ना तो छप्पन भोग , न ही छत्तीसों व्यंजन ,
बस दो रोटी ,दाल यही जरूरत जीवन की
आए खाली हाथ, जाओगे तुम वैसे ही ,
जाती कभी न साथ तिजोरी कोई धन की
करो सदा सत्कर्म ,सहायता, सेवा सबकी ,
ये ही सच्चा धर्म , काम में जो आएगा
गमनआगमन के चक्कर से मोक्ष दिला कर
तुम्हे स्वर्ग का अधिकारी जो बनवायेगा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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