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गुरुवार, 19 जुलाई 2018

Re:

Kyaa baat hai,  Baheti ji.

Bechare nimboo ki vyatha, ati sunder shabdon mein likhi hai.

On Thu, 19 Jul 2018, 18:14 madan mohan Baheti, <baheti.mm@gmail.com> wrote:
बेचारे नीबू 

भले हमारी स्वर्णिम आभा ,भले हमारी मनहर खुशबू 
फिर भी बलि पर हम चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 
सारे लोग स्वाद के मारे ,हमें काटते और निचोड़ते 
बूँद बूँद सब रस  ले लेते ,हमें कहीं का नहीं छोड़ते 
सब्जी,दाल,सलाद  सभीका ,स्वाद बढ़ाने हम कटते है
सभी तरह की चाट बनालो ,स्वाद चटपटा हम करते है 
हमें निचोड़ शिकंजी बनती , गरमी में ठंडक  पाने को 
हमको काट अचार बनाते ,पूरे साल ,लोग खाने को 
बुरी नज़र से बचने को भी ,हमें काम में लाया जाता 
दरवाजों पर मिरची के संग ,हमको है लटकाया जाता 
टोने और टोटके में भी ,बढ़ चढ़ होता  काम हमारा 
नयी कार की पूजा में भी ,होता है  बलिदान हमारा 
कर्मकांड में बलि हमारी ,नज़रें झाड़ दिया करती है 
ढेरों दूध ,हमारे रस की ,बूंदे   फाड़ दिया करती  है 
चूरण और पचन पाचन में ,कई रोग की हम भेषज है 
छोटे है पर अति उपयोगी ,हम मोसम्बी के वंशज है 
हम भरपूर विटामिन सी से ,हर जिव्हा पर करते जादू 
फिर भी हम बलि पर चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
बेचारे नीबू 

भले हमारी स्वर्णिम आभा ,भले हमारी मनहर खुशबू 
फिर भी बलि पर हम चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 
सारे लोग स्वाद के मारे ,हमें काटते और निचोड़ते 
बूँद बूँद सब रस  ले लेते ,हमें कहीं का नहीं छोड़ते 
सब्जी,दाल,सलाद  सभीका ,स्वाद बढ़ाने हम कटते है
सभी तरह की चाट बनालो ,स्वाद चटपटा हम करते है 
हमें निचोड़ शिकंजी बनती , गरमी में ठंडक  पाने को 
हमको काट अचार बनाते ,पूरे साल ,लोग खाने को 
बुरी नज़र से बचने को भी ,हमें काम में लाया जाता 
दरवाजों पर मिरची के संग ,हमको है लटकाया जाता 
टोने और टोटके में भी ,बढ़ चढ़ होता  काम हमारा 
नयी कार की पूजा में भी ,होता है  बलिदान हमारा 
कर्मकांड में बलि हमारी ,नज़रें झाड़ दिया करती है 
ढेरों दूध ,हमारे रस की ,बूंदे   फाड़ दिया करती  है 
चूरण और पचन पाचन में ,कई रोग की हम भेषज है 
छोटे है पर अति उपयोगी ,हम मोसम्बी के वंशज है 
हम भरपूर विटामिन सी से ,हर जिव्हा पर करते जादू 
फिर भी हम बलि पर चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 14 जुलाई 2018

ये उत्तर प्रदेश है 

ये उत्तम है,सर्वोत्तम है ,इसकी बात विशेष है 
सबसे प्यारा,सबसे न्यारा ,ये उत्तर परदेश  है 
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है 
जन्मभूमि यह श्रीकृष्ण की ,यहीं पे जन्मे राम है 
मथुरा ,वृन्दावन काशी है और अयोध्या धाम है 
गंगा और गोमती बहती सरयू भी अविराम   है 
धर्म कर्म शिक्षा संस्कृती का ,यहीं हुआ उत्थान है 
दिया बुद्ध ने ,सारनाथ में ,यहीं ज्ञान सन्देश है 
सबसे प्यारा ,सबसे न्यारा ,ये उत्तर परदेश है 
ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश है 
शष्यश्यामला है ये धरती ,सभी तरफ हरियाली है 
है समृद्ध यहाँ के वासी ,सुख शांति, खुशहाली है 
खेत लहलहाते है फसलों से,फलों लदी हर डाली है 
रहनसहन और खानपान में ,इसकी बात निराली है 
प्रगति पथ पर बढ़ता जाता ,बदल रहा परिवेश है 
सबसे प्यारा सबसे न्यारा ये उत्तर परदेश  है 
ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश है 
बड़ी सुहानी सुबहे बनारस और अवध की शाम है 
 वृन्दावन  की गली गली में ,,राधे राधे   नाम है 
लखनऊ की मशहूर नज़ाकत और चिकन का काम है 
और यहीं पर  ताजमहल है ,जो भारत की शान है   
यहाँ बनारस की साड़ी है ,गंगा घाट विशेष है 
सबसे प्यारा सबसे न्यारा ,ये उत्तर परदेश  है 
ये मेरा देश है,उत्तरप्रदेश है 
गन्ने की खेती होती है ,गुड़ से मीठे लोग है 
मथुरा के पेड़े से लगता ,कान्हा जी का भोग है 
यहां आगरा के पेठे है और खुरजा की खुरचन है 
गरम जलेबी ,पूरी कचौड़ी सबका ही प्रिय भोजन  है
वाराणसी के ठंडाई और मघई पान विशेष है 
सबसे प्यारा ,सबसे न्यारा ,ये उत्तर परदेश है 
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है 
सभी समस्याओं का उत्तर देने में ये सक्षम है 
कहते है उत्तर प्रदेश हम ,पर प्रदेश ये उत्तम है 
यहाँ प्रयाग में गंगा जमुना सरस्वती का संगम है 
भाई भाई से मिल कर रहते ,यहाँ पे हिन्दू मुस्लिम है 
मिल कर मनती  ईद दिवाली ,भातृभाव सन्देश है
सबसे प्यारा सबसे न्यारा ये उत्तर परदेश है 
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है 
 हस्तशिल्प उद्योग यहाँ पर ,गाँव गाँव में विकसित है 
हर बच्चा ,अब कंप्यूटर में ,शिक्षित और प्रशिक्षित है 
सड़क रेल का जाल बिछा है ,वातावरण सुरक्षित है 
नए नए उद्योग यहाँ पर रोज हो रहे विकसित है 
आमंत्रण सरकार दे रही सुविधा कई विशेष है 
सबसे प्यारा ,सबसे न्यारा ,ये उत्तर परदेश है 
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 9 जुलाई 2018

मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

  मेरा घर संसार तुम्ही से 
खुशियां और त्योंहार तुम्ही से 
जो भी है सरकार  तुम्ही से 
सारा दारमदार  तुम्ही से 
मुझमे नवजीवन भरता है ,
मेरी सजनी प्यार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

चुटकी भर सिन्दूर मांग में ,
डाल फंसाया प्रेमजाल में 
कैद किया मुझको बिंदिया में,
और सजाया मुझे भाल में 
हाथों की हथकड़ी बना कर ,
मुझे चूड़ियों में है बाँधा 
या फिर पावों की बिछिया में,
रहा सिमिट मैं सीधासादा 
एड़ी से लेकर चोंटी तक ,
फैला कारागार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

नहीं मुताबिक़ अपने मन के ,
जी सकता मैं ,कभी चाह कर 
पका अधपका खाना पड़ता ,
मुश्किल से ,वो भी सराह कर 
गलती से ,कोई औरत की ,
तारीफ़ कर दी,खैर नहीं है 
'कोर्ट मार्शल 'हो जाने में ,
मेरा ,लगती देर नहीं है 
तुम्हारे डर आगे दबता ,
मन का सभी गुबार हमारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
 
तुम सजधज कर ,रूप बाण से ,
घायल करती मेरा तनमन 
मात्र इशारे पर ऊँगली के,
नाच करूं मैं कठपुतली बन 
जाने कैसा आकर्षण है 
तुम्हारी मदभरी नज़र में 
बोझा लदे हुए गदहे सा ,
भागा करता इधर उधर मैं 
तुम को खुश रख कर ही मिलता ,
प्यार भरा व्यवहार तुम्हारा 
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

निराले पिया 

ऐसे प्यारे निराले हमारे पिया 
मैंने पहली नज़र में है दिल दे दिया 
रात पहली मिलन की था उनने कहा ,
पूरे सपने तेरे सारे कर दूंगा  मैं 
चाँद सा मुख लिए आओ आगोश में ,
मांग तेरी सितारों से भर दूंगा मैं 
उनने वादा निभाने की कोशिश करी ,
मुझको साड़ी दी सलमा सितारों भरी 
पांच सितारा एक होटल में लेकर गए ,
'फाइवस्टार 'चॉकलेट दी केडबरी 
उनने दिल से निभाया जो वादा किया 
ऐसे प्यारे निराले हमारे पिया 
मैं सजूं ना सजू ,चाहे कैसी रहूँ 
हुस्न की मुझको कहते सदा मल्लिका 
ऐसे प्यारे डीयर मेरे इंजीनियर ,
बांधते मेरी तारीफ़ के पुल सदा 
उनको जैसा भी दूँ मैं पका कर खिला ,
खाते चटखारे ले प्रेम के साथ है 
उनका हर दिन ही वेलेंटाइन दिवस ,
और हनीमून वाली हरेक रात है 
ढूंढते ना कभी ,मुझमें वो खामियां 
बड़े प्यारे निराले हमारे पिया 

घोटू 
करारे नोट 

कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
कोई हमको पर्स में रखता नहीं ,गुल्लकों में बस सिमट कर रह गये 
था जमाना हमको जब पाता कोई ,जरिया बनते थे ख़ुशी और हर्ष का 
कल तलक  कितनी हमारी पूछ थी ,बन गए हम आज बोझा पर्स का 
छोटे  बटुवे में छुपा कर लड़कियां ,लिपटा अपने सीने से रखती हमे 
उँगलियों से सहला  कर गिनती हमें प्यार वाली निगाह  से तकती हमें 
घटा दी मंहगाई ने क्रयशक्तियाँ ,हुआ अवमुल्यन हम घट कर रह गए
कल तलक हम भी करारे नोट थे ,आजकल तो महज चिल्लर रह गए 
नेताओं ने दीवारों में चुन रखा ,वोट पाने का हम जरिया बन गए 
चुनावों में वोट हित  बांटा हमें ,जीत का ऐसा नज़रिया बन गए 
जाते जब इस हाथ से उस हाथ में ,काम में आ जाती है फुर्ती सदा 
चेहरे पर  झांई बिलकुल ना पड़ी ,लगे कहलाने हम काली सम्पदा 
चलन में थे किन्तु चल पाए नहीं ,लॉकरों में हम दुबक कर रह गए 
कल तलक हम भी करारे नोट थे आजकल तो महज चिल्लर रह गए 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पके हुए फल 

हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 
इन्तजार में लोग  खड़े है ,कब हम टपके ,कब वो पायें 
सबके ही मन में लालच है ,मधुर स्वाद का मज़ा उठायें 
देर टपकने की ही है देखो,हमको पाने सब झपटेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
ज्यादा देर रहे जो लटके ,पत्थर फेंक तोड़ देंगे  वो 
मीठा गूदा रस खा लेंगे ,गुठली वहीँ छोड़ देंगे  वो 
ज्यादा देर टिक गए तो फिर ,सबकी आँखों में खटकेंगे 
हम तो पके हुए से फल है ,कब तक डाली पर लटकेंगे 
गिरना ही अपनी नियति है ,आज नहीं तो कल टपकेंगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन की फड़फड़ाहट 

उन्मुक्त बचपन की चहचहाहट 
किशोरावस्था की कुलबुलाहट 
जवानी की सुगबुगाहट 
हुस्न की चमचमाहट 
मन में  प्यार की गरमाहट 
पत्नी के कोमल हाथों की थपथपाहट 
हनीमून की खिलखिलाहट 
प्यार और जिम्मेदारियों की  मिलावट 
गृहस्थी की गड़बड़ाहट 
पैसा कमाने की हड़बड़ाहट 
जीवन की गाडी की खड़खड़ाहट 
परेशानिया और छटपटाहट 
आने लगती है थकावट  
जब रूकती है व्यस्तता की फड़फड़ाहट  
आती है बुढ़ापे की फुसफुसाहट 
शिथिल तन की कुलबुलाहट 
नज़रों की धुंधलाहट 
गायब होती मौजमस्ती की गमगमाहट
मन में होती झनझनाहट 
अंकल कहे जाने पर चिड़चिड़ाहट 
स्वास्थ्य  में गिरावट 
हर काम में रुकावट 
ऐसे में भगवान के प्रति झुकावट   
पुरानी  यादों की गरमाहट 
और चेहरे पर मुस्कराहट 
दूर कर देती है बुढ़ापे की गड़बड़ाहट 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन की फड़फड़ाहट 

उन्मुक्त बचपन की चहचहाहट 
किशोरावस्था की कुलबुलाहट 
जवानी की सुगबुगाहट 
हुस्न की चमचमाहट 
मन में  प्यार की गरमाहट 
पत्नी के कोमल हाथों की थपथपाहट 
हनीमून की खिलखिलाहट 
प्यार और जिम्मेदारियों ली मिलावट 
गृहस्थी की गड़बड़ाहट 
पैसा कमाने की हड़बड़ाहट 
जीवन की गाडी की खड़खड़ाहट 
परेशानिया और छटपटाहट 
आने लगती है थकावट  
जब रूकती है व्यस्तता की फड़फड़ाहट  
आती है बुढ़ापे की फुसफुसाहट 
शिथिल तन की कुलबुलाहट 
नज़रों की धुंधलाहट 
गायब होती मौजमस्ती की गमगमाहट
मन में होती झनझनाहट 
अंकल कहे जाने पर चिड़चिड़ाहट 
स्वास्थ्य  में गिरावट 
हर काम में रुकावट 
ऐसे में भगवान के प्रति झुकावट   
पुरानी  यादों की गरमाहट 
और चेहरे पर मुस्कराहट 
दूर कर देती है बुढ़ापे की गड़बड़ाहट 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
फलती फूलती औरतें 

अहमियत औरतों की ,जिंदगी में ख़ास है 
मगर उनके दर्द का ,हमको नहीं अहसास है 
गुलबदन ,शादी के पहले होती नाज़ुक फूल है
काम जब करती नहीं तो बदन जाता फूल है  
काम ज्यादा अगर करती ,फूल जाती सांस है 
काम यदि कम करे तो मुंह फुला लेती सास है 
फुला देता उन्हें पति के प्यार का आहार है 
उनके बलबूते ही फलता फूलता परिवार है 
देती बच्चों को दुआएं ,उनकी हर एक सांस है 
अहमियत औरतों की ,जिंदगी में ख़ास है 

घोटू 

रविवार, 24 जून 2018

Donation

Your email have a Donation sum of six Million Euros, which was registered and

insured here in the ONU office in Your name. For more information regarding your Donation.Please contact: onuclaimsfoundations@gmail.com
onuesp@qq.com


Mfg
Kurt

शुक्रवार, 22 जून 2018

नेताजी से 

परेशानी बढ़ , गयी अब चौगुना है 
कर रहे हर शिकायत को अनसुना है 
वोट पाकर , नोट के बस फेर में हो ,
क्या इसी के वास्ते तुमको  चुना है 
दूध चट कर  हमें कह कर चाय है ,
पिलाते तुम सिर्फ  पानी  गुनगुना  है
मुंह हमारा बंद रहे इस वास्ते 
आश्वासन  देते  पकड़ा झुनझुना है 
रजाई की तपिश पाने के लिए ,
रुई जैसा आपने हमको धुना है 
चाह कर भी हम निकल पाते नहीं ,
इस तरह से जाल वादों का बुना है 
अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार कर ,
मन हमारा ,बहुत जल जल कर भुना है 
ज्यादा उड़ने वाले अक्सर अर्श से ,
फर्श पर गिर जाते ,देखा और सुना है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 17 जून 2018

मुझे याद रहेगी देर तलक 

वो तेरी सूरत  मुस्काती 
वो तेरी जुल्फें  लहराती 
वो चाल तेरी हिरण जैसी ,
वो तेरी कमरिया बल खाती 
       मुझे याद रहेगी  तेरी झलक 
     बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
वो महकाता चंदन सा बदन 
वो बहकाती चंचल चितवन 
तू रूप भरी ,रस की गागर ,
वो मचलाता तेरा यौवन 
       जो भी देखे वो जाए बहक 
       बड़ी देर तलक बड़ी दूर तलक 
मुस्कान तेरी वो मंद मंद 
रसभरे ओंठ ,गुलकंद कंद 
तेरी हर एक अदा कातिल ,
मेरे मन को आती पसंद ,
        मद भरे नयन ,अधखुले पलक 
        बड़ी देर तलक,बड़ी दूर तलक 
वो तेरे तन की दहक दहक 
वो तेरी खुशबू,महक महक 
खन खन करती वो तेरी हंसी,
वो तेरी बातें चहक चहक 
        तू जाम रूप का ,छलक छलक 
         बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 
तू मूरत  संगेमरमर की 
तू अनुपम कृति है ईश्वर की 
जैसे धरती पर उतरी हो ,
तू कोई अप्सरा अंबर की 
       तू सबसे जुदा ,तू सबसे अलग 
        बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

बावन पत्ते 

हम और तुम और बावन पत्ते 

जब तुम पीसो ,तब मै काटूँ 
जब तुम काटो ,तब मैं बांटू 
चौके,पंजे ,अट्ठे,सत्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

इक्के दुक्के कभी कभी हम 
तीन पांच करते आपस में 
तुम चौका, मैं छक्का मारूं,
बड़ा मज़ा आता है सच में 
ये क्या कम हम साथ साथ है 
और बिखरे, सात आठ नहीं है 
तुम मारो नहले पर दहला ,
फिर भी मन में गाँठ नहीं है 
तुम बेगम बन रहो ठाठ से ,
बादशाह मैं ,पर गुलाम हूँ 
तुम हो हुकुम ,ईंट मैं घर की ,
तुम चिड़िया मैं लालपान हूँ 
कभी जीतते,कभी हारते ,
हँसते हँसते  बावन हफ्ते 
हम और तुम और बावन पत्ते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 जून 2018

आजकल तो रह गए हम छाछ है 

जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें  मारता 
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा  संसार था 
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के 
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे 
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए 
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए 
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है 
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया 
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया 
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी 
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी 
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है 
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब  भी देती ,हृदय को आल्हाद है 
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना  साज है 
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम पीठ खुजाओ हमारी 

हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में 
 बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी  ,हम दोनों के  बंधन में 
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में  हाथ  पकड़ कर 
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर 
रह कर के व्यस्त हमेशा 
हम रहे कमाते  पैसा 
बस यूं ही उहापोह में  ,ये उमर बिता दी सारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी 
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो 
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो 
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर  रहे तने हम 
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम 
नाखून बढे  पैरों के 
काटे हम एक दूजे के 
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी 
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पुराने दिनों की यादें 

आते है याद वो दिन ,जब हम जवान थे 
कितने ही हुस्नवाले हम पे मेहरबान  थे 
हमारी शक्शियत का जलवा कमाल था
आती थी खिंची लड़कियां कुछ ऐसा हाल था 
लेकिन हम फंस के एक के चंगुल में रह गए 
शादी की ,अरमां दिल के आंसुओ में बह गए 
फंस करके गृहस्थी में, हवा सब निकल गयी 
चक्कर में कमाई के ,जवानी फिसल गयी
 होकर के रिटायर , हुए ,बूढ़े  जरूर  है 
चेहरे पे हमारे अभी भी ,बाकी नूर   है 
लेकिन हम हसीनो के  चहेते  नहीं  रहे 
आती है पास लड़कियां ,अंकल हमें कहे 
अब मामले में इश्क के ,कंगाल हो गए 
गोया पुराना ,बिका हुआ, माल हो गए 
एक बात दिल को हमारे,रह रह के सालती 
बुढ़ियायें भी तो हमको नहीं घास डालती 
हालांकि उनका भी तो है उजड़ा हुआ चमन 
मिल जाए जो आपस में तो कुछ गुल खिला दे हम 
लेकिन हमारी किस्मत ही कुछ रूठ गयी  है
हाथों से जवानी की पतंग ,छूट गयी  है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मोहब्बत का मज़ा -बुढ़ापे में 

न उनमे जोर होता है ,न हम में जोर होता है 
बुढ़ापे में,मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

गया मौसम जवानी का,यूं ही हम मन को बहलाते 
कभी वो हमको सहलाते,कभी हम उनको सहलाते 
लिपटने और चिपटने का ,ये ऐसा दौर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है   

टटोला करती है नज़रें ,जहां भी  हुस्न है  दिखता
करो कोशिश कितनी ही कहीं पर मन नहीं टिकता 
भटकता रहता दीवाना ,ये आदमखोर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

फूलती सांस ,घुटनो में ,नहीं बचता कोई दम खम
मगर एक बूढ़े बंदर से ,गुलाटी मारा करते हम 
भूख, पर खा नहीं सकते ,हाथ में कौर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

जिधर दिखती जवानी है ,निगाहें दौड़ जाती है 
कह के अंकल हसीनाएं ,मगर दिल तोड़ जाती है 
पकड़ में आ ही जाते हो ,जो मन में चोर होता है 
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

शनिवार, 9 जून 2018

बुढ़ापे में आशिकी का चक्कर 

एक दिन ,
हमारे बुजुर्ग साथी का विवेक जागा 
तो वो उन्होंने अपने अंतर्मन के पट खोले 
और अपनी धर्मपत्नी से बोले 
तुम मुझसे इतना प्यार करती हो 
तुम मेरा इतना ख्याल रखती हो 
फिर भी मैं जब तब 
जवान महिलाओं की तरफ 
ललचाई नज़रों से ताकता हूँ 
जब भी  मौका मिलता है ,
उनके पीछे चोरी छुपे भागता हूँ 
मैं जानता हूँ ये गलत है पर मुझे सुहाता है 
क्या मेरी इन हरकतों पर ,
तुम्हे गुस्सा नहीं आता है 
पत्नी ने मुस्करा कर दिया जबाब 
इसमें बुरा मान कर,
 मैं क्यों अपना दिमाग करू खराब 
आप मेरे हाथ से फिसलो ,
ये आपकी औकात नहीं है 
मैंने कई कुत्तों को ,
चमचमाती कार के पीछे दौड़ते देखा है 
जब कि वो जानते है कि कार ड्राइव करना ,
उनके बस की बात नहीं है 
तुम लाख लड़कियों के पीछे दौड़ो ,
वो डालनेवाली तुम्हे घास नहीं है 
और अगर बदकिस्मती से उसे पटालोगे 
तो मैं तो तुमसे सम्भल नहीं पाती  ,
उसको क्या संभालोगे ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अम्मा गयी विदेश 

निमंत्रण उसको मिला विशेष 
हमारी अम्मा  गयी  विदेश 
देख वहां की मेहरारू को ,अम्मा है शरमाती 
ऊंचा सा स्कर्ट पहन कर ,मेम चले इतराती 
ना सर चुन्नी,नहीं दुपट्टा ,खुली खुली सी छाती 
मरद से काटे छोटे केश 
हमारी अम्मा गयी विदेश 
खान पान भाषा से उसकी नहीं बैठती पटरी 
जाय घूमने,भूख लगे तो ,अम्मा खोले  गठरी 
ना पीज़ा बर्गर वो  खाये  अपने  लड्डू ,मठरी
यही है उसका भोज विशेष 
हमारी अम्मा गयी विदेश 
पोती और जमाई घूमे ,दिन भर पहने नेकर 
चकला बेलन नहीं ,बनाता रोटी,'रोटी मेकर '
एक दिन सब्जीदाल बनाकर खाते है हफ्तेभर
रसोई का ना निश दिन क्लेश 
हमारी अम्मा गयी विदेश 
जगह जगह पर छोरा छोरी और विदेशी जोड़े 
लाज शरम  तज,चूमाचाटी करते  दिखे निगोड़े 
होय लाज  से पानी अम्मा, मुंह पर घूँघट ओढ़े 
मुओं को शरम बची ना शेष 
हमारी अम्मा गयी विदेशी 
यूं तो सुथरा साफ़ बहुत ये देश है अंग्रेजों का 
महरी नहीं,मशीने करती ,बर्तन ,झाड़ू ,पोंछा 
टॉयलेट में नल ना ,कागज से पोंछो,ये लोचा 
लगे है दिल पर कितनी ठेस 
हमारी अम्मा गयी विदेश 
नहीं समोसे,नही जलेबी ,नहीं चाट के ठेले 
सब इंग्लिश में गिटपिट करते,घूम न सके अकेले 
डॉलर की कीमत रूपये में बदलो,रोज झमेले 
यहाँ का बड़ा अलग परिवेश 
हमारी अम्मा गयी विदेश 
पोती ने जिद कर अम्मा को नयी जींस पहना दी 
एक सुन्दर सा टॉप साथ में एक जर्सी भी ला दी 
मेम बनी अम्मा ,शीशे में देख स्वयं  शरमाती 
पहन कर अंग्रेजों का भेष     
हमारी अम्मा गयी विदेश 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हम भी अगर बच्चे होते 

कहावत है 
बच्चे और बूढ़े ,होते है एक रंग 
जिद पर आजाते है ,
तो करते है बहुत तंग 
दोनों के मुंह में दांत नहीं होते 
स्वावलम्बी बनने के हालत नहीं होते 
किसी का सहारा लेकर चलते है 
बात बात पर मचलते है 
और जाने क्या सोच कर ,
कभी मुस्कराते है,कभी हँसते है 
वैसे ये भी आपने देखा होगा ,
कि सूर्योदय और सूर्यास्त  की छवि ,
एक जैसी दिखती है 
पर सूर्योदय के बाद जिंदगी खिलती है 
और सूर्यास्त के बाद जिंदगी ढलती है 
दोनों सा एक जैसा बतलाना हमारी गलती है 
'फ्रेश अराइवल ' के माल को ,
'एन्ड ऑफ़ सीजन 'के सेल वाले माल से ,
कम्पेयर करना कितना गलत है 
आपका क्या मत है ?
छोटे बच्चों को ,सुंदर महिलाएं 
रुक रुक कर प्यार करती  है 
कभी गालों को सहला कर दुलार करती है 
कभी सीने से चिपका लेती है 
कभी गोदी में बैठा लेती है 
कभी अपने नाजुक होठों से ,
चुंबन की झड़ी लगा देती है 
क्या आपने कभी ऐसा,
 किसी बूढ़े के साथ होते हुए देखा है 
नहीं ना ,भाई साहब ,
ये तो किस्मत का लेखा है 
बूढ़े तो ऐसे मौके के लिए ,
तरस तरस जाते है 
अधूरी हसरत लिए ,
दिल को तड़फाते है 
कोई भी  कोमलंगिनी 
उनके झुर्राये गालों को नहीं सहलाती 
चुंबन से या सीने से चिपका ,
मन नहीं बहलाती 
न कभी कोई बाहों में लेती है 
उल्टा 'बाबा' कह कर के दिल जला देती है 
बेचारे बूढ़े ,आँखों में प्यास लिए ,
मन ही मन है रोते
यही सोच कर की , 
हम भी अगर बच्चे होते 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 6 मई 2018

I sell a house

Hello, I sell a house in Santander Spain for an amount of € 1400000 (you must pass it to your currency to see the exact amount). If you are interested in buying it, please send me a message and I will explain more details. I send you the plans of the house in PDF format.
Thanks for your time


बुधवार, 2 मई 2018

साकार सपन 

कभी कुछ करने का मन में ,सपन हमने संजोया था 
प्यार से एक पौधे को  , जतन  से  हमने बोया था 
संवारा हमने तुमने मिल ,बड़ी मेहनत से सींचा है 
खुदा की मेहरबानी से ,गया बन अब ,बगीचा है 
बहारें आई अब इसमें ,फूल कितने महकते है 
दरख्तों पर ,रसीले से ,हजारों फल लटकते है 
यही कोशिश है हरदम ,कि आये कोई भी मौसम 
फले,फूले और हरियाली ,सदा इसकी रहे कायम 

मदन मोहन बाहेती;घोटू;
मेरी राधायें 

मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर के याद मुझे वो अक्सर आये 
मेरी पहली राधा मेरी पड़ोसिन थी 
जो नाजुक सी प्यारी,सुन्दर,कमसिन थी 
उसकी सभी अदाये होती दिलकश थी 
हाँ,वो ही मेरा सबसे पहला 'क्रश 'थी 
जिसे देख कर मुझको कुछ कुछ होता था 
मैं उसकी उल्फत के सपन संजोता था 
वो भी तिरछी नज़र डाल ,मुस्काती थी
 मेरे दिल पर छुरियां कई चलाती थी 
कभी पहल  मैं करता,नज़र झुकाती वो 
कभी पहल वो करती ,पर शर्माती वो 
चहल पहल होती थी लेकिन दूरी से 
मिलन हमारा हो न सका ,मजबूरी से 
उसकी चाहत में थे मेरे सपन रंगीले 
पर कुछ दिन में हाथ हो गए उसके पीले 
उस दिन पहली बार दिल मेरा टूटा था 
चखा प्यार का स्वाद ,किसी ने लूटा था
ये मन  मुश्किल  से समझा था ,समझाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधाये 
जो रह रह कर याद मुझे अक्सर आये 
दूजी राधा , सिस्टर जी  की सहेली थी 
उसे समझना मुश्किल ,कठिन पहेली थी
 यूं तो मुझको देख प्यार से मुस्काती 
पास जाओ तो बड़ा भाव थी वो खाती 
चंचल बड़ी ,चपल थी और सुहानी थी 
मैंने था तय किया कि वो पट जानी थी 
वेलेंटाइन डे पर उसे गुलाब दिया 
मंहगी मंहगी गिफ्टों से था लाद दिया 
इम्पोर्टेड चॉकलेट उसे थी  खिलवाई 
पर  वो लड़की ,मेरे काबू  ना आयी 
इसके पहले कि मैं आगे बढ़ पाता 
उसकी ऊँगली पकड़ ,कलाई पकड़ पाता 
मेरी प्यारी , सुंदर सी वो वेलेंटाइन 
हुई किसी लाला के घर की थी  लालाइन
और बह गए आंसूं में थे मेरे अरमां 
सुनते चार पांच बच्चों की है अब वो माँ  
सोचूं उसके बारे में ,तो मन तड़फाये 
मेरे जीवन की कितनी ही राधायें 
रह रह कर वो याद मुझे अक्सर आये 
कितनी राधायें ,यूं आयी जीवन में 
मीठी खट्टी यादें घोल गयी मन में 
था कोई का करना मस्ती मौज इरादा 
करने टाइम पास बनी थी कोई राधा 
कई बार हम खुद को समझे सैंया थे 
उन राधाओं के कितने ही कन्हैया थे 
लेकिन जो भी मिली वो सभी  राधाये 
जिनने पार करी  जीवन की बाधाएं 
कोई बन चुकी अब कोई की रुक्मण है 
कोई रम गयी,पूरी आज गृहस्थन है 
कोई  दुखी है अब तक अपने कंवारेपन में  
कोई रह रही  'लिविंग इन के  रिलेशन' में 
हमने अब राधा का चक्कर छोड़ दिया है 
फेरे ले ,रुक्मण संग ,मन को जोड़ लिया है 
अब समझे ,राधायें तो है आती,जाती 
पर रुक्मण ही जीवन भर का साथ निभाती 
बहुत सुख मिला ,उसको अपने हृदय बसाये 
फिर भी जीवन में आयी कितनी राधाये 
रह रह कर जो ,याद मुझे है अक्सर आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
हम ओ सी के वासी 

ये ही हमारा वृन्दावन है ,ये ही मथुरा ,काशी 
शांति,प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी 

वानप्रस्थ की उमर ,जवानी का जज्बा है सब में 
मन में सेवा भाव भरा है  और  आस्था रब  में 
राधाकृष्ण यहीं मंदिर में ,दुर्गा माँ और हनुमन 
भक्तिभाव में और कीर्तन में ,रमता है सबका मन 
शर्बत,छाछ छबीले लगते ,और होते  भंडारे 
जन्म दिवस की ख़ुशी मनाते है मिलजुल कर सारे 
खुल कर हँसते लाफिंगक्लब में,मन में नहीं उदासी 
शांति प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी
 
सुबह सुबह व्यायाम केंद्र में ,नित होती है कसरत 
काम सभी के सब आते है,जब भी पड़ती जरूरत 
क्रीड़ास्थल पर बच्चे  खेलें , और  गूंजे  किलकारी  
फव्वारों के पास मारती ,गप्पें ,महिला  सारी 
कोई सैर सवेरे करता ,कोई 'जिम' में जाता 
हमें यहाँ   दिखता हर चेहरा ,हँसता और मुस्काता 
खुशियां बरसे सदा,अमावस हो या पूरनमासी 
 शन्ति प्रेम का जीवन जीते ,हम ओसी के वासी 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

पढ़ाना हमको आता है 

चने के झाड़ पर सबको, चढ़ाना हमको आता है 
कोई भी काम में टंगड़ी अड़ाना  हमको आता है 
भले ही खुद परीक्षा में ,हो चुके फैल हो लेकिन,
ज्ञान का पाठ औरों को ,पढ़ाना हमको आता है 
कोई की भी पतंग को जब ,देखते ऊंची है उड़ती ,
तो उसको काटने पेंचें ,लड़ाना हमको आता है 
किसी की साईकिल अच्छी ,अगर चलती नज़र आती ,
उसे पंक्चर करें ,कांटे गड़ाना हमको आता है 
बिना मतलब के ऊँगली कर मज़ा लेने की आदत है ,
बतंगड़ बात का करके ,बढ़ाना  हमको आता है 
न तो कुछ काम हम करते ,न करने देते औरों को ,
कमी औरों के कामो में ,दिखाना हमको आता है 
हमारे सुर में अपना सुर ,मिला देते है कुछ चमचे ,
यूं ही हल्ला मचाकर के सताना हमको आता है 

घोटू 
बुढ़ापा छाछ होता है 

दूध और जिंदगी का एक सा अंदाज होता  है 
जवानी दूध होती है , बुढ़ापा   छाछ  होता है
 
दूध सा मन जवानी में ,उबलता है ,उफनता है ,
पड़े शादी का जब जावन ,दही जैसा ये जमता है 
दही जब ये मथा जाता ,गृहस्थी वाली मथनी में 
तो मख्खन सब निकल जाता ,बदल जाता है जो घी में 
बटर जिससे निकल जाता ,बटर का मिल्क कहलाता 
जो बचता लस्सी या मठ्ठा , गुणों की खान बन जाता 
कभी चख कर तो देख तुम ,बड़ा ही स्वाद होता है 
जवानी दूध  होती है , बुढ़ापा  छाछ  होता है 

दूध से छाछ बनने के ,सफर में झेलता मुश्किल 
गमाता अपना मख्खन धन ,मगर बन जाता है काबिल 
न तो डर  डाइबिटीज का ,न क्लोरोस्ट्राल है बढ़ता 
बहुत आसानी से पचता ,उदर  को मिलती शीतलता 
खटाई से मिठाई तक ,करने पड़ते है समझौते 
बुढ़ापे तक ,अनुभवी बन,काम के हम बहुत होते 
पथ्य बनता ,बिमारी का कई, ईलाज होता है 
जवानी दूध होती है ,बुढ़ापा  छाछ  होता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

वो अब भी परी है 

मेरी बीबी अब भी ,जवानी भरी है 
सत्रह बरस की ,लगे छोकरी  है 
उम्र का नहीं कोई उसमे असर है ,
निगाहों में मेरी वो अब भी परी है
 
भले जाल जुल्फों का ,छिछला हुआ है 
भले पेट भी थोड़ा ,निकला हुआ है 
हुई थोड़ी मोटी  ,वजन भी बढ़ा है 
भले आँख पर उनकी ,चश्मा चढ़ा है
मगर अब भी लगती है आँखें नशीली 
रसीली थी  पहले ,है अब भी रसीली 
वही नाज़ नखरे है वही है अदाए 
सताती थी पहले भी,अब भी सताये 
नहीं आया पतझड़,वो अब भी हरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी  है
 
भले अब रही ना वो दुल्हन नयी है 
दिनोदिन मगर वो निखरती गयी है 
भले तन पे चरबी ,जरा चढ़ गयी है 
मुझसे महोब्बत ,मगर बढ़ गयी है , 
बड़ी नाज़नीं ,खूबसूरत ,हसीं थी 
ख्यालों में मेरे जो रहती  बसी थी 
मगर रंग लाया है अब प्यार मेरा 
रखने लगी है वो अब ख्याल मेरा 
कसौटी पे मेरी ,वो उतरी  खरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी है

महकती हुई अब वो चंदन बनी है 
जवानी की उल्फत,समर्पण बनी है 
संग संग उमर के मोहब्बत है बढ़ती 
जो देखी है उसकी ,नज़र में उमड़ती 
 हम एक है अब ,नहीं दो जने है 
हम एक दूजे पर  ,आश्रित बने है   
जवानी का अब ना,रहा वो जूनून है 
देता मगर साथ उसका सुकून है 
मैंने सच्चे दिल से ,मोहब्बत करी है 
निगाहो में अब भी वो लगती परी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?

 न कोई शिकवा है ,न कोई शिकायत है 
हमेशा मुस्करा कर ,रहने की आदत  है  
न मुझमे कुछ कमी या खामियां ढूंढती हो 
पति को परमेश्वर ,समझ कर  पूजती हो 
न कोई जिद है ,न कोई फरमाइशें  है 
और न ऊंची ऊंची ,कोई भी ख्वाइशे है 
न कभी खीजती हो ,नहीं होती रुष्ट  हो 
हर एक  हाल में तुम,रहती सन्तुष्ट  हो 
न कभी गुस्सा होती हो ,न  झल्लाती हो 
रूप पर अपने तुम ,कभी ना इतराती हो  
काम में घर भर के,व्यस्त सदा रहती हो 
परेशानियों से तुम,त्रस्त  सदा रहती हो 
मांग पूरी करने में,सबकी तुम हो तत्पर 
दो दिन में अस्तव्यस्त ,होता है तुम बिन घर 
पीछे पड़ बात अपनी ,मुझसे नहीं मनवाती क्यों हो 
मेरी जान, तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
लोगबाग अक्सर अपनी बीबी से रहते है परेशान 
छोटी छोटी बातों पर , मचाती  है जो तूफ़ान  
कभी ननद से नहीं पटती ,कभी सास से शिकायत है 
सदा कुछ न कुछ रोना,रोने की आदत  है 
किसी को कपडे चाहिए,किसी को गहना चाहिए 
किसी को फाइव स्टार होटल में रहना चाहिए 
कोई बाहर खाने और घूमने फिरने की शौक़ीन होती है 
कोई आलसी है,काम नहीं करती.दिन भर सोती है 
कोई किटी पार्टी और   दोस्तों में रहती व्यस्त है 
कोई फेसबुक और व्हाट्स अप में मस्त है 
कोई बिमारी का  बहाना बना,पति से काम करवाती है 
कोई अपने घरवाले को ,अपनी  उँगलियों पर नचाती है 
तुम बिना कोई प्रश्न किये ,मेरी हर बात मानती हो 
मेरी आँखों के इशारों को ,अच्छी तरह पहचानती हो 
तुम भी अपनी बात मनवाने ,होती नहीं उन्मादी क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?    
तुम  सुशील ,समझदार और  जहीन हो 
तुम छरहरे बदन वाली हो, हसीन हो    
फिर भी तुममे न कोई नाज़ है ,न नखरा है 
तुम्हारा रूप कितना सादगी से भरा है 
न   तो ब्युटीपालर्र जाकर,सजना सजाना  
न ही चेहरे पर तरह तरह के लोशन लगाना 
तुम शर्मीली लाजवंती हो ,तुम्हारी नजरों में हया है 
भगवान में आस्था है और व्यवहार में  दया है     
 कभी ना कहना ,तुमने नहीं सीखा है 
पति के दिल लूटने का तुम्हारा अपना ही तरीका है 
पति के  दिल की राह, आदमी के पेट से होकर है जाती 
इसलिए तुम मुझे नित नए ,पकवान बनाकर हो खिलाती 
तुम अन्नपूर्णा हो और तुम ही गृह लक्ष्मी हो 
मैं खुशनसीब हूँ कि तुम मेरे लिए ही बनी हो 
अपनी इन्ही अदाओं से तुम मुझको लुभाती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
हमारी जिंदगी में ,मियां बीबी वाली नोकझोंक क्यों नहीं होती 
मेरे लिए तुम्हारी कोई रोक टोक क्यों नहीं होती 
इस दुनिया में लोग तरसते है पत्नी के प्यार के लिए 
लेकिन मैं तरस जाता हूँ ,झगड़े और तकरार के लिए 
जी करता है की तुम रूठो और मैं तुम्हे मनाऊं
 तुम नखरे दिखा इठलाओ और मैं तुम्हे मख्खन  लगाऊं 
तुम जिद करो और मैं तुम्हे मन चाही वस्तु दिलवाऊं 
कभी जी करता है तुम ब्यूटी पालर्र में सजवाऊं 
पर तुम तो जैसी हो ,उस हाल में ही खुश हो 
जितना भी मिलता है ,उस प्यार में ही खुश हो 
पर सिर्फ मीठा खाने से भोजन में मज़ा नहीं आता 
वैसे ही सिर्फ प्यार से  जीवन का मज़ा नहीं आता 
जिंदगी में प्यार के साथ ,झगडे का तड़का आवश्य्क है 
कभी कभी प्यार बढाती ,रोज की झक झक है 
पर तुम शांति प्रेमी ,झगड़ने से घबराती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधीसादी  क्यों हो ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

दान पुण्य  

भूखे को भोजन और प्यासे को जल  पिलाओ ,
               यह सच्ची सेवा और दान बड़ा  होता है 
भंडारे का खाना ,गुरूद्वारे का लंगर ,
              परशादी भोजन अति स्वाद भरा होता है 
गरमी में सुबह सुबह ,लोगों को छाछ पिला ,
                   शीतलता देने से ,पुण्य खरा होता है 
सरदी में कंबल और वस्त्रहीन को कपडे ,
             अंत समय ,पुण्य करम ,साथ खड़ा होता है 

ऑरेंज काउंटी निवासियों द्वारा 
'मुफ्त छाछ वितरण अभियान '
नित्य प्रातः ८-३० से 
गेट नम्बर ४ पर 
संपर्क सूत्र  
१ मदन मोहन बाहेती 701 टावर 1 - मोबाईल 9350805355 
२ शिव कुमार मित्तल 1502  टावर 1 - मोबाईल 9910344688 

रविवार, 22 अप्रैल 2018

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 
जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 
हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 
बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 
कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 
जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 
किया कितनी आपदा का सामना है 
तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 
पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 
लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 
और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 
सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 
कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 
मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 
राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 
मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 
सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 
और मैंने सफलता की राह पा ली 
चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 
बन गए अब दोस्त जो दुश्मन कभी थे 
प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 
प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 
जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 
किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 
किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 
बुजुर्गों के प्रति सेवा भाव रख कर 
दोस्ती जिससे भी की ,पहले परख कर 
प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 
लगा कर जी जान सबके काम आया
सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  
सभी की आशीष है ,शुभकामना है 
चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 
मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 
काम में और राम में काया  रमी है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 
मेरे पास वक़्त ही वक़्त है 

हे मेरी प्यारी पत्नी डीयर 
जवानी के दिनों का ,हर पति परमेश्वर
बुढ़ापे में पूजने लगता है ,
पत्नी को परमेश्वरी  बना कर ,
और बन जाता उसका परम भक्त है 
मैं भी तुम्हारी भक्ति में लीन होना चाहता हूँ ,
क्योंकि मैं रिटायर हो गया हूँ और मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
तब जब मैंने तुम्हारे साथ ,
बसाया था अपना घरसंसार 
तुम मुझसे और मैं तुमसे ,करता था बहुत प्यार 
पर उस उमर में मेरी महत्वकांक्षाएं ढेर सारी थी 
जिंदगी में  कुछ कर पाने की तैयारी थी 
मुझे बहुत कुछ करना था 
और बहुत आगे बढ़ना था 
और इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु ,
मैं पागलों सा जूझता रहा 
मैंने दिन देखे न रात ,
बस भागता रहा ,यहाँ और वहां 
तुम्हारे लिए समय ही कब बचता था मेरे पास 
तुम कभी नाराज होती थी ,कभी उदास 
मैं देर रात थका हुआ घर आता था 
तुम उनींदी सी ,सोइ हुई मिलती थी ,
और मैं खर्राटे भरता हुआ सो जाता था 
मैं चाहते हुए भी तुम्हारे लिए ,
समय नहीं निकाल पाता था 
क्योकि स्ट्रगल के वो दिन ,होते बड़े सख्त है 
पर अब मैं रिटायर हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए,वक़्त ही वक़्त है 
पर अब ये प्रॉब्लम बढ़  गयी है 
कि तुम्हे भी तन्हा रहने की आदत पड़ गयी है  
मुझमे भी ज्यादा दमखम नहीं बचा है ,
क्योंकि उमर चढ़ गयी है 
न वो जोश ही बचा है ,न वो जज्बा ही रहा है 
और अब तुम भी तो ढल गयी हो ,
तुम में वो पुरानी वाली कशिश ही कहाँ है 
बच्चों ने बसा लिया अपना अपना संसार है 
बेटी ससुराल है 
और बेटा  सात समंदर पार है 
अब इस घोसले में ,मैं हूँ ,तुम हो ,
बस हम दोनों ही प्राणी  फ़क़्त है 
पर अब मैं रिटायर  हो गया हूँ,
मेरे पास तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 
अब मैं तुम्हारे मनमुताबिक ,
तुम्हारी उँगलियों पर नाच सकता हूँ 
अगर जरूरत पड़े तो तुम्हारे आदेश पर ,
घर के बर्तन भी मांज सकता हूँ 
बाज़ार से फल और सब्जी लाना ,
अब मेरी ड्यूटी में शामिल होगा 
अब मैं हर वो काम करूंगा ,
जो चाहता तुम्हारा दिल होगा 
अब हम दोनों ,फुर्सत  बैठेंगे ,
ढेर सारी बातें होगी 
तुम्हारी हर आज्ञा ,मेरे सर माथे होगी 
शुरू शुरू में कुछ गलतियां हो सकती है ,
जो तुम्हे झल्लाए 
और शायद मेरी कुछ बातें तुम्हे पसंद न आये 
पर मैं कोशिश कर ,खुद को ,
तुम्हारे सांचे में ढाल लूँगा 
बिगड़े हुए रिश्तों को फिर से संभाल लूँगा 
मन मसोस कर ,सब कुछ सह लूँगा,चुपचाप 
ये मेरी जवानी के दिनों में ,तुम्हारी ,
की हुई उपेक्षा का होगा पश्चाताप 
तुम कितने ही ताने मारो या नाराज हो,
तुम्हे बस प्यार ही प्यार मिलेगा ,
क्योंकि अब ये बंदा ,
पत्थर के बदले ,फल देने वाला दरख़्त है 
अब मै रिटायर हो गया हूँ ,मेरे पास ,
तुम्हारे लिए वक़्त ही वक़्त है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

आधुनिक सुदामा चरित्र 
( ब तर्ज नरोत्तमलाल )

१ 
मैली और कुचैली ,ढीलीढाली और फैली ,
 कोई बनियान जैसी वो तो पहने हुए ड्रेस है 
जगह जगह फटी हुई ,तार तार कटी हुई ,
सलमसल्ला जीन्स जिसमे हुई नहीं प्रेस है 
बड़ी हुई दाढ़ी में वो दिखता अनाडी जैसा ,
लड़की की चोटियों से ,बंधे हुए  केश है 
नाम है सुदामा ,कहे दोस्त है पुराना ,
चाहे मिलना आपसे वो ,करे गेट क्रेश है 
२ 
ऑफिस के बॉस कृष्णा,नाम जो सुदामा सुना ,
याद आया ये तो मेरा ,कॉलेज का फ्रेंड था 
सभी यार दोस्तों से ,लेता था उधार पैसे ,
मुफ्त में ही मजा लेना ,ये तो उसका ट्रेंड था 
लोगों का टिफ़िन खोल ,चोरी चोरी खाना खाता ,
प्रॉक्सी दे मेरी करता ,क्लास वो अटेंड था 
पढ़ने में होशियार ,पढ़ाता था सबको यार ,
नकल कराने में भी ,एक्सपीरियंस हेंड था 
३ 
कृष्ण बोले चपरासी से ,जाओ अंदर लाओ उसे ,
और सुनो केंटीन से ,भिजवा देना ,चाय  दो 
सुदामा से कृष्ण कहे ,इतने दिन कहाँ रहे ,
व्हाट्सएप,फेसबुक पर,कभी ना दिखाय  दो 
फ्रेण्डों के फ्रेंड कृष्ण ,सुदामा से करे प्रश्न ,
थके हुए लगते हो, थोड़ा  सा सुस्ताय लो 
होकर के इमोशनल ,कृष्ण बोले माय डीयर,
भूखे हो ,पिज़ा हम,मंगवा दें,खाय  लो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गाना और रोना 

गाना सबको ही आता  है ,कोई सुर में,कोई बेसुरा 
रोना सबको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

मन में जब पीड़ा होती है ,आँखों में आ जाते आंसू 
अंतरतर की सभी वेदना , बह कर बतला जाते आंसू  
कभी कभी जब गुस्सा आता,तो भी आँखे छलका करती 
भावों का गुबार बह जाता ,आंसू बन मन हल्का  करती
कभी मिलन में या बिछोह में ,आँखे पानी भर भर लाती 
मोती जैसे प्यारे प्यारे ,आंसू गालों पर ढलकाती
बच्चों की आँखों में आंसू ,या उसका चीख चीख रोना 
सुन कर विचलित हो जाता है,माँ के मन का कोना कोना 
शायद भूख  लगी उसको , वह सारे काम छोड़ करआती 
उसको आँचल में भर कर के ,दुग्धामृत का पान कराती 
नीर भरे नैनों से विरहन ,प्रीतम का रस्ता तकती है 
अश्रु जनक आँखे भी आंसू ,अपने पास नहीं रखती है 
कुछ आंसू होते घड़ियाली ,कुछ बहते सहानुभूति पाने 
कुछ आंसू ,पत्नी आँखों से ,भाते ,निज जिद को मनवाने 
कोई बिलखता,कोई सिसकता ,कोई रुदन हिचकियों से भरा 
रोना सको ही आता है ,कोई रोष में,कोई दुःख भरा 

जब मन में होती प्रसन्नता ,देखा है लोगों को गाते 
सूनी राह ,रात में डर कर,कई बेसुरे,गा चिल्लाते 
कुछ गाते है बाथरूम में ,जब ठंडा लगता है पानी 
कुछ शोहदे ,गाना गा करते,लड़की के संग छेड़खानी 
गाना जब सुर में होता है ,तो वह छू लेता है मन को 
साज और संगीत हमेशा ,सुख देते है इस जीवन को 
मंगल गीत हमेशा गाये जाते है,हर आयोजन में  
शादी या त्यौहार,पर्व में ,या फिर ईश्वर के पूजन में 
भजन कीर्तन करना भी तो ,प्रभु की सेवा ,आराधन है 
राष्ट्रगान से यशोगान तक ,गाय करता है एक जन है 
कुछ दर्दीले ,कुछ भड़कीले ,कुछ पक्के कुछ फ़िल्मी गाने 
कुछ गाने होठों पर चढ़ते ,कुछ हो जाते है बेगाने 
या फिर डीजे वाले गाने ,जो पैरों को थिरकाते है 
कुछ कोरस गाने होते जो कई लोग मिल कर गाते है 
जान फूंक देता शब्दों में ,अगर कंठ हो ,कोई रसभरा 
गाना सबको ही आता है ,कोई सुर में ,कोई बेसुरा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बदलते फैशन 

पहले जब साड़ी चलती थी ,तो फैशन में था कटि दर्शन 
फिर उघड़ी पीठ प्रदर्शन का ,पॉपुलर बहुत हुआ फैशन 
फिर ब्लाउज हुए बहुत 'लौ कट 'कुछ बोट शेप के गले चले 
फिर 'ब्रा' पट्टी को दर्शाते ,फैशन पर लोग बहुत  फिसले 
अब बाहें ढकती बाजू को ,होता कंन्धों का  दर्शन  है 
दो गोरे उभरे कंधों को ,दिखलाने का अब फैशन  है 
ये तो ऊपर की बात हुई ,अब नीचे के फैशन देखो 
पहले ऊपर से नीचे तक ,साड़ी ढकती थी तन देखो 
फिर ऊंचा होकर साड़ी ने ,था 'मिनी साड़ी 'का रूप धरा 
पूरी पिंडली को दर्शाता ,स्कर्ट बहुत था चल निकला 
यह स्कर्ट भी फिर हुआ मिनी और 'हॉट पेन्ट 'का युग आया 
जांघें उघाड़ ,नारी ने कदली स्तम्भों को था दिखलाया 
पूरे साइड से कटे हुए ,कुछ लम्बे चोगे फिर आये 
जो चलने पर,इत  उत उड़ कर ,टांगों की झलकें दर्शाये  
वस्त्रों का बोझ घटाते है ,नित नित बदलाते  फैशन है 
तन का हर भाग दिखाने को ,देखो कैसा पागलपन है 

घोटू 
उँगलियाँ 

बहुत नाजुक,मुलायम और रसीली उँगलियाँ है 
हाथ मेंहंदी रची ,होती रंगीली उँगलियाँ है 
अगर सहलाये तुमको तो नशीली उँगलियाँ है
 बजाये  बांसुरी जब , तो  सुरीली उँगलियाँ है
मनुज के पूरे तन में , ग़ौर से जो देखे हम तो 
उँगलियाँ सोलह होती ,अन्य अंग बस एक या दो 
माँ की ऊँगली पकड़ कर ,सीखते चलना ही सब है 
लोग ऊँगली पकड़ कर,पहुँच जाते,पंहुचे तक है 
देख कर शान उनकी ,काटते सब उंगलिया है 
स्वाद खाना अगर हो  , चाटते  सब उँगलियाँ है  
अंगूठी सगाई की  पहनती  ये उंगलिया है 
जिंदगी भर का रिश्ता ,बांधती ये उंगलिया है 
पकड़ते हम कलम को ,अंगूठे और उँगलियों से 
बजाते ढोल,तबला ,हम थिरकती  उँगलियों से 
नृत्य की कई मुद्रा ,बनाती ये उंगलयां  है 
पति को उँगलियों पर ही नचाती बीबियां है  
जुल्फ को मेहबूबा की ,सहलाती है कोई ऊँगली 
घूमते प्रेमी जोड़े ,फंसा कर ऊँगली में ऊँगली 
उठाया कन्हैया ने ,ऊँगली पे पर्वत गोवर्धन 
चुरा कर ,उँगलियों से ,चाटते  थे कृष्ण माखन 
हथेली उँगलियों संग मिलती है तो हाथ बनती 
मांगती ये दुआयें ,सबका  आशीर्वाद बनती 
उँगलियों पर हर एक की ,है अलग निशान होते
कार्ड आधार बनता ,सबकी ये पहचान   होते 
उँगलियाँ  गुस्सा करती तो चपत ये मारती है 
मिलती जब हथेली के संग ,मुक्का तानती है 
सर में जब दर्द होता ,उँगलियाँ करती है चम्पी 
बड़ी नाज़ुक सी लगती ,उँगलियाँ जब होती लम्बी 
काम आती है कितनी ,उँगलियाँ ये ,गिनतियों में 
जोड़ती हाथों को है ,उँगलियाँ ये ,विनतियों में 
टेढ़ी ऊँगली किये बिन ,निकलता भी घी नहीं है 
किसी को छेड़ना हो ,उँगलियाँ फिर जाती की है 
दांत को छू के ,उंगली ,कट्टियाँ भी है कराती 
ऊँगली ऊँगली से मिलकर ,बट्टियाँ भी है कराती 
आजकल मोबाईल फोनो पे फिसले उंगलिया है 
व्हाट्सएप फेसबुक पर करती कितनी चुगलियां है 
किसी के आगे जब ऊँगली हमारी ,एक उठती 
हमारी और भी तब ,उंगलयां है तीन मुड़ती 
इशारा उँगलियों का ,है कभी दिल लूट लेता 
उठा कर एक ऊँगली ,अम्पायर है आउट देता 
उँगलियाँ नचाने से ,काम सब बनते  नहीं है 
 उंगलिया बताती है ,रास्ता कैसा ,सही है 
निवाला रोटियों का, उँगलियाँ  ही तोड़ती है 
मिला कर हाथ सबसे ,उंगलिया ही जोड़ती है 
 कोई भी उलझा मसला  सुलझाती ये उंगलिया है 
शुक्रिया खुदा तेरा ,हमको बक्शी उँगलियाँ है 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू'

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

अजब सिलसिले 

जमाने के देखो अजब सिलसिले है 
मोहब्बत में जिनकी ,हुए पिलपिले है 
बहारों में लूटी थी खुशबू जिन्होंने ,
शिकायत वो ही आज करते मिले है 
हमें  जिंदगी के सफर की डगर में ,
कहीं फूल ,कांटे ,कहीं  पर मिले है 
न ऊधो का लेना न माधो का देना,
इसी राह पर हम हमेशा चले है 
किसी न किसी को तो चुभते ही होंगे ,
भले ही सभी को ,पटा कर चले है 
अकेले चले थे ,भले इस सफर में ,
मगर आज हम बन गए काफिले है 
किसी ने करी है ,बुराई बहुत सी,
किसी ने कहा आदमी हम भले है 
मगर जब भी पाया ,किसी ने भी मौका
सभी ने तो अपने पकोड़े तले है  
कभी हम चमकते प्रखर सूर्य से थे ,
हुई सांझ ,पीले पड़े और ढले है 
बहुत कीच था इस सरोवर में फैला,
मगर हम यहाँ भी ,कमल से खिले है 
जले हम भी पर हमने दी रौशनी है ,
हुए खाख है वो जो कि हमसे जले है 
पड़ी झेलनी हमको कितनी जलालत ,
जीवन में आये कई जलजले  है 
हमें है यकीं  'घोटू' पूरा करेंगे ,
दिलों में हमारे ,जो सपने पले है 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रतिबंध लग गया 

पन्ना तो जड़ गया अंगूठी ,पन्नी पर प्रतिबंध लग गया 
फटी जीन तो फैशन में है ,कुरते पर पैबन्द लग गया 
नेताजी ने कर तो डाले ,वादे कई ,निभा ना  पाये ,
हेरा फेरी में उलझे है  , राजनीती में  गंद  लग गया 
कल तक एक नादान  बालिका,जो घबराती थी गुंडों से ,
उसने आज रपट लिखवाई ,उसके पीछे संत लग गया 
कितने ही जल्लाद मोहम्मद  गौरी उसको घेर रहे है,
पृथ्वीराज ,परेशाँ ,उसके पीछे अब जयचंद लग गया 
जब तक बंधा  गले में पट्टा था बस कुछ गुर्रा लेता था ,
किन्तु भोंकता सबके पीछे ,कुत्ता अब स्वच्छंद ,लग गया 
 अच्छा खासा काम चल रहा था पर उनने टांग अड़ा दी ,
दाल भात में जैसे आकर ,कोई मूसरचंद  लग गया 
मुफ्त बंटेंगे कंबल का एलान हुआ तो भीड़ लग गयी ,
मुश्किल से लाइन में जाकर ,पीछे जरूरतमंद लग गया 
कल तक जो आजाद ,मस्त था,मौज मारता खुल्लमखुल्ला,
जबसे शादी हुई  दुखी है ,क्योंकि गले में फंद लग गया 
एक साथ मिल कर रहते थे ,बंधा हुआ एक परिवार था ,
पर अब, घर बंटवारे पीछे ,अपना भाईबंद लग गया 
लायक बेटे है विदेश में , नालायक घर ,करता सेवा ,
वृद्ध और लाचार पिता को ,'घोटू 'वही पसंद लग गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता है 

कभी जिंदगी में ,जुड़ा तुमसे होना ,
न मैं चाहता हूँ ,न दिल चाहता  है 

पलकों पे तुमको बिठाये रखा है 
मंदिर में दिल के सजाये रखा  है 
फूलों से नाजुक ,तुम्हारे बदन को ,
 कलेजे  से अपने ,लगाये  रखा है 
खुशबू से इसकी ,कभी दूर होना ,
न हम चाहतें है ,न दिल चाहता है 

भले दो जिसम पर,एक जान है हम 
एक दूसरे की तो ,पहचान है हम  
संग संग जियेंगे, संग संग  मरेंगे ,
सदा एक दूजे पर ,कुरबान है हम 
हमारी वफ़ा में ,कभी कुछ जफ़ा हो,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

तुम्हारी मोहब्बत मेरी जिंदगी है 
तुम्हारी इबादत , मेरी बंदगी  है 
तुम लेती हो साँसें ,धड़कता मेरा दिल ,
इतनी दीवानी ,मेरी आशिक़ी है 
कभी जिंदगी में ,खफा तुमसे होना ,
न हम चाहतें है न दिल चाहता है  

कभी जिंदगी में ,तुम्हे गम न आये 
तुम्हे दर्द हो ऐसा मौसम न आये 
हमेशा बसंती ,फ़िज़ा खुशनुमा हो 
फूलों सा चेहरा सदा मुस्कराये 
कभी भी तुम्हारी ,खुशियों को खोना,
न हम चाहते है ,न दिल चाहता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक बातचीत जो जोधपुर सेन्ट्रल जेल में सुनी गयी 

तुम दो दिन आये ,छूट गये ,हम पांच साल से सड़ते है 
तूमने  भी लड़ा मुकदमा था ,और हम भी मुकदमा लड़ते है 
तुम्हारे कई प्रसंशक है,और भक्त हमारे  भी अगणित ,,
तुम अभिनता करते अभिनय ,हम साधू ,प्रवचन पढ़ते है 
तुम भी तो लगाते हो ठुमके ,और हम बी लगाते ठुमके है ,
तुम जाते छूट ,हमारे पर,सारे  ही  काम  बिगड़ते है 
तुम एक्शन हीरो रोमांटिक,हीरोइन के संग  इश्क करो ,
हम भक्तिन संग रोमांस करें ,सबकी आँखें क्यों गड़ते है 
तुम हो 'बीइंग हयूमन 'वाले ,हम 'लविंग वूमन 'के मतवाले ,
 कान्हा बन गोपी प्रेम करें ,सब दोष हमी पर मढ़ते है 
तुम भाई हो, हम बापू है ,तुम जवां ,हो गये हम बूढ़े,
पर बूढ़े बंदर भी तो ,पेड़ों की शाखाओं पर  चढ़ते   है 
एड़ी चोटी का जोर लगा ,हम आशाराम  निराश हुए ,
सलमान खान ,दो हमें ज्ञान ,हम पैर तुम्हारे पड़ते है 

घोटू 

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

प्यार 

गाने में गले का योगदान होता है ,
संगीत और स्वरवाली कोई बात होती है 
कविता में कलम और मन के जज्बातों की ,
एक कोरे कागज़ पर ,मुलाक़ात होती है 
खाने में लज्जत और स्वाद अगर आता तो ,
पकानेवाले हाथों की ,करामात होती है 
अकेले अकेले से प्यार नहीं हो सकता ,
प्यार तभी होता जब ,प्रिय साथ होती है 

घोटू 
अपना पराया 

ये मत पूछो कौन पराया ,कौन सगा है 
जब भी जिसने मौका पाया ,मुझे ठगा है 
सबसे ज्यादा दर्द दिया मुझको अपनों ने
 और सांत्वना दे सहलाया ,अन्य जनो ने 
अपना जिनको समझा था ,उनने दिल तोडा 
और जब उनकी जरूरत आयी,दामन छोड़ा 
सबसे मिल जुल रहो भले अपने या पराये 
क्या मालूम ,कौन कब किसके काम आ जाये 

घोटू  
प्यार करो तो कुछ ऐसा तुम 

प्यार करो तो मधुमख्खी सा ,रास भी चूसे,शहद बनाये ,
किन्तु पुष्प की सुंदरता और खुशबू में कुछ फर्क न आये 
प्यार करो तो भ्रमरों जैसा ,फूल ,कली पर जो मंडराये ,
उनसे खुले आम उल्फत कर ,कलियाँ पाकीज़ा कहलाये 
प्यार करो तो बंसुरी जैसा ,पोली और छिद्रमय  काया ,
पर ओठों पर लग तुम्हारे ,साँसों को स्वर दे मनभावन 
प्यार करो तो माँ के जैसा ,दुग्ध पिला छाती से सींचे ,
जो बच्चों पर प्यार लुटाये ,स्वार्थहीन ,निश्छल और पावन 
प्यार करो तो माटी जैसा ,जिसमे एक बीज यदि रोंपो ,
उसे कोख में अपनी पाले ,तुम्हे शतगुणा वापस करदे 
प्यार करो तो तरुवर जैसा ,जिस पर यदि पत्थर भी फेंको ,
अपने प्यारे मधुर फलों से ,जो तुम्हारी झोली भर दे 
प्यार करो दीये बाती सा ,जब तक तैल ,तब तलक जलती,
तेल ख़तम तो बुझती बाती ,किस्सा संग संग जलने का है  
लैला और मजनू के किस्से ,शीरी और फरहाद की बातें ,
नहीं प्यार की कोई दास्ताँ ,किस्सा मिलन बिछड़ने का है
सच्चा प्यार नदी का होता ,जो कल कल कर दौड़ी जाती ,
मिलने निज प्रियतम सागर से ,जिसका नीर बहुत है खारा 
प्रेम दिवस पर एक गुलाब का ,पुष्प प्रिया को पकड़ा देना ,
यह तो कोई प्यार नहीं है ,यह तो है बस ढोंग  तुम्हारा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


मनचला दिल  

मेरे दोस्तों मेरा दिल मनचला है 
कब किसपे फिसले पता ना चला है 
बाहर से दिखता, बड़ा ही भला है  
कई नाज़नीनों को इसने छला है 
लड़कियां पटाने की आती कला है 
बड़ा ही कलाकार ,है ये दीवाना 
दिल लूटता है ,ये डाकू  सयाना 
नहीं भूल कर इसके चंगुल में आना 
बहुत जानता ,रूठना और मनाना 
भरोसा न करना ,ये तो दोगला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती कला  है 
दिखाया हमेशा ,चमत्कार इसने 
जी भर लुटाया ,सदा प्यार इसने 
मानी किसी से भी ना हार  इसने 
किया अपने सपनो को साकार इसने 
बड़े नाज़ नखरों से ,ये तो पला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती  कला है 
दिखता तो सीधा सा नादान है ये 
बड़ा ही मगर एक शैतान है ये 
सताता है करता ,परेशान है ये 
आशिक तबियत का इंसान है ये 
किसी की न सुनता,ये  दिलजला है 
लड़कियाँ  पटाने की आती कला है 

घोटू 

 

दुखी बाप की अरदास 

हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
बहुत सताया है जीते जी ,मरने पर भी ,ना छोड़ोगे 
गर्म चिता में ,बांस मार कर ,तुम मेरा कपाल फोड़ोगे 
मृत्यु बाद भी ,इस काया को ,फिर तुम वही जलन मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
अश्रु नीर की गंगा जमुना ,बहुत बहाई ,पीड़ित मन ने 
जीते जी कर दिया विसर्जित ,तुमने दुःख देकर जीवन में 
मेऋ  अस्थि के अवशेषों को,गंगा में तर्पण मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 
बहुत मुझे अवसाद दिए है ,नहीं पेट भर कभी खिलाया 
कभी नहीं ,मुझको मनचाहा ,भोजन दिया ,बहुत तरसाया 
श्राद्धकर्म कर ,तृप्त कराने ,ब्राह्मण को भोजन मत देना 
हे सुत ,मुझे अगन मत देना 

घोटू 
मेरी अर्धांगिनी 

जिसने बसाई मेरे दिल की बस्ती 
जो ले के आई है जीवन में मस्ती 
महकाया जीवन का गुलजार जिसने 
बरसाया जी भर के है प्यार जिसने 
दी गर्मी में जिसने ,पहाड़ों की ठंडक 
सर्दी में बन कर रजाई लिया  ढक 
जिसने बनाया, हर मौसम बसंती 
जो है मेरे दिल और गृहस्थी की हस्ती 
जो चंचल चपल है कभी तितलियों सी
कड़कती गरजती कभी बिजलियों सी 
चलाती है घर की जो गाड़ी ,वो इंजन 
खिलाती है हमको ,बनाकर के व्यंजन 
मेरा ख्याल रखती ,मुझे प्यार करती 
अगर रूठ जाता  तो मनुहार करती 
महोब्बत का जिसमे समंदर भरा है 
सज कर, संवर कर ,लगे अप्सरा है 
वो कोमल हृदय है ,वो ममता की मूरत 
भली जिसकी सीरत ,भली जिसकी सूरत 
वो ही अन्नपूर्णा है ,वो गृहलक्ष्मी है 
 मनोरम बनी है और दिल में रमी है 
वो देवी करू रोज जिसका मैं पूजन 
बिना जिसके लगता ,बड़ा सूना जीवन 
जिसने संवारी ,मेरी जिंदगी  है 
वो पूजा है मेरी ,मेरी बंदगी है 
मेरी पथप्रदर्शक ,सलाहकार है जो 
इस जीवन की नैया की पतवार है जो 
मेरा प्यार है वो ,मेरी वो मोहब्बत 
मेरे दिल की दौलत है जिसकी बदौलत 
है सबसे निराली ,बहुत खूब है वो 
मेरी दिलरुबा ,मेरी महबूब है वो 
जो जीवन में मेरे ,लाई रौशनी है 
वो पत्नी ,प्रिया, मेरी अर्धांगिनी  है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तेरा  सुमिरन 

जब भी मुझ पर आयी मुसीबत ,परेशनियों ने आ घेरा 
जब विपदा के बादल छाये ,मैंने नाम लिया बस तेरा 
सच्चे मन से किया सुमिरन,व्याकुल होकर,तुझे पुकारा 
तूने कृपा दृष्टि बरसाई ,हर संकट से मुझे उबारा 
मेरी तुझमे प्रबल आस्था ,हरदम बनी सहारा मेरा 
तेरी रहमत बनी रौशनी ,राह दिखाई ,मिटा अँधेरा 
सदा ख्याल रखता बच्चों का ,परमपिता,परवरदिगार तू 
भगवान अपने सब बंदों पर ,बरसाता ही रहा प्यार तू 
बसा हुआ तू रोम रोम में,सांस सांस में ,मेरे दिल में 
तुझे पता है ,पास तेरे ही ,आएंगे हम ,हर मुश्किल में 
तो फिर कोई मुसीबत को ,पास फटकने ही देता तू 
राह दिखाना तुझको फिर क्यों ,हमें भटकने ही देता तू 
शायद इसीलिए ना सुख में ,तेरा सुमिरण ,याद न आता
इसीलिए तू ,दुःख दे देकर ,शायद अपनी याद दिलाता 
हम नादान ,दिये तेरे सुख ,पाकर तुझे ,भूल जाते है 
इतने जाते डूब ख़ुशी में ,नाम तेरा ही, बिसराते है  
क्या दुःख आना आवश्यक है भगवन तेरी याद दिलाने 
हे प्रभु सुख में ,तेरा सुमरण ,नहीं दुखों को,देगा आने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आशिकी और हक़ीक़त 

आशिक़ी के कई किस्से ,हमने लोगों के सुने है 
इसलिए ही इस कदर से ,हम जले है और भुने है 
जिससे पूछो,कहता उसने ,मौज मारी जवानी में 
किस तरह से मोड़ कितने ,आये उनकी कहानी में 
लड़कियां कितनी पटाई ,कितनो के संग आशिक़ी की 
कितनो ने दिल तोडा उनका,कितनो ने नाराजगी की 
कितनो के संग मस्तियाँ ली,कितनो के संग फायर,घूमे 
गले कितनो से लिपट कर ,कितनो के  है  गाल चूमे 
सुनता हूँ जब भी कभी मैं ,दोस्तों की  दास्ताने 
मेरा दिल धिक्कारता है और देता मुझे ताने 
अरे बौड़म ,क्यों न तूने ,जवानी का  मज़ा लूटा 
प्यार का गुब्बार कोई ,क्यों न तेरे दिल में फूटा 
पढाई में व्यस्त रह कर ,नहीं देखे कोई भी रंग  
काट दी तूने जवानी ,किताबों और कापियों संग 
करता हूँ अफ़सोस मैं भी ,अपने दिल को क्या दूँ उत्तर 
मन में पश्चाताप रहता ,भूल मैंने  की भयंकर 
यहाँ तक कि शादी भी की ,तो भी लड़की नहीं देखी 
न तो उसके साथ घूमा ,और ना ही आशिक़ी  की 
बाँध दी जो भी पिता ने गले ,लेकर सात फेरे 
मेरी मन मरजी मुताबिक़ ,चल रही है साथ मेरे 
सीधी सादी ,भोली भाली ,ना कोई शिकवा शिकायत 
उसको मेरी,मुझको उसकी ,पड़ गयी है अब तो आदत 
वो गृहस्थी निभाती है ,साथ मै उसका निभाता 
एक दूजे के बिना अब ,नहीं हमसे रहा जाता 
वो मेरे मन भा रही है ,उसके मन मै भा रहा हूँ 
बुढ़ापे में ,साथ उसके ,मैं बड़ा सुख पा रहा हूँ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

कोने कोने में  

कहा जाता है ,
पृथ्वी के कोने कोने में ,
ईश्वर का वास है 
पर पृथ्वी तो गोल है ,
और गोल वस्तु का कोई कोना नहीं होता ,
तो इन दो बातों में ,
कितना विरोधाभास है 
कुछ भी हो ,कोने होते बड़े ख़ास है 
दूरियां पैदा करने वाली ,
दीवारों का जब मिलन होता है 
वहां कोने का जनम होता है 
ये दो विपरीत दिशाओं में जाने वालों की ,
मिलनस्थली के रूप में जाने जाते है 
और भूचाल की स्थिति में ,
सबसे ज्यादा सुरक्षित माने जाते है 
ये अपनेआप को ,
हल्के से अँधेरे में समेटे हुए होते है 
और जाने कितनी ही यादों को ,
अपने में समेटे हुए होते है 
मुझे याद आता है घर का वो कोना ,
जहाँ बचपन में ,
अपनी जिद मनवाने के लिए ,
मैं कितनी ही बार रूठा था 
और वो कोना मैं कैसे भुला सकता हूँ ,
जहाँ पर पहली बार ,
प्रथम मिलन और प्यार के चुंबन का ,
सुख लूटा था 
कितनी ही बार जिस कोने में छुप ,
मैं दोस्तों की पकड़ में न आया ,
जब बचपन में हम खेलते थे ,
छुपमछुपाई 
और स्कूल का वो कोना ,
कैसे भूल सकता हूँ ,जहाँ कितनी ही बार ,
 मास्टरजी ने ,उल्टा मुंह कर कर ,
खड़े रहने की सजा थी सुनाई 
सबसे छुपा कर 
मैंने सिगरेट का पहला कश ,
भी एक सुनसान कोने में ही लिया था 
और चोरी चोरी ,
बियर का पहला घूँट भी ,
एक कोने में ही पिया था 
मेरे दिल के एक कोने में ,
अभी भी दबी पड़ी है ,
मेरे प्रथम प्रेम की ,वो मीठी यादें 
वो जीने मरने की कसमें ,
वो जीवन भर साथ निभाने के वादे 
जिन्हे एक कोने में रख कर 
अच्छे दहेज़ के लालच में ,
मैंने बसा लिया था किसी और के संग घर 
और अपने सारे आदर्शों और सिद्धांतों को ,
एक कोने में दबा कर,
दुनियादारी की भागमभाग में दौड़ रहा हूँ 
और साम,दाम,दंड,भेद से ,
अपने कई काबिल साथियों को,
एक कोने में छोड़ रहा हूँ 
दोस्तों ,कभी आप भी अपने दिल के अंदर ,
झांक कर देखो तो एक कोने आयेगी  नज़र
आपकी कितनी ही बेवफाई ,
और कितनी ही गलतियां 
जिनको छुपा कर  आपने ,
अब तलक है जीवन जिया 
वो सारे करम 
जिनको छुपाने का आपके मन में है भरम 
पर वो आपके दिल के किसी कोने में ,
दबे है पड़े 
और तन्हाई में कभी ,
अपना अस्तित्व दिखाने को,
हो जाते है खड़े 
कभी तड़फाते  है 
कभी सताते है 
और हम उन्हें फिर से ,
किसी कोने में दबाकर ,
भूल जाते है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

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