बेचारे नीबू
भले हमारी स्वर्णिम आभा ,भले हमारी मनहर खुशबू
फिर भी बलि पर हम चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू
सारे लोग स्वाद के मारे ,हमें काटते और निचोड़ते
बूँद बूँद सब रस ले लेते ,हमें कहीं का नहीं छोड़ते
सब्जी,दाल,सलाद सभीका ,स्वाद बढ़ाने हम कटते है
सभी तरह की चाट बनालो ,स्वाद चटपटा हम करते है
हमें निचोड़ शिकंजी बनती , गरमी में ठंडक पाने को
हमको काट अचार बनाते ,पूरे साल ,लोग खाने को
बुरी नज़र से बचने को भी ,हमें काम में लाया जाता
दरवाजों पर मिरची के संग ,हमको है लटकाया जाता
टोने और टोटके में भी ,बढ़ चढ़ होता काम हमारा
नयी कार की पूजा में भी ,होता है बलिदान हमारा
कर्मकांड में बलि हमारी ,नज़रें झाड़ दिया करती है
ढेरों दूध ,हमारे रस की ,बूंदे फाड़ दिया करती है
चूरण और पचन पाचन में ,कई रोग की हम भेषज है
छोटे है पर अति उपयोगी ,हम मोसम्बी के वंशज है
हम भरपूर विटामिन सी से ,हर जिव्हा पर करते जादू
फिर भी हम बलि पर चढ़ते है ,हम तो है बेचारे नीबू
मदनमोहन बाहेती 'घोटू '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।