बीत गया फिर एक बरस
लो बीत गया फिर एक बरस
कुछ दिन चिंताओं में बीते,
कुछ दिन खुशियों के हंस हंस हंस
लो बीत गया फिर एक बरस
हर रोज सवेरे दिन निकला,
हर रोज ढला दिन ,शाम हुई
कोई दिन मस्ती मौज रही
तो मुश्किल कभी तमाम हुई
सुख दुख ,दुख सुख का चक्र चला,
जैसा नीयति ने लिखा लेख
जो भी घटना था घटित हुआ,
हम मौन भुगतते रहे ,देख
जो होनी थी वह रही होती
कुछ कर न सके ,हम थे बेबस
लो बीत गया फिर एक बरस
रितुये बदली ,गर्मी ,सर्दी ,
आई बसंत ,बादल बरसे
जीना पड़ता है हर एक को
मौसम के मुताबिक ढल करके
परिवर्तन ही तो जीवन है,
दिन कभी एक से ना रहते
हैं विपदा तो आनंद कभी
जीवन कटता सुख दुख सहते
आने वाले वर्षों में भी,
यह चक्र चलेगा जस का तस
लो बीत गया फिर एक बरस
ऐसे बीता, वैसे बीता,
या जैसे तैसे बीत गया
उम्मीद लगाए बैठे हैं,
खुशियां लाएगा वर्ष नया
पिछले वर्षों के अनुभव से
हमने जो शिक्षा पाई है
वह गलती ना दोहराएंगे
यह हमने कसमें खाई है
कोशिश होगी आने वाला
हर दिन हो सुखद, हर रात सरस
लो बीत गया फिर एक बरस
मदन मोहन बाहेती घोटू
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