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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

प्यार करो तो कुछ ऐसा तुम 

प्यार करो तो मधुमख्खी सा ,रास भी चूसे,शहद बनाये ,
किन्तु पुष्प की सुंदरता और खुशबू में कुछ फर्क न आये 
प्यार करो तो भ्रमरों जैसा ,फूल ,कली पर जो मंडराये ,
उनसे खुले आम उल्फत कर ,कलियाँ पाकीज़ा कहलाये 
प्यार करो तो बंसुरी जैसा ,पोली और छिद्रमय  काया ,
पर ओठों पर लग तुम्हारे ,साँसों को स्वर दे मनभावन 
प्यार करो तो माँ के जैसा ,दुग्ध पिला छाती से सींचे ,
जो बच्चों पर प्यार लुटाये ,स्वार्थहीन ,निश्छल और पावन 
प्यार करो तो माटी जैसा ,जिसमे एक बीज यदि रोंपो ,
उसे कोख में अपनी पाले ,तुम्हे शतगुणा वापस करदे 
प्यार करो तो तरुवर जैसा ,जिस पर यदि पत्थर भी फेंको ,
अपने प्यारे मधुर फलों से ,जो तुम्हारी झोली भर दे 
प्यार करो दीये बाती सा ,जब तक तैल ,तब तलक जलती,
तेल ख़तम तो बुझती बाती ,किस्सा संग संग जलने का है  
लैला और मजनू के किस्से ,शीरी और फरहाद की बातें ,
नहीं प्यार की कोई दास्ताँ ,किस्सा मिलन बिछड़ने का है
सच्चा प्यार नदी का होता ,जो कल कल कर दौड़ी जाती ,
मिलने निज प्रियतम सागर से ,जिसका नीर बहुत है खारा 
प्रेम दिवस पर एक गुलाब का ,पुष्प प्रिया को पकड़ा देना ,
यह तो कोई प्यार नहीं है ,यह तो है बस ढोंग  तुम्हारा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


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