मेरी अर्धांगिनी
जिसने बसाई मेरे दिल की बस्ती
जो ले के आई है जीवन में मस्ती
महकाया जीवन का गुलजार जिसने
बरसाया जी भर के है प्यार जिसने
दी गर्मी में जिसने ,पहाड़ों की ठंडक
सर्दी में बन कर रजाई लिया ढक
जिसने बनाया, हर मौसम बसंती
जो है मेरे दिल और गृहस्थी की हस्ती
जो चंचल चपल है कभी तितलियों सी
कड़कती गरजती कभी बिजलियों सी
चलाती है घर की जो गाड़ी ,वो इंजन
खिलाती है हमको ,बनाकर के व्यंजन
मेरा ख्याल रखती ,मुझे प्यार करती
अगर रूठ जाता तो मनुहार करती
महोब्बत का जिसमे समंदर भरा है
सज कर, संवर कर ,लगे अप्सरा है
वो कोमल हृदय है ,वो ममता की मूरत
भली जिसकी सीरत ,भली जिसकी सूरत
वो ही अन्नपूर्णा है ,वो गृहलक्ष्मी है
मनोरम बनी है और दिल में रमी है
वो देवी करू रोज जिसका मैं पूजन
बिना जिसके लगता ,बड़ा सूना जीवन
जिसने संवारी ,मेरी जिंदगी है
वो पूजा है मेरी ,मेरी बंदगी है
मेरी पथप्रदर्शक ,सलाहकार है जो
इस जीवन की नैया की पतवार है जो
मेरा प्यार है वो ,मेरी वो मोहब्बत
मेरे दिल की दौलत है जिसकी बदौलत
है सबसे निराली ,बहुत खूब है वो
मेरी दिलरुबा ,मेरी महबूब है वो
जो जीवन में मेरे ,लाई रौशनी है
वो पत्नी ,प्रिया, मेरी अर्धांगिनी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।