मोहब्बत का मज़ा -बुढ़ापे में
न उनमे जोर होता है ,न हम में जोर होता है
बुढ़ापे में,मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
गया मौसम जवानी का,यूं ही हम मन को बहलाते
कभी वो हमको सहलाते,कभी हम उनको सहलाते
लिपटने और चिपटने का ,ये ऐसा दौर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
टटोला करती है नज़रें ,जहां भी हुस्न है दिखता
करो कोशिश कितनी ही कहीं पर मन नहीं टिकता
भटकता रहता दीवाना ,ये आदमखोर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
फूलती सांस ,घुटनो में ,नहीं बचता कोई दम खम
मगर एक बूढ़े बंदर से ,गुलाटी मारा करते हम
भूख, पर खा नहीं सकते ,हाथ में कौर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
जिधर दिखती जवानी है ,निगाहें दौड़ जाती है
कह के अंकल हसीनाएं ,मगर दिल तोड़ जाती है
पकड़ में आ ही जाते हो ,जो मन में चोर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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