एक सन्देश-

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बुधवार, 15 मार्च 2023

कभी कभार 

रोज-रोज की बात न करता, कहता कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी ,तुम थोड़ा सा प्यार

 प्यासी आंखें निरखा करती ,तेरा रूप अनूप 
 हम पर भी तो पड़ जाने दो गरम रूप की धूप 
 हो जाएंगे शांत हृदय के ,दबे हुए तूफान 
 जन्म जन्म तक ना भूलूंगा, तुम्हारा एहसान
 मादक मदिरा के यौवन की यदि छलका दो जाम
 सारा जीवन ,न्योछावर कर दूंगा तेरे नाम 
 रहे उम्र भर ,कभी ना उतरे ,ऐसा चढ़े खुमार रोज-रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
 बरसा दिया करो हम पर भी, तुम थोड़ा सा प्यार
 
घड़ी दो घड़ी बैठ पास में सुन लो दिल की बात 
अपने कोमल हाथों से सहला दो मेरे हाथ 
ना मांगू चुंबन आलिंगन, ना मांगू अभिसार
मुझे देख तिरछी चितवन से मुस्कुरा दो एक बार 
 तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा करके यह उपकार लेकिन मुझको मिल जाएगा खुशियों का संसार 
मुझे पता है तुम जवान, मैं जाती हुई बहार 
 रोज रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी बस थोड़ा सा प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बीत गया फिर एक बरस 

लो बीत गया फिर एक बरस 
कुछ दिन चिंताओं में बीते,
कुछ दिन खुशियों के हंस हंस हंस 
लो बीत गया फिर एक बरस 

हर रोज सवेरे दिन निकला,
 हर रोज ढला दिन ,शाम हुई 
 कोई दिन मस्ती मौज रही 
 तो मुश्किल कभी तमाम हुई 
 सुख दुख ,दुख सुख का चक्र चला,
 जैसा नीयति ने लिखा लेख 
 जो भी घटना था घटित हुआ,
 हम मौन भुगतते रहे ,देख 
 जो होनी थी वह रही होती 
 कुछ कर न सके ,हम थे बेबस
 लो बीत गया फिर एक बरस 
 
 रितुये बदली ,गर्मी ,सर्दी ,
 आई बसंत ,बादल बरसे 
 जीना पड़ता है हर एक को 
 मौसम के मुताबिक ढल करके 
 परिवर्तन ही तो जीवन है,
 दिन कभी एक से ना रहते 
 हैं विपदा तो आनंद कभी 
 जीवन कटता सुख दुख सहते 
 आने वाले वर्षों में भी,
  यह चक्र चलेगा जस का तस 
  लो बीत गया फिर एक बरस 
  
ऐसे बीता, वैसे बीता,
या जैसे तैसे बीत गया 
उम्मीद लगाए बैठे हैं,
 खुशियां लाएगा वर्ष नया 
 पिछले वर्षों के अनुभव से 
 हमने जो शिक्षा पाई है 
 वह गलती ना दोहराएंगे 
 यह हमने कसमें खाई है 
 कोशिश होगी आने वाला
 हर दिन हो सुखद, हर रात सरस 
 लो बीत गया फिर एक बरस

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदलाव 

जीवन बड़ा हसीन ना रहा ,जो पहले था
 मन उतना रंगीन ना रहा ,जो पहले था 
 
अब लगाव कम हुआ, विरक्ति भाव आ गया
ईश्वर के प्रति थोड़ा भक्ति भाव आ गया 
मोह माया से धीरे-धीरे उचट रहा मन 
कहीं न टिकता, इधर उधर ही भटक रहा मन 
खुद पर कोई यकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था 

कुछ करने को पहले जैसा जोश नहीं है 
जो होता है, हो जाता है, होश नहीं है 
धीरे-धीरे समय हाथ से फिसल रहा है 
जीने के प्रति सोच, नजरिया बदल रहा है 
जीवन अब शौकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
झुक गया इंसान

जमाने भर के बोझे ने,कमर मेरी झुका दी है ,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा 
दुखी है मन मेरा कहता ,सताया और जो मुझको,
 तुम्हारा चैन,सुख खुशियां ,सभी कुछ लूट जाऊंगा

 झुकी नजर तुम्हारी थी, तुम्हारा रूप मस्ताना झुका था में तुम्हारी आशिकी में होकर दीवाना 
तुम्हें पाने की हसरत में किए समझोते झुक झुक कर 
न था मालूम जीवन भर ,पड़ेगा झुक के पछताना 
मेरी दीवानगी का फायदा तुम भी ले रही इतना 
सब्र का बांध कहता है, बस करो ,टूट जाऊगा
जमाने भर के बोझे ने , कमर मेरी झुका दी है,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

 मेरे दाएं, मेरे बाएं ,मुसीबत ढेर सारी है 
 परेशां मन कभी रहता, कभी कोई बीमारी है  सुकूं से जी नहीं पाता, कभी भी एक पल दो पल
 तुम्हारी जी हजूरी में ,बिता दी उम्र सारी है बहुत गुबार,गुब्बारे में, दिल के हैं शिकायत का,
 हवा इसमें भरो मत तुम, नहीं तो फूट जाऊंगा
 जमाने भर के बोझे ने कमर मेरी झुका दी है ,
 और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गलतफहमी 

तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद 
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत 
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद 
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
  यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था 
 तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग 
 या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग 
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था 
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
 या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने 
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार 
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी 
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से 
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 8 मार्च 2023

तेरा अबीर, तेरी गुलाल 
सब लाल लाल ,सब लाल लाल 

इस मदमाती सी होली में 
जब ले गुलाल की झोली में 
आया तुम्हारा मुंह रंगने

तुम शर्माई सी बैठी थी ,
कुछ सकुचाई सी बैठी थी 
मन में भीगे भीगे सपने 

मैंने बस हाथ बढ़ाया था
तुमको छू भी ना पाया था,
लज्जा के रंग में डूब गए,
 हो गए लाल ,रस भरे गाल 
 तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
 सब लाल लाल, सब लाल लाल

 मेहंदी का रंग हरा लेकिन,
 जब छू लेती है तेरा तन 
 तो लाल रंग छा जाता है 
 
प्यारी मतवाली आंखों में ,
इन काली काली आंखों में ,
रंगीन जाल छा जाता है 

होठों पर लाली महक रही 
चुनर में लाली लहक रही 
है खिले कमल से कोमल ये,
रखना संभाल, पग देखभाल 
तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
सब लाल लाल, सब लाल लाल 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 6 मार्च 2023

यह मेरा घर 

यह तेरा घर, यह मेरा घर 
यह खुशबुओं से तरबतर 
महक हमारे प्यार की ,
सभी तरफ ,इधर-उधर 

यहां पूजा घर में राम है 
बंसी बजाते श्याम है 
हरते गणेश ,सारे क्लेश,
 और रखवाले हनुमान हैं 
 
यह रोज आरती होती है 
जलती माता की ज्योति है 
यहां अगरबत्तियां जल जल कर ,
खुशबू से देती घर को भर 

यहां गमले में फुलवारी है 
हर फूल की खुशबू प्यारी है 
जूही गुलाब चंपा खिलता 
खुशबू और स्वाद सदा मिलता 

जब पके रसोई में भोजन 
तो खुशबू से ललचाता
 मन 
जब हलवा सिक कर महकाता
पानी सब के मुंह में आता 

जब गरम पकोड़े जाय तले
लगते हैं सबको बहुत भले
और छौंक दाल जब लगती 
तो भूख पेट की है जगती 

अम्मा कमरे से पेन बाम 
की खुशबू आती सुबह शाम 
यहां ओडोमास की खुशबू से ,
करते हैं तंग नहीं मच्छर 
यह तेरा घर यह मेरा घर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
विनती 

प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा 
मैंने हरदम तेरा नाम जपा 
श्रद्धा भक्ति से पूजा की ,
मंदिर में जाकर कई दफा 

 मैने कई बार प्रसाद चढ़ा 
 चालीसा भी हर बार पढ़ा
  और तेरे भजन कीर्तन में ,
  भाग लिया था बढ़ा चढ़ा 
  लेकिन इतनी सेवा का भी,
  मिला मुझको नाही कोई नफा
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा 

पूजा की और हवन भी किया 
पंडित जी को भी दान दिया 
नित सुबह शाम आराधन कर,
 मैंने बस तेरा नाम लिया 
 पर मुझे न कुछ ईनाम मिला ,
 ये कैसी बतला तेरी वफा 
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा

 तू तो बस चुप चुप रहता है
 और हमें नहीं कुछ देता है 
 क्या तू अपने सब भक्तों की ,
 बस यूं ही परीक्षा लेता है 
 अब एक लॉटरी खुलवा दें ,
 इनाम दिला दें अबकी दफा 
 प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तेरा आना 

तुम आती तो रजनीगंधा, दिन में भी महकने लगती है 
ठिठुराती सर्द शिशिर में भी, कोकिल सी कुहुकने  लगती है 
एक आग मिलन की गरमी की,मेरे दिल में दहकने लगती है
 दिल मेरा चहकने लगता है ,मेरी चाल बहकने लगती है 
 तेरे आने की आहट से ,मन में छा जाती
  मस्ती है 
  बिजलियां सैंकड़ों गिर जाती,जब तू मुस्कुराती हंसती है 
 तेरी मतवाली चाल देख ,भूचाल सा मन में 
 उठता है 
 ऐसी हो जाती हालत है कि चैन हृदय का
  लुटता है 
  मन करता मेरे आस-पास, तुम बैठो यूं ही नहीं जाओ 
  मैं पियूं रूप रस , घूंट घूंट,तुम प्यार की मदिरा छलकाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दो का ठाठ 

हो अगर अकेला कोई तो, 
मुश्किल से वक्त कटा करता,
पर जब दो मिलकर दोस्त बने,
 तो अच्छी संगत कहते हैं 
 
जब एक आंख मारी जाती,
 तो उसे छेड़खानी कहते ,
 पर जब दो आंखें मिल जाती,
 तो उसे मोहब्बत कहते हैं 
 
हो एक टांग तो फिर उस से ,
आगे ना कदम बढ़ा सकते ,
दो टांगे जब संग चलती है ,
तब कोई आगे बढ़ता है 

एक होंठ अकेला बेचारा,
कुछ काम नहीं कर सकता है ,
दो होंठ मगर जब मिलते हैं,
तब ही चुंबन हो सकता है

हो अगर अकेला एक हाथ ,
तो बस चुटकी बज सकती है ,
दो हाथ मगर जब मिल जाते ,
तो फिर बज जाती ताली है 

इंसान अकेला हो घर में ,
तो काटा करता है सूनापन,
 घर में रौनक छा जाती है ,
 जब आ जाती घरवाली है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नवजीवन

 मैंने नवजीवन पाया है 
 विपदा के बादल ने सूरज को घेरा था 
 सहमी सहमी किरणों ने भी मुंह फेरा था
 क्षण भर को यूं लगा रोशनी लुप्त हो गई,
 आंखों आगे जैसे छाया अंधेरा था 
 पर अपनों की दुआ, हवा बन ऐसी आई,
 धीरे-धीरे से प्रकाश फिर मुस्कुराया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 भूले भटके किए गए कुछ कर्म छिछोरे 
 इस जीवन में या कि पूर्व जनम में मोरे 
 कभी हो गए होंगे जो मुझसे गलती से ,
 मुझे ग्रसित करने को मेरे पीछे दौड़े 
 किंतु पुण्य भी थोड़े बहुत किये ही होंगे ,
 जिनके फलस्वरूप ही यह तम हट पाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 जीवन के सुखदुख क्रम में ,दुख की बारी थी 
 जो यह काल रूप बन आई बीमारी थी 
 हुआ अचेतन तन था ,मन भी था घबराया,
 ऐसा लगता था जाने की तैयारी थी 
 लेकिन करवा चौथ ,कठिन व्रत पत्नी जी का जिसके कारण हुई पुनर्जीवित काया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 शायद तीर्थ भ्रमण, दर्शन ,पूजन ,आराधन 
 या कि बुजुर्गों की आशिषें, आई दवा बन 
 या कि चिकित्सक की भेषज ने असर दिखाया या की हस्तरेखा में शेष बचा था जीवन जाते-जाते शिशिर हुई है फिर बासंती
 मुरझाए फूलों को फिर से महकाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 अब जीवन स्वच्छंद रहा ना पहले जैसा अनुशासन में बंध कर रहना पड़े हमेशा 
 खानपान पर कितने ही प्रतिबंध लग गए,
 खुलकर खाओ पियो ना तो जीवन कैसा 
 जीभ स्वाद की मारी तरस तरस जाती है,
  ऐसा बढ़ी उमर ने उसको तड़फाया है 
  मैंने नवजीवन पाया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

फिसलन

जब मैं जवान था तेज भरा ,
मस्ती में इठलाया करता 
मुड़ जाती नजर हसीनों की ,
जब इधर-उधर जाया करता 
कोई डोरे डाल फसा ना ले,
 मेरी पत्नी जी डरती थी 
 जब भी मैं बाहर जाता था,
 वह मेरे संग ही चलती थी 
 मुझ पर चौकीदारी करती,
 कितनी ,कैसी, क्या बतलाऊं 
 चक्कर में किसी हसीना के ,
 वह डरती , मैं न फिसल जाऊं
 मन डगमग बहुत हुआ ,
 जब भी कोई मौका आया
 पर पत्नी के अनुशासन में ,
 रह कर मैं फिसल नहीं पाया
 
कट गई जवानी ऐसे ही,
क्या याद करूं अगला पिछला 
दिल डगमग डगमग बहुत किया ,
ना तब फिसला, ना अब फिसला
आ गया बुढ़ापा है लेकिन,
तन मेरा है डगमग डगमग 
पत्नी रखती मुझको संभाल,
पल भर भी होती नहीं अलग 
मैं जब भी कभी कहीं जाता ,
वह हाथ थाम कर चलती है 
ठोकर खा फिसल नहीं जाऊं,
 वो मुझे बचा कर रखती है 
 अब वृद्ध हुआ, मैं ना फिसला ,
 बस यूं ही जिंदगी निकल गई 
 फिसलन से रहा सदा बच कर ,
 पर उमर हाथ से फिसल गई

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023



मैं इक्यासी
जन्म दिवस का पर्व मनाते खुशियों से हम 
जब कि बढ़ती उम्र, घट रहा जीवन हर क्षण समझ ना पाते बात जरा सी 
मैं इक्यासी
अब तक जी भरपूर जिंदगी और सुख भोगे दुनिया घूमी, रहा खेलता संग खुशियों के धीरे-धीरे किंतु व्याधियों ने आ घेरा 
क्षीण हुआ तन और उत्साह घट गया मेरा 
जिस चेहरे पर हंसी खिला करती थी हरदम,
 उस पर छाई, आज उदासी 
 मैं इक्यासी
 क्या गुजर रहा है वक्त पड़े रहते बिस्तर पर
  तरह तरह के ख्याल सताते रहते दिन भर 
  वक्त न कटता बैठे ठाले, हुए निकम्मे 
  पहले सी चुस्ती फुर्ती अब बची ना हममें
  मनपसंद सारे भोजन है अब प्रतिबंधित,
  हुई मुसीबत अच्छी खासी 
   मै इक्यासी
  बेटी ,बेटे ,भाई बहन और संबंधी जन 
  पत्नी जिसने साथ निभाया पूरे जीवन
 दोस्त सखा जो सदा सहायता को थे तत्पर
  इन सब का एहसान न भूलूंगा जीवन भर जन्मों-जन्मों मिलता रहे प्यार इन सब का
   इसी खुशी का, हूं अभिलाषी 
   मैं इक्यासी 
   
 डूब रहा है सूरज पर किरणे स्वर्णिम है 
 किंतु हौंसले है बुलंद ,वे हुऐ न कम है 
जब तक तन में सांस ,तब तलक आस बची है मस्ती से जिएंगे ,हम ने कमर कसी है 
अभी ताजगी बसी हुई है इस जीवन में
 बूढ़ा हूं पर हुआ न बासी
 मैं इक्यासी 

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

शंकर वंदन

जय जय शिवशंकर महादेव 
तू मेरा सहारा एकमेव 
गौरी गणेश हर रहे क्लेश
मेरी रक्षा करते महेश 
तू बैजनाथ ,केदारनाथ 
मेरे सर तेरा वरद हाथ 
तू विश्वनाथ ,तू महाकाल 
तू करता मेरी देखभाल 
तू नागेश्वर ,भीमाशंकर 
बरसाता सदा कृपा मुझ पर 
तू मलिकार्जुन ,तू सोमनाथ 
रहता सुख दुख में सदा साथ 
तू घृष्णेश्वर, तू रामेश्वर 
कर दर्शन जीवन हुआ सफल 
तू त्रबकेश्वर, तू ओंकार 
तुझको प्रणाम है बार-बार 
तू त्रिपुरारी ,तू अविनाशी 
तू कैलाशी ,काशीवासी 
नंदी वाहन पर हो सवार 
सब पर तू बरसा रहा प्यार 
है चंद्र विराजे मस्तक पर 
है सर्प गले ,तू गंगाधर 
ओम हर हर हर हर शिव शंकर 
भोले भंडारी, प्रलयंकर,
 मेरी रक्षा करना सदैव 
 जय जय शिव शंकर ,महादेव

मदन मोहन बाहेती घोटू
चटनी 

तू लहराती हरे धने सी 
मैं हूं पत्ती पुदीने की 
मिलते हैं गुणधर्म हमारे 
हम दोनों में अच्छी पटनी

तो आओ फिर दिल की सिल पर ,
संग संग आपस में मिलकर, 
पिस कर एक जान हो जाए,
हम और तुम बन जाए चटनी 

हरी मिर्च सी छेड़छाड़ हो 
और मसालेदार प्यार हो 
नींबू रस की पड़े खटाई 
और लवण से मिले लुनाई
थोड़ी सी हो मीठी संगत 
जीवन में आ जाए रंगत 
ऐसा निकले रूप मनोहर 
नजर नहीं कोई की हटनी 
हम और तुम बन जाए चटनी 

चाट पकौड़ी आलू टिकिया 
दही बड़े भी लगते बढ़िया 
चाहे सभी स्वाद के मारे 
खायें ले लेकर चटकारे 
संग एक दूजे का पाकर 
अलग अलग अस्तित्व भुला कर 
मिलजुल एकाकार प्यार से ,
सुख से यूं ही जिंदगी कटनी 
हम और तुम बन जाए चटनी

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

गांठ 

धागे अमर प्रेम के ,अगर टूट जाते हैं 
भले गांठ पड़ जाती है पर जुड़ जाते हैं 
शादी का बंधन है जनम जनम का बंधन
यह रिश्ता तब बनता जब होता गठबंधन 
अगर गांठ में पैसा है, दुनिया झुकती है 
बात गांठ में बांधी, सीख हुआ करती है 
लोग गांठते रहते ,मतलब की यारी है 
 रौब गांठने वाले ,पड़ जाते भारी हैं 
किसी सुई में जब भी धागा जाए पिरोया 
बिना गांठ के फटा वस्त्र ना जाता सिया 
कंचुकी हो या साड़ी सबके मन भाते हैं 
बिना गांठ के ये तन पर ना टिक पाते हैं 
खुली गांठ ,कितने ही राज खुला करते हैं 
गांठ बांध रस्सी पर ,सीढ़ी से चढ़ते हैं 
बिना गांठ, नाड़ा भी रस्सी का टुकड़ा है 
गांठों के बंधन ने हम सबको जकड़ा है 
बाहुपाश भी तो एक गाठों का बंधन है 
गांठ पड़ गई तो क्या ,जुड़े जुड़े तो हम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जीवंत जीवन 

अब जीवन जीवंत हो गया 
राग द्वेष तज, संत हो गया 

ऐसा ज्ञान प्रकाश मिल गया 
मन का सोया कमल खिल गया 
जागृत अंग अंग है तन का 
जगमग हर कोना है मन का 
सुख, प्रकाश, अनंत हो गया 
अब जीवन जीवंत हो गया 

नव ऊर्जा है नव उमंग है 
हुआ प्रफुल्लित अंग अंग है 
ऐसा लगता उग आए पर 
भर उड़ान, मैं छू लूं अंबर 
यह मन एक पतंग हो गया 
अब जीवन जीवंत तो हो गया 

तन में नई चेतना आई 
महक उठी मन की अमराई 
फूल खिल गए उपवन उपवन 
लगता बदला बदला मौसम 
था जो शिशिर,बसंत हो गया 
अब जीवन जीवंत हो गया 

आई कितनी ही विपदायें
व्याधि , रोग और कई बलायें
 मैं सब से टकराया , जूझा 
 सच्चे मन से प्रभु को पूजा 
 खुशी मिली ,आनंद हो गया 
 अब जीवन जीवंत तो हो गया 
 
भूले अपना और पराया 
सबको अपने गले लगाया 
समझे मर्म सभी धर्मों का 
पथ अपनाया सत्कर्मों का
इच्छाओं का अंत हो गया 
अब जीवन जीवंत हो गया 

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

दे के उपहार इतने पटाया उन्हें 
प्यार में उनके तो मेरा घर लुट गया 
कहां से लाऊंगा खर्च हनीमून का, 
जो था मेरा खजाना सभी खुट गया 
क्या पता था कि आसां मोहब्बत नहीं,
इसमें पड़ता है पापड़ बहुत बेलना 
जैसे तैसे अगर शादी हो भी गई 
बाद में पड़ता है मुश्किलें झेलना
जो तुम खाओ तो पछताओ, ना खाओ तो भी शादी बूरे के लड्डू है ,क्या कीजिए 
दुर्गति है तुम्हारी हरेक हाल में 
शौक से जिंदगी का मजा लीजिए

मदन मोहन बाहेती घोटू
ना तो छप्पन भोग , न ही छत्तीसों व्यंजन ,
 बस दो रोटी ,दाल यही जरूरत जीवन की 
 आए खाली हाथ, जाओगे तुम वैसे ही ,
 जाती कभी न साथ तिजोरी कोई धन की 
 करो सदा सत्कर्म ,सहायता, सेवा सबकी ,
 ये ही सच्चा धर्म , काम में जो आएगा 
 गमनआगमन के चक्कर से मोक्ष दिला कर
 तुम्हे स्वर्ग का अधिकारी जो बनवायेगा 

मदन मोहन बाहेती घोटू
 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

बीमारी के बाद

आई बीमारी ,दुख दे भारी, मुझे सता कर चली गई 
विपदाओं से कैसे लड़ते , राह बता कर चली गई
 बीमारी ने त्रास तो दिया ,मगर सिद्ध वरदान हुई 
मूल रोग का गया, जिंदगी अब ज्यादा आसान हुई 
खाने पीने के परहेज का ,मुझे कायदा सिखा दिया 
तन मन में आई फुर्ती से ,मुझे फायदा दिखा दिया 
 थी बैयांलिस इंच कमर जो घटकर अब छत्तीस हुई 
मोटी और थुलथुली काया, नाजुक और नफीस हुई 
कंचन सा तन हुआ,दब गई ,तोंद बहुत जो थी निकली 
वजन घटा पच्चीस किलो तक ,चेहरे पर रौनक बिखरी
पोष्टिक और अच्छी खुराक ने मुझ को सेहतमंद किया
पत्नी ने भी रौब दिखाकर ,काम कराना बंद किया 
लगा नियंत्रण अब मीठे पर, कम खाना नमकीन हुआ 
भोजन में अब अहम विटामिन और शामिल प्रोटीन हुआ 
थोड़े दिन तकलीफ हुई पर धीरे-धीरे खुशी मिली 
फिर से जिंदादिली आ गई ,तबीयत रहती खिली खिली
 निखर गया व्यक्तित्व, चेहरा, अब फिर से मासूम हुआ 
 तंदुरुस्ती है बड़ी नियामत, यह सच अब मालूम हुआ 
रहे निभाते जिम्मेदारी और खुद का ना ख्याल रखा 
यही भूल थी जिसके कारण बीमारी का स्वाद चखा 
अब अपनों के अपनेपन का, भी इजहार हुआ दूना
सब आ मिलते, चहल पहल है,जीवन नहीं रहा सूना
हुई नियंत्रित दिनचर्या है और व्यवस्थित जीवन है 
सोते सुख की नींद प्रेम से,बदल गया जीवन क्रम है 
जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी आया है परिवर्तन
हुआ मानसिकता में शामिल ,अब प्रभुभक्ति ,दया, धरम
जीवन सुख दुख का संगम है, सुख न मिले बिन दुख पाये
किंतु पर्व अनुशासन का था वो, अब अच्छे दिन हैं आए 
व्यर्थ परेशानी चिंता में ,अब तुम जीवन मत जियो 
हंसी खुशी से रहो हमेशा, मनचाहा खाओ पियो
 जो आया है वह जाएगा कटु सत्य यह जीवन का 
इसीलिए तुम मजा उठाओ जीवन के हर पल क्षण का 
जितना प्यार लुटा सकते हो ,तुम सब पर बौछार करो 
सब संग सत्व्यवहार करो तुम, प्यार करो बस प्यार करो

मदन मोहन बाहेती घोटू 


रविवार, 5 फ़रवरी 2023

बड़ी खुशनुमा जिंदगी थी हमारी 
कटी जा रही थी खरामा खरामा
किसी की नजर पर ,लगी ऐसी हम पर,
गए भूल सारा ही, हंसना हंसाना 

न तुम ही थके थे ,ना हम ही थके थे,
 बड़ा जिंदगी का सफर था सुहाना
 न लेना किसी से ,न देना किसी को,
 सभी से मोहब्बत का रिश्ता निभाना 
 बड़ी खुशनुमा जिंदगी थी हमारी,
 कटी जा रही थी खरामा खरामा
 किसी की नजर पर, लगी ऐसी हम पर
 गए भूल सारा ही हंसना हंसाना 

दुनिया को देखा,समझ में ये आया,
गया है बदल किस क़दर ये जमाना
सभी को पड़ी है ,बस अपनी अपनी,
भुलाया है लोगों ने रिश्ते निभाना 
 सदा ढूंढते हैं ,कमी दूसरों की 
 कैसा है कोई फलाना ढिकाना 
  भरा मैल कितना है मन में हमारे ,
  नहीं साफ करते हैं हम वो ठिकाना
  
   रिश्तों की करना ,कदर जानते वो,
   देखा है जिनने, पुराना जमाना 
   सुख-दुख सभी भोगना पड़ रहा है ,
   चुकाते हैं कर्मों का कर्जा पुराना
   कभी तो हंसी है लबों पर थिरकती,
   कभी आंख से आंसुओ का बहाना
   कभी डगमगाते,कभी खिलखिलाते,
   इतना सा है बस हमारा फसाना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 23 जनवरी 2023

कुछ चेहरे 

मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

पहला चेहरा पिताश्री का 
अनुशासन है जिन से सीखा 
मिलनसार कर्मठ और हंसमुख 
धर्मनिष्ट,सेवा को उन्मुख 
बाहर सख्त ,मुलायम था मन 
जिनके कारण संवरा जीवन 
मैंने जिनके आदर्शों से ,
संस्कार पाये हैं गहरे 
मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

याद बहुत आती है मां की 
जो एक मूरत थी ममता की 
नयनो से था नेह उमड़ता 
और विचारों में थी दृढ़ता 
जिसने हर पल मुझे संभाला 
लाड़ दुलार प्यार से पाला 
जिसके आशीर्वादो से ही ,
पूर्ण हुए सब स्वप्न सुनहरे 
मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

याद आती वह प्यारी दादी 
भोली भाली ,सीधी सादी 
कार्य कुशल ,साहस की मूर्ति 
उम्र अधिक पर कायम फुर्ती 
सब बच्चों पर प्यार लुटाती
सुना कहानी ,मन बहलाती 
जिसके संरक्षण में बीते,
 बचपन के वो दिन सुनहरे 
 मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे 
 
 भाई बहन का रिश्ता प्यारा 
 बचपन जिनके साथ गुजारा
 प्यारी पत्नी, प्यार लुटाती 
 हर सुख दुख में साथ निभाती
 प्यारा बेटा ,प्यारी बिटिया 
 ले आए जीवन में खुशियां 
 जिनने, सबने सदा निभाए,
 परिवार के रिश्ते गहरे 
 मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे 
 
फिर कुछ अपने और पराए 
कार्यक्षेत्र में जो टकराए  
कोई मोहब्बत ,कुछ मतलब के 
अलग-अलग है किस्से सबके 
कुछ प्रति मन में प्यार जगा भी
उनमें कुछ ने मुझे ठगा भी
कभी किसी ने प्यार लुटाया,
 घाव दे गया कोई गहरे 
 मेरे जीवन के कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सर्दी की सीख 

जाते-जाते सीख दे गया ,
मौसम सर्दी भरा भयंकर 
कोई कुछ न बिगाड़ सकेगा ,
अगर रखोगे खुद को ढक कर

चाहे हवा हो चुभने वाली ,
या फिर ठिठुराता मौसम हो
 चाहे कोहरा कहर ढा रहा,
 और हो गया सूरज गुम हो 
 भले धूप ने फेर लिया हो ,
 इस दुख की बेला में मुख हो
 परिस्थिति अनुकूल नहीं हो,
 उल्टा अगर हवा का रुख हो 
 ऐसे में अपना बचाव तुम ,
 करो यही है अति आवश्यक
 शीत शत्रु से बदन बचाओ ,
 कंबल और रजाई से ढक 
 और यह सबसे बेहतर होगा,
  छुपे रहो तुम घर के अंदर 
  जाते-जाते सीख दे गया 
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 
  
 जीवन सुख दुख का संगम है 
 कभी सर्द है,कभी गरम है 
 नहीं जरूरी, हर स्थिति में ,
 टक्कर लेना ही उत्तम है 
 कभी-कभी अज्ञातवास में ,
 पांडव जैसा रहना छुप कर 
 जीवन के संघर्ष काल में,
 अक्सर हो सकता है हितकर 
 यह कमजोरी नहीं तुम्हारी 
 किंतु खेल का एक दाव है 
 शत्रु अगर हावी है तुम पर,
 तो झुक जाने मे बचाव है 
 बिना लड़े ही जीत जाओगे,
 अगर रहोगे थोड़ा बचकर 
 जाते जाते सीख दे गया ,
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

सोमवार, 9 जनवरी 2023

दिल्ली की सरदी

यह दिल्ली की सर्दी है 
जुल्मी और बेदर्दी है 
चुभती सर्द हवाओं ने ,
हालत पतली कर दी है 

तड़फाती है शीतलहर 
कोहरा भी ढा रहा कहर 
हाथ न सूझे हाथों को 
नींद ना आती रातों को 

गिरती बर्फ पहाड़ों में 
दिल्ली कांपे जाड़ों में 
है प्रचंड सर्दी पड़ती 
सितम ठंड ढाने लगती 

सूरज ने हड़ताल करी 
और धूप है डरी डरी 
इतनी ज्यादा ठिठुरन है 
थरथर कांप रहा तन है 

शाल ,स्वेटर ,कार्डिगन 
इससे बचने के साधन 
लोग अलाव जलाते हैं 
थोड़ी राहत पाते हैं 

मत निकलो घर से बाहर
 दुबक रहो ,ओढ़ो कंबल 
 गरम पकोड़े तलवाओ
 गाजर का हलवा खाओ
 
 गर्म चाय के प्याले  ने,
  थोड़ी उर्जा भर दी है 
  यह दिल्ली की सर्दी है 
  जुल्मी और बेदर्दी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 8 जनवरी 2023

यह जीवन है कितना विचित्र 
है शत्रु कभी तो कभी मित्र 

लगता फूलों की सेज कभी,
 सुंदर प्यारा और महक भरा 
 तो लगता कभी कि जैसे हो 
 सर पर कांटों का ताज धरा 
 यह पल पल रूप बदलता है 
 है स्वर्ग कभी तो नर्क कभी 
 जब जीते तब मालूम पड़ता 
 सुख का और दुख का फर्क तभी
 कैसा होता दुख की कीचड़ 
 कैसी सुख की गंगा पवित्र
  यह जीवन है कितना विचित्र
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
   कुछ सुख के साथी होते हैं 
   ना पास फटकते जो दुख में 
   कुछ छुपा बगल में रखे छुरी 
  रटते हैं राम नाम मुख में 
  व्यवहार बदलता लोगों का
   वैभव में और कंगाली में 
   देते हैं साथ मित्र सच्चे 
   दुख में हो या खुशियाली में 
   संकट में ही मालूम पड़ता 
   लोगों का है कैसा चरित्र 
   यह जीवन है कितना विचित्र 
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
जग जंजालो में फंसा कभी 
उड़ता उन्मुक्त बिहंग कभी
 यह संगम खुशियों का गम का 
 बदले मौसम सा रंग कभी
 हालात बदलते पल पल में 
 है गरल कभी तो सुधापान 
 वीरानापन ,तनहाई कभी
 शहनाई कभी तो मधुर गान 
बहता गंदा नाले जैसा,
बन जाता गंगा का पवित्र 
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र

मदन मोहन बाहेती घोटू 
आती है मां याद तुम्हारी 

स्नेह उमड़ता था आंखों से,
 तुम ममता की मूरत प्यारी 
 आती है मां ,याद तुम्हारी
 
 हमने पकड़ तुम्हारी उंगली ,
 धीरे धीरे चलना सीखा 
 आत्मीयता और प्रेम भाव से,
  सब से मिलना जुलना सीखा 
  सदाचार, सन्मान बड़ों का ,
  और छोटो पर प्यार लुटाना 
  मुश्किल और परेशानी में ,
  हरदम काम किसी के आना 
  तुम्हारी शिक्षा दिक्षा से ,
  झोली भर ली संस्कार की 
  सत्पथ पर चलना सिखलाया
  मूरत थी तुम सदाचार की 
   संस्कृती का ज्ञान कराकर 
   तुमने सब की बुद्धि संवारी
   आती है मां याद तुम्हारी 
    
भाई बहन और परिवार को ,
एक सूत्र में रखा बांधकर 
अब भी अनुशासन में रहते
 हैं हम सब ही,तुम्हें याद कर 
 जीवन जिया स्वाभिमान से
  हमको भी जीना सिखलाया 
  ईश्वर के प्रति श्रद्धा भक्ति 
  धर्म ज्ञान तुमने करवाया 
  रीति रिवाज पुराने जिंदा
   तुमने रखे, पालते हैं हम 
   चल तुम्हारे चरण चिन्ह पर,
   आज जी रहे सुखमय जीवन 
   तुम्हारे ही आदर्शों ने 
   हमें बनाया है संस्कारी 
   आती है मां याद तुम्हारी 
   
माता तुम वात्सल्य मूर्ति थी 
नयनों में था नेह उमड़ता
दिखने में थी भोली-भाली ,
किंतु विचारों में थी दृढ़ता 
तुमने हमें सिखाई नेकी ,
धीरज और विवेक सिखाया 
परोपकार का पाठ पढ़ा कर
 एक भला इंसान बनाया 
सदा प्रेरणा देती रहती 
आती रहती याद हमें तुम 
अब भी दूर स्वर्ग में बैठी 
देती आशीर्वाद हमें तुम
 तुम्हारे पद चिन्हों पर चल 
 जीवन आज हुआ सुखकारी 
 आती है मैं याद तुम्हारी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

नींद

जब मैं नन्हा शिशु होता था 
लगती भूख बहुत रोता था 
दूध पिला ,मां देती थपकी 
तब मुझको आती थी झपकी
 सुख दायक मां की गोदी थी 
 वह मासूम नींद होती थी 
 
बड़ा हुआ ,कर दिनभर मस्ती
 जब थक जाता ,छाती सुस्ती 
 नाश्ते में जो भी मिल जाता 
 खा लेता, थक कर सो जाता 
 ना चिंता ना कोई फिकर थी 
 वह निश्चिंत नींद सुख कर थी
 
 शुरू हुआ फिर स्कूल जाना 
 बस्ता लाद, सुबह रोजाना 
 करो पढ़ाई स्कूल जाकर 
 होमवर्क करना घर आकर 
 जब हो जाती पलके भारी 
 आती नींद बड़ी ही प्यारी 
 
आई जवानी, उम्र बढ़ गई 
और किसी से नजर लड़ गई 
डूबा  रह उसके ख्वाबों में 
रस आता उसकी यादों में 
आती नींद ,न पर सोता था 
उसके सपनों में खोता था 

पूर्ण हुए जब सपने मेरे 
उसके साथ ले लिए फेरे 
हम पति-पत्नी प्रेमी पागल 
रहते डूब प्रेम में हर पल 
मधुर प्रेम क्रीड़ा मनभाती
हमें रात भर नींद ना आती 

बीत गए दिन मस्ती के फिर 
बोझा पड़ा गृहस्थी का सिर 
जिम्मेदारी मुझ पर आई 
करने  मैं लग गया कमाई 
धन अर्जन में मन उलझाता
नहीं ठीक से ,मैं सो पाता 

जब धन दौलत युक्त हुआ मैं
 जिम्मेदारी मुक्त हुआ मैं
 कितनी बार भले दिल टूटा 
 माया से पर मोह न छूटा 
 नहीं चैन मिल पाता दिन भर 
 सोता करवट बदल बदल कर 
 
अब जीवन अंतिम पड़ाव पर 
जीने का ना गया चाव पर 
यात्रा का आ गया छोर है 
पर जीने की चाह और है 
पास ईश्वर जब बुलायेगा 
चिर निद्रा में चैन आएगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 4 जनवरी 2023

बदलाव  

इतनी जल्दी में कितना कुछ बदल गया है 
ऐसा लगता जैसे समय हाथ से फिसल गयाहै दोपहरी की धूप करारी , कुनकुनी हो गई है 
जोश की उड़ती उमंगे अनमनी हो गई है 
दिमाग जो हमेशा जोड़-तोड़ में भटकता रहता था 
थोड़े से फायदे और नुकसान में अटकता रहता था 
वह भी आजकल थोड़ा किफायती होने लगा है 
मित्रों और परिवार का हिमायती होने लगा है भगवान में आस्था और विश्वास करने लगा है दुष्कर्म और पाप से मन अब डरने लगा है 
लंबे जीने की लालसा बलवती होने लगी है 
कुछ याद नहीं रहता, याददाश्त खोने लगी है
 भूख तो मर गई पर स्वाद पीछा नहीं छोड़ता 
 यह मन अभी भी वासनाओं की तरफ दौड़ता 
जिससे निकट भविष्य में होने वाला बिछोह है उनके प्रति दिनों दिन बढ़ रहा मोह है 
 काम-धाम कुछ भी नहीं ,न करने की क्षमता है 
 यूं ही बैठे ठाले पर वक्त भी नहीं कटता है
  हंसता हूं,मुस्कुराता हूं ,और जिए जाता हूं
यह नियम है नियती का ,खुद को समझाता हूं 
कोई जिम्मेदारी नहीं, फिर भी रहता मन बेचैन है 
  क्या यह सब परिवर्तन ,बढ़ती उम्र की देन है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
धूप 

कुछ धूप सुबह की खिली खिली 
छत पर बिखरी,उजली उजली 
तन में सुषमा ,मन में ऊष्मा 
सुंदर लगती ,निखरी निखरी

 सच्ची सुखदायक सर्दी में 
 मन मोह रही है तपन भरी 
 हर्षित करती है मृदुल छुअन
  छत पर ,आंगन में ,गली गली
  
   
संध्या होते तक थक जाती ,
पीली पड़ जाती, मरी मरी 
सूरज उसको लेता समेट,
वह छुप जाती है डरी डरी

मदन मोहन बाहेती घोटू
स्वर्ग और नर्क 

पुण्य करो तो स्वर्ग मिलेगा ,
पाप करो तो नर्क जाओगे 
गंगा में स्नान करो तुम, 
पाप कटें ,सद्गति पाओगे 
 न तो नर्क ना स्वर्ग कहीं पर,
 ये सब तो कपोल कल्पित है 
 तरह तरह की बातें करके 
 लोग हमें कर रहे भ्रमित है
  
जन्म कुंडली में तुम्हारी ,
राहु केतु कर रहे बखेड़ा 
और गुरु की वक्र दृष्टि है,
 मंगल का मिजाज है टेढ़ा
  कभी शनि की साढ़ेसाती 
  चंद्र नीच का ,कभी कुपित है 
  तरह तरह की बातें करके ,
  लोग हमें कर रहे भ्रमित है 
  
बहुत कठिन ग्रह दशा चल रही,
 महामृत्युंजय जाप कराओ 
 शनिवार को शनि मंदिर जा ,
 शनिदेव पर तेल चढ़ाओ 
 पूजा-पाठ यज्ञ करवाओ 
 पितृदोष कर रहा व्यथित है
  तरह-तरह की बातें करके,
   लोग हमें कर रहे भ्रमित है 
   
इस जीवन में दान करो तुम
 अगले जीवन में सुख पाओ 
 तीरथ दर्शन, भजन ,कीर्तन 
 करके ढेरों पुण्य कमाओ 
 तो निश्चित ही स्वर्ग लोक में,
  सीट तुम्हारी आरक्षित है 
  तरह तरह की बातें करके
   लोग हमें कर रहे भ्रमित है

 मदन मोहन बाहेती घोटू



मंगलवार, 3 जनवरी 2023

राम जन्मभूमि मंदिर के पुजारी का राहुल गांधी को मिला आशीर्वाद, भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के लिए कही ये बात

लखनऊ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आज यानी 3 जनवरी को यूपी में प्रवेश करेगी. जिसको लेकर प्रदेश में चाक-चौबंद व्यवस्था कर दी गई है. कांग्रेस कार्यकर्ता इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं. इसी बीच राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने राहुल गांधी को आशीर्वाद दिया है. आचार्य सत्येंद्र दास ने राहुल गांधी कहा कि “मैं आशा और प्रार्थना करता हूं कि जिस मिशन के लिए आप लड़ रहे हैं, वह सफल हो.” मैं आपको आपके लंबे जीवन का आशीर्वाद देता हूं.’ मुख्‍य पुजारी ने कहा कि आप लोगों के हित में और लोगों की खुशी के लिए ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ के लिए काम कर रहे हैं, मैं भगवान राम की कृपा आप पर हमेशा बनाए रखना चाहता हूं.
सर्दी की धूप से 

आज सुबह से नहीं दिखी तुम
सर्दी से डर कहां छुपी तुम 

रोज सुबह किरणों की डोली ,
में आती थी तुम सज धज कर 
मन में लिए प्यार की उष्मा
उजली उजली ,सुंदर, मनहर 
 तुम्हे देख ,अलसाये तन में 
 स्फूर्ति सी थी आ जाती 
 तुम्हारा स्पर्श सुहाता,
 तुम सबके ही मन को भाती 
 पर ना झलक दिखाई अभी तक,
 बहुत कर रही हमें दुखी तुम 
 आज सुबह से नहीं दिखी तुम 
  
गरम गरम, सर्दी की दुश्मन ,
धीरे-धीरे पग फैलाती 
जैसे-जैसे दिन चढ़ता था ,
छत, आंगन में तुम छा जाती 
आत्मसात तुम्हारी गर्मी ,
कर प्रसन्नता होती मन में 
तुमसे ज्यादा प्यारा कुछ भी ,
लगता नहीं सर्द मौसम में 
किंतु कोहरे की कंबल में ,
लिपटी हुई ,कहां दुबकी तुम 
आज सुबह से नहीं दिखी तुम

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 9 नवंबर 2022

हिसाब किताब 

आओ बैठ हिसाब करें हम 
अपने सत्कर्मों,पापों का
अब तक किए गए जीवन में
 अपने सारे उत्पातों का 
 
जो भी किया अभी तक हमने
 सोच समझकर किया होगा 
 अपनी ज्ञान और बुद्धि से 
 उचित निर्णय लिया होगा 
 लेकिन अपनी अल्प बुद्धि से ,
 लिया गया कोई भी निर्णय 
 औरों को भी उचित लगेगा 
 किंचित ही यह होगा संभव 
 सबका अपना दृष्टिकोण है
  सोच सभी की अपनी-अपनी 
  पाप पुण्य की परिभाषाएं,
  लोग बनाते अपनी-अपनी 
  बैठे, सोचे, मनन करें हम ,
  अपने सत्कर्मों, पापों का 
  
  क्या क्या खोया, क्या क्या पाया 
  कितना लाभ हुआ ,क्या हानि 
  कितने दोस्त बनाए हमने 
  और दुश्मनी कितनी ठानी 
  चित्रगुप्त जी आडिट करके 
  पाप पुण्य सारे आकेंगे
  जो जिसके हिस्से आएगा ,
  नर्क स्वर्ग हमको बाटेंगे 
  पूर्व जन्म का फल निपटाते
  यह जीवन तो निपट जाएगा
  अगली योनि के कर्मों का 
  समय कहां फिर मिल पाएगा  
  अगले जन्मों के हित करना
  पाप पुण्य फिर होगा संचित 
   जिसे देख भावी जीवन में ,
   स्वर्ग नर्क होगा आवंटित
  कैसे आलंकन होगा फिर 
  इस जीवन के अभिशापो का 
  आओ बैठ हिसाब करें हम,
   अपने सत्कर्मों, पापों का

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

    बदलते हालात

दो महीने की बिमारी ने,
हुलिया मेरा ऐसा बदला
कल तक था मैं मोटा ताजा,
आज हो गया दुबला पतला

एसी पीछे पड़ी बिमारी
कमजोरी से त्रस्त होगए
पहनू लगते झबले जैसे,
ढीले सारे वस्त्र हो गए 
 झूर्री झुर्री बदन हो गया 
 जो था चिकना भरा सुहाना 
 गायब सारी भूख होगई 
 हुआ अरुचिकर ,कुछ भी खाना 
 दिन भर खाओ दवा की गोली 
 जी रहता है मचला मचला 
 कल तक था मैं मोटा ताजा 
 आज होगा दुबला पतला 
 
लेकिन मैंने हार न मानी,
हालातों से रहा जूझता
मन में श्रद्धा और लगन ले, 
ईश्वर को मैं रहा पूजता 
अगर दिये हैं उसने दुख तो 
वो ही फिर सुख बरसाएगा 
मेरी जीवन की शैली को 
फिर से पटरी पर लाएगा 
दृष्टिकोण आशात्मक रखकर 
मैंने अपना मानस बदला 
कल तक था मैं मोटा ताजा 
आज हो गया दुबला पतला 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
     मतलबी यार 
     
  सदा बदलते रहते वो रुख, उल्टे बहते है
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं 

रहते थे हरदम हाजिर जो जान लुटा ने को 
वक्त नहीं उनको मिलता अब शक्ल दिखाने को 
थे तुम्हारे स्वामी भक्त , जब से बदली पाली 
नहीं झिझकते,तुमको देते ,जी भर कर गाली 
और बुराइयां सबके आगे करते रहते हैं 
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

 ना तो इनका कोई धरम है ना ईमान बाकी 
 चिंता है निज स्वार्थ सिद्धि की और सुख सुविधा की 
 जहां खाने को मिले जलेबी, रबड़ी के लच्छे उनकी सेवा को आतुर ये भक्त बने सच्चे 
 वहां मिले अपमान भीअगर हंसकर सहते हैं
  मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

 अग्नि पूजन 
 
दीपावली ,दशहरा ,होली,
 है ये उत्सव प्रमुख हमारे 
 बड़े चाव उत्साह लगन से 
 इन्हें मनाते हैं हम सारे 
 दीपावली को दीप जलाते 
 हरेक दशहरा, जलता रावण 
 दहन होलिका का होली में 
 हर त्यौहार अग्नि का पूजन
 हवन यज्ञ ,अग्नि का वंदन,
 करो आरती ,जलती बाती 
 फेरे सात लिए अग्नि के 
जन्मों की जोड़ी बन जाती 
पका अन्न,अग्नि से खाते ,
जो देता जीवन भर पोषण 
और अंत में इस काया का 
अग्नि में संपूर्ण समर्पण 
मानव जीवन के पल पल में 
सुख हो, दुख हो,उत्सव ,खुशियां,
 अग्नि संचालित करती है 
 जीवन की सारी गतिविधियां

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

  प्रतिबंधित जीवन 
 
मुझको मेरी बीमारी ने ,कैसे दिन दिखलाए
ये मत खाओ,वो मत खाओ ,सौ प्रतिबंध लगाये 
 जितना ज्यादा प्रतिबंध है , उतना मन ललचाए 
कितने महीने बीत गए हैं ,चाट चटपटी खाए गरम-गरम आलू टिक्की की, खुशबू सौंधी प्यारी 
भाजी और पाव खाने को तरसे जीभ हमारी 
फूले हुए गोलगप्पे भर खट्टा मीठा पानी 
ठंडे ठंडे दही के भल्ले, पापड़ी चाट सुहानी
प्यारी भेलपुरी बंबइया,बड़ा पाव की जोड़ी 
भूल न पाए भटूरे छोले, जिह्वा बड़ी निगोड़ी 
चीनी चाऊमीन के लच्छे और मूंग के चीले 
गरम समोसे और कचोरी ,बर्गर बड़े रसीले 
कितने दिन हो गए चखे ना मिष्ठानों को भूले 
गरम जलेबी ,गाजर हलवा ,रसमलाई रसगुल्ले 
कब फिर से यह स्वाद चखेंगे,तरसे जीभ हमारी 
हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू मेरी सब बीमारी 
हटे सभी प्रतिबंध ठीक से खुल कर जी भर खाऊं
सवा किलो बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

मास्क चढ़ा है  

असली चेहरा नजर न आता 
हर चेहरे पर मास्क के चढ़ा है 
मुंह से राम बोलने वाला ,
छुरी बगल के लिए खड़ा है 

ऊपर जो तारीफ कर रहा 
पीछे से देता है गाली 
कहता है वह सत्यवान है,
 पर करता करतूतें काली 
 खुद को दूध धुला बतला कर ,
महान बताने लिए अड़ा है 
असली चेहरा नजर आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है 
 
तुम्हारा शुभचिंतक बन कर 
 करे तुम्हारी ऐसी तैसी 
 मुश्किल अब पहचान हो गई 
 कौन है बैरी, कौन हितेषी 
 बहुत दोगले इन लोगों से,
 हमको खतरा बहुत बड़ा है
 असली चेहरा नज़र न आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

होते लोग बहुत शातिर कुछ,
पर दिखते हैं सीधे सादे
औरों का नुक्सान न देखे,
स्वार्थ सिर्फ अपना ही साधे
ऐसे मतलब के मारों से,
किसका पाला नहीं पड़ा है
असली चेहरा नज़र न आता ,
हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 
 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

मेरे कितने दोस्त बन गए 
मेरे दुश्मन, इसके कारण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन 

कहने को तो एक मांस का ,
टुकड़ा है यह बिन हड्डी का 
पर जब यह बोला करती है 
बहुत बोलती है यह तीखा 
जब चलती ,कैची सी चलती
 रहता खुद पर नहीं नियंत्रण
 मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 बत्तीस दातों बीच दबी यह,
 रहती है फिर भी स्वतंत्र है 
 मानव की वाणी ,स्वाद का ,
 यही चलाती मूल तंत्र है 
 मधुर गान या कड़वी बातें,
  इस पर नहीं किसी का बंधन
  मेरी जिव्हा मेरी बैरन

बड़ी स्वाद की मारी है यह,
 लगता कभी चाट का चस्का 
 और मधुर मिष्ठान देखकर,
  ललचाया करता मन इसका
  मुंह में पानी भर लाती है,
  टपके लार,देख कर व्यंजन
   मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 यह बेचारी स्वाद की मारी,
 करती है षठरस आस्वादन 
 ठंडी कुल्फी ,गरम जलेबी 
 सभी मोहते हैं इसका मन
एक जगह रह,बंध खूंटे से 
विचरण करती रहती हर क्षण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

 कभी फिसल जाती गलती से ,
 कर देती है गुड़ का गोबर 
 कभी मोह लेती है मन को,
  मीठे मीठे बोल, बोल कर
  देती गाली, कभी बात कर 
  चिकनी चुपड़ी, मलती मक्खन
   मेरी जिव्हा,मेरी बैरन

मदन मोहन बाहेती घोटू
प्रतिबंधित खानपान 

मुझको मेरी बीमारी ने
 कैसे दिन दिखलाए
 ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
 सब प्रतिबंध लगाए
 जितना ज्यादा रिस्ट्रिक्शन है ,
 उतना मन ललचाए 
 कितने महीने बीत गए हैं ,
 चाट चटपटी खाए 
 गरम गरम आलू टिक्की की,
  खुशबू सौंधी प्यारी 
  भाजी और पाव खाने को ,
  तरसे जीभ हमारी 
  फूले हुए गोलगप्पे भर ,
  खट्टा मीठा पानी 
  ठंडे ठंडे दही के भल्ले 
  पापड़ी चाट सुहानी 
  प्यारी भेलपुरी बंबइया 
  बड़ा पाव की जोड़ी 
  भूल न पाए भटूरे छोले 
  जिव्हा बड़ी चटोरी 
  चीनी चाऊमीन के लच्छे ,
  और मूंग के चीले 
  गरम समोसे और कचोरी ,
  बर्गर बड़े रसीले 
  कितने दिन हो गए चखे ना 
  मिष्ठानो को भूले 
  गरम जलेबी, गाजर हलवा,
   रसमलाई, रसगुल्ले 
   कब से फिर वे स्वाद चखेंगे,
   तरसे जीभ हमारी 
   हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू 
   मेरी सभी बीमारी
   हटे सभी प्रतिबंध ठीक से 
   खुल कर ,जी भर खाऊं 
   सवा किलो बूंदी के लड्डू का,
    मैं परसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

रावण दहन 

एक कागज का पुतला बनकर,
 खड़ा हुआ था वह बेचारा 
 तुमने उसमें आग लगा दी 
 और कहते हो रावण मारा 
 घूमे बच्चों के संग मेला ,
 खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी 
 थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
 यूं ही तफरी कर ली थोड़ी 
 घर में कुछ पकवान बनाकर 
 या होटल जा करते भोजन 
 ऐसे ही कितने वर्षों से 
 मना रहे हैं दशहरा हम 
 पर वास्तव में इसीलिए क्या 
 यह त्योहार मनाया जाता 
  पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
  विजयादशमी पर्व कहाता
  हो विद्वान कोई कितना भी,
  वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
  पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
  अहंकार,वो मारा जाता 
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का 
काम क्रोध और लोभ मोह का 
मद और मत्सर, सब विकार का 
 इनका दहन करोगे तब ही
 होगा सही दहन रावण का 
 सच्चा तभी दशहरा होगा ,
 राम जगाओ ,अपने मन का 
 जब सच्चाई और अच्छाई 
 अंत बुराई का कर देगी 
 तभी विजेता कहलाओगे 
 विजयादशमी तभी बनेगी 
 तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
 रावण को जाएगा मारा 
  कागज पुतला दहन कर रहे
  और कहते हो रावण मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 3 अक्तूबर 2022

नेता उचाव

अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
 पर जल्दी बिकने वाला हूं
 टीवी की हर चैनल पर अब,
 मैं जल्दी दिखने वाला हूं
  
अधकचरी विधानसभा का, 
चुना गया मैं एक विधायक 
लड़ा चुनाव स्वतंत्र ,जीतकर 
आज बन गया हूं मैं लायक 
 मिली जुली सरकार बने तो,
 होगी अहम भूमिका मेरी 
 पक्ष-विपक्ष कर रहे दोनों 
 इसी लिए हैं हेरा फेरी 
 मुझे पता ,अपने पाले में 
 चाह रहे हैं दोनो लाना
 मूल्यवान में हुआ अकिंचन,
 दोनों डाल रहे हैं दाना
 तोल मोल चल रहा अभी है 
  मूल्यांकन करना है बाकी 
  नहीं  बिकूंगा जब तक मेरी 
  कीमत सही न जाए आंकी
  मेरा एक वोट कर सकता, 
  है सत्ता में परिवर्तन भी 
  मुझको कई करोड़ चाहिए,
  और मंत्री की पोजीशन भी 
  मैं रिसोर्ट में एश कर रहा ,
   मुझको दिखता सब नाटक है 
   सत्ता के गलियारों में हैं ,
   रोज हो रही उठापटक है 
   मेरा भाव लगाने वाले ,
   कब देते मनचाहा ऑफर
   मेरे इधर उधर होने से ,
   बदल जाएगा सारा मंजर
   धोखा अगर दिया कोई ने,
    तो मैं ना टिकने वाला हूं
    अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
    पर जल्दी बिकने वाला हूं
     टीवी की हर चैनल पर अब
      मैं जल्दी दिखने वाला हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नेता और रिश्वत 

मैंने पूछा एक नेता से 
लोग तुम्हें है भ्रष्ट बताते 
बिन रिश्वत कुछ काम न करते 
सदा तिजोरी अपनी भरते
 नेता बोले बात गलत है
 यह मुझ पर झूठी तोहमत है 
 प्रगति पथ हो देश अग्रसर 
 यही ख्याल बस मन में रख कर 
 करता बड़े-बड़े जब सौदे
  करना पड़ते कुछ समझौते 
  काम देश प्रगति का करता 
  सेवा शुल्क ले लिया करता 
  इतना तो मेरा हक बनता 
  पर रिश्वत कहती है जनता 
  फिर थोड़ा हंस ,बोले नेता
   मैं रिश्वत ना ,प्रतिशत लेता 
   सच कहता हूं ईश्वर साक्षी 
   लिया अगर जो एक रुपया भी 
   जो कुछ लिया, लिया डॉलर में 
   एक रुपया ना आया घर में 
   जो भी मिलता है ठेकों में 
   सभी जमा है स्विस बैंकों में 
   हर सौदे में जो भी पाता 
   उसे चुनाव के लिए बचाता 
   पैसा जनता का, जनता में 
   बंट जाता है वोट जुटाने 
   और तुम कहते यह रिश्वत है 
   सोच तुम्हारी बहुत गलत है

मदन मोहन बाहेती घोटू

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

 उचटी उचटी नींद आती है,
 बिखरे बिखरे सपने आते 
 पहले से आधी खुराक भी ,
 खाना मुश्किल से खा पाते 
 डगमग डगमग चाल हो गई,
 झुर्री झुर्री बदन हो गया 
 ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
  इतना कम है वजन हो गया 
  थोड़ी देर घूम लेने से ,
  सांस फूलने लग जाती है 
  मन करता है सुस्ताने को 
  तन में सुस्ती सी जाती है 
  सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
  ये ही अब आहार हमारा 
  जिनके कभी सहारा थे हम
  वह देते हैं हमें सहारा 
  चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
 आलस ने है डेरा डाला 
 मन में कुछ उत्साह न बाकी,
  हाल हुआ है बुरा हमारा 
  फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
  और समय हम रहे काट हैं 
  बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
  बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

रावण दहन 

हे प्रभु तू अंतर्यामी है 
बदला मुझ में क्या खामी है 
ताकि समय रहते सुधार दूं,
जितनी अधिक सुधर पानी है 

मानव माटी का पुतला है 
अंतर्मन से बहुत भला है 
काम क्रोध लोभ मोह ने 
अक्सर इसको बहुत छला है 

कई बार लालच में फंसकर 
पाप पुण्य की चिंता ना कर
कुछ विसगतियां आई होगी, 
भटका होगा गलत राह पर 

और कभी निश्चल था जो मन 
पुतला एक गलतियों का बन 
ज्ञानी था पर अहंकार ने, 
उसको बना दिया हो रावण 

प्रभु ऐसी सद्बुद्धि ला दो 
अंधकार को दूर भगा दो 
आज दशहरे का दिन आया 
उस रावण का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती घोटू
तब और अब 

पहले जब कविता लिखता था 
रूप बखान सदा दिखता था 

रूप मनोहर ,गौरी तन का 
चंदा से सुंदर आनन का 
मदमाते उसके यौवन का 
बल खाते कमनीय बदन का 
हिरनी सी चंचल आंखों का 
उसकी भावभंगिमाओं का 
हर पंक्ति में रूप प्रशंसा 
उसको पा लेने की मंशा 
मन में रूप पान अभिलाषा 
रोमांटिक थी मेरी भाषा 
मस्ती में डूबे तन मन थे 
वे दिन थे मेरे योवन के 
रहूं निहारता सुंदरता को, 
ध्यान न और कहीं टिकता था 
पहले जब कविता लिखता था

अब जब मैं कविता लिखता हूं 
कृष काया , बूढ़ा दिखता हूं

बचा जोश ना ,ना उमंग है 
बदला जीवन रंग ढंग है 
तन और मन सब थका थका है 
बीमारी ने घेर रखा है 
अब आया जब निकट अंत है
मेरा मन बन गया संत है 
याद आते प्रभु हर पंक्ति में 
डूबा रहता मन भक्ति में 
बड़ी आस्था सब धर्मों में 
दान पुण्य और सत्कर्मों में 
उम्र बढ़ रही ,बदला चिंतन 
पल-पल ईश्वर का आराधन 
पुण्य कमा लो इसी भाव में ,
हरदम मैं खोया दिखता हूं 
अब जब मैं कविता लिखता हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 26 सितंबर 2022

देवी वंदना 

1
नवरात्रि में पूज लो, माता के नव रूप 
सुंदर प्यारे मनोहर, सब की छवि अनूप 
सब की छवि अनूप, देख कर श्रद्धा जागे मनोकामना पूर्ण करें, मैया बिन मांगे 
आशीर्वाद मांगता , घोटू भक्त तुम्हारा 
बिमारी से मुझे ,दिला दो मां छुटकारा 
2
माता तू ही देख ले, तेरा भक्त बीमार 
दृष्टि कृपा की डालकर ,कर दे तू उपचार
 कर दे तू उपचार, प्यार अपना बरसा दे 
 फिर से नवजीवन की मन में आस जगा दे 
सुमरूं तेरा नाम ,काम पूरण सब कर लूं
और करूं सत्कर्म,पुण्य से झोली भर लूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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