एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

दीवानगी -तब भी और अब भी

           दीवानगी -तब भी और अब भी

गुलाबी गाल चिकने थे,नज़र जिन पर फिसलती थी,
        अब उनके गाल पर कुछ पड़ गए है,झुर्रियों के सल
इसलिए देखता जब हूँ ,नज़र उन पर टिकी रहती ,
        फिसल अब वो नहीं पाती ,अटक जाती है झुर्री  पर
गजब का हुस्न था उनका ,और जलवा भी निराला था,
        तरस जाते थे दरशन को,देख तबियत मचलती थी
हुई गजगामिनी है वो ,हिरण सी चाल थी जिनकी ,
       ठिठक कर लोग थमते थे ,ठुमक कर जब वो चलती थी
जवानी में गधी  पर भी ,सुना है नूर चढ़ता है,
        असल वो हुस्न ,जो ढाता ,बुढ़ापे में ,क़यामत  है
हम तब भी थे और अब भी है ,दीवाने उनके उतने ही,
      आज भी उनसे करते हम,तहेदिल से मोहब्बत  है
आज भी सज संवर कर वो,गिराती बिजलियाँ हम पर ,
      उमर के साथ ,चेहरे पर ,चढ़ा अनुभव का पानी है
जानती है ,किसे घायल ,करेंगे तीर नज़रों के ,
       उन्हें मालूम ,किस पर कब,कहाँ बिजली गिरानी है
उमर के संग बदल जाता, नज़रिया आदमी का है ,
       उमर  बढ़ती तो आपस में ,दिलों का प्यार है बढ़ता
बुढ़ापे में ,पति पत्नी,बहुत नज़दीक आ जाते ,
          समर्पित ,एक दूजे पर ,बढ़ा करती है निर्भरता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-