मैं इक्यासी
जन्म दिवस का पर्व मनाते खुशियों से हम
जब कि बढ़ती उम्र, घट रहा जीवन हर क्षण समझ ना पाते बात जरा सी
मैं इक्यासी
अब तक जी भरपूर जिंदगी और सुख भोगे दुनिया घूमी, रहा खेलता संग खुशियों के धीरे-धीरे किंतु व्याधियों ने आ घेरा
क्षीण हुआ तन और उत्साह घट गया मेरा
जिस चेहरे पर हंसी खिला करती थी हरदम,
उस पर छाई, आज उदासी
मैं इक्यासी
क्या गुजर रहा है वक्त पड़े रहते बिस्तर पर
तरह तरह के ख्याल सताते रहते दिन भर
वक्त न कटता बैठे ठाले, हुए निकम्मे
पहले सी चुस्ती फुर्ती अब बची ना हममें
मनपसंद सारे भोजन है अब प्रतिबंधित,
हुई मुसीबत अच्छी खासी
मै इक्यासी
बेटी ,बेटे ,भाई बहन और संबंधी जन
पत्नी जिसने साथ निभाया पूरे जीवन
दोस्त सखा जो सदा सहायता को थे तत्पर
इन सब का एहसान न भूलूंगा जीवन भर जन्मों-जन्मों मिलता रहे प्यार इन सब का
इसी खुशी का, हूं अभिलाषी
मैं इक्यासी
डूब रहा है सूरज पर किरणे स्वर्णिम है
किंतु हौंसले है बुलंद ,वे हुऐ न कम है
जब तक तन में सांस ,तब तलक आस बची है मस्ती से जिएंगे ,हम ने कमर कसी है
अभी ताजगी बसी हुई है इस जीवन में
बूढ़ा हूं पर हुआ न बासी
मैं इक्यासी
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।