बीमारी के बाद
आई बीमारी ,दुख दे भारी, मुझे सता कर चली गई
विपदाओं से कैसे लड़ते , राह बता कर चली गई
बीमारी ने त्रास तो दिया ,मगर सिद्ध वरदान हुई
मूल रोग का गया, जिंदगी अब ज्यादा आसान हुई
खाने पीने के परहेज का ,मुझे कायदा सिखा दिया
तन मन में आई फुर्ती से ,मुझे फायदा दिखा दिया
थी बैयांलिस इंच कमर जो घटकर अब छत्तीस हुई
मोटी और थुलथुली काया, नाजुक और नफीस हुई
कंचन सा तन हुआ,दब गई ,तोंद बहुत जो थी निकली
वजन घटा पच्चीस किलो तक ,चेहरे पर रौनक बिखरी
पोष्टिक और अच्छी खुराक ने मुझ को सेहतमंद किया
पत्नी ने भी रौब दिखाकर ,काम कराना बंद किया
लगा नियंत्रण अब मीठे पर, कम खाना नमकीन हुआ
भोजन में अब अहम विटामिन और शामिल प्रोटीन हुआ
थोड़े दिन तकलीफ हुई पर धीरे-धीरे खुशी मिली
फिर से जिंदादिली आ गई ,तबीयत रहती खिली खिली
निखर गया व्यक्तित्व, चेहरा, अब फिर से मासूम हुआ
तंदुरुस्ती है बड़ी नियामत, यह सच अब मालूम हुआ
रहे निभाते जिम्मेदारी और खुद का ना ख्याल रखा
यही भूल थी जिसके कारण बीमारी का स्वाद चखा
अब अपनों के अपनेपन का, भी इजहार हुआ दूना
सब आ मिलते, चहल पहल है,जीवन नहीं रहा सूना
हुई नियंत्रित दिनचर्या है और व्यवस्थित जीवन है
सोते सुख की नींद प्रेम से,बदल गया जीवन क्रम है
जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी आया है परिवर्तन
हुआ मानसिकता में शामिल ,अब प्रभुभक्ति ,दया, धरम
जीवन सुख दुख का संगम है, सुख न मिले बिन दुख पाये
किंतु पर्व अनुशासन का था वो, अब अच्छे दिन हैं आए
व्यर्थ परेशानी चिंता में ,अब तुम जीवन मत जियो
हंसी खुशी से रहो हमेशा, मनचाहा खाओ पियो
जो आया है वह जाएगा कटु सत्य यह जीवन का
इसीलिए तुम मजा उठाओ जीवन के हर पल क्षण का
जितना प्यार लुटा सकते हो ,तुम सब पर बौछार करो
सब संग सत्व्यवहार करो तुम, प्यार करो बस प्यार करो
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।