तुम मुझको अच्छे लगते हो
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो
रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
टपका करती सदा शराफत
सीधे सादे, भोले भाले ,
निश्चल से बच्चे लगते हो
तुम जो भी हो जैसे भी हो
पर मुझको अच्छे लगते हो
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना
रहते हो संतुष्ट हमेशा
खाकर अपना चना चबेना
बहुत सुखी हो, दुनियादारी
में थोड़े कच्चे लगते हो
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो
मदन मोहन बाहेती घोटू
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