बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है
उचटी उचटी नींद आती है,
बिखरे बिखरे सपने आते
पहले से आधी खुराक भी ,
खाना मुश्किल से खा पाते
डगमग डगमग चाल हो गई,
झुर्री झुर्री बदन हो गया
ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
इतना कम है वजन हो गया
थोड़ी देर घूम लेने से ,
सांस फूलने लग जाती है
मन करता है सुस्ताने को
तन में सुस्ती सी जाती है
सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
ये ही अब आहार हमारा
जिनके कभी सहारा थे हम
वह देते हैं हमें सहारा
चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
आलस ने है डेरा डाला
मन में कुछ उत्साह न बाकी,
हाल हुआ है बुरा हमारा
फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
और समय हम रहे काट हैं
बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है
मदन मोहन बाहेती घोटू
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