मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
मेरा घर संसार तुम्ही से
खुशियां और त्योंहार तुम्ही से
जो भी है सरकार तुम्ही से
सारा दारमदार तुम्ही से
मुझमे नवजीवन भरता है ,
मेरी सजनी प्यार तुम्हारा
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
चुटकी भर सिन्दूर मांग में ,
डाल फंसाया प्रेमजाल में
कैद किया मुझको बिंदिया में,
और सजाया मुझे भाल में
हाथों की हथकड़ी बना कर ,
मुझे चूड़ियों में है बाँधा
या फिर पावों की बिछिया में,
रहा सिमिट मैं सीधासादा
एड़ी से लेकर चोंटी तक ,
फैला कारागार तुम्हारा
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
नहीं मुताबिक़ अपने मन के ,
जी सकता मैं ,कभी चाह कर
पका अधपका खाना पड़ता ,
मुश्किल से ,वो भी सराह कर
गलती से ,कोई औरत की ,
तारीफ़ कर दी,खैर नहीं है
'कोर्ट मार्शल 'हो जाने में ,
मेरा ,लगती देर नहीं है
तुम्हारे डर आगे दबता ,
मन का सभी गुबार हमारा
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
तुम सजधज कर ,रूप बाण से ,
घायल करती मेरा तनमन
मात्र इशारे पर ऊँगली के,
नाच करूं मैं कठपुतली बन
जाने कैसा आकर्षण है
तुम्हारी मदभरी नज़र में
बोझा लदे हुए गदहे सा ,
भागा करता इधर उधर मैं
तुम को खुश रख कर ही मिलता ,
प्यार भरा व्यवहार तुम्हारा
मैं हूँ ताबेदार तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सुन्दर रचना
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