
सूखे पतझड़ के बाद सदा ,आती देखी हरियाली  है 
                                    ये ईद सिवइयों वाली है 
कितनी ही ठोकर खाकर तुम ,चलना सीखे,बढ़ना सीखे 
हर मोड़ और चौराहे पर  ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे 
जी जान जुटा कर लगे रहे ,अपना कर्तव्य  निभाने को 
दिनरात स्वयं को झोंक दिया, तुमने निज मंजिल पाने को
सच्चे मन और समर्पण से 
तुम लगे रहे तन मन धन से 
तुम्हारी त्याग तपस्या से ,घर में आयी खुशियाली है 
                                    ये ईद सिवइयों वाली है
अब दौर उमर का वो आया ,मिल पाया कुछ आराम तुम्हे 
निभ गयी सभी जिम्मेदारी  ,अब ना करना  है काम तुम्हे 
अब जी भर कर उपभोग करो ,तुमने जो करी  कमाई है 
खुद के खातिर भी जी लेने की ,ये घडी सुहानी आई  है 
क्या हुआ अगर तुम हुए वृद्ध 
अनुभव में हो सबसे समृद्ध 
लो पूर्ण मज़ा ,क्योंकि ये उमर ,अब तो बे फ़िक्री वाली है 
                                           ये ईद सिवइयों वाली है 
  मदनमोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-