धूप
कुछ धूप सुबह की खिली खिली
छत पर बिखरी,उजली उजली
तन में सुषमा ,मन में ऊष्मा
सुंदर लगती ,निखरी निखरी
सच्ची सुखदायक सर्दी में
मन मोह रही है तपन भरी
हर्षित करती है मृदुल छुअन
छत पर ,आंगन में ,गली गली
संध्या होते तक थक जाती ,
पीली पड़ जाती, मरी मरी
सूरज उसको लेता समेट,
वह छुप जाती है डरी डरी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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