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सोमवार, 24 नवंबर 2014

बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

   बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

उम्र के इस मोड़  पर
सभी बच्चों ने बसा लिया है अपना घर,
हमें तन्हा छोड़ कर
मैं और मेरी पत्नी,दोनों अकेले है ,
पर मिलजुल कर वक़्त काटते है
अपनी अपनी पीड़ाएँ ,आपस में बांटते है
कई बार ऐसे भी मौके आते है
मुझे अपने परिवार के लोग,
अपनी पत्नी में नज़र आते है
जैसे फुर्सत में कभी कभी ,
जब वो मेरे बालों को सहलाती है
मुझे बचपन में,मेरे बालों को सहलाकर ,
कहानी  सुनाती हुई 'दादी' नज़र आती है
और जब वो मेरी पसंद का खाना बना,
बड़ी मनुहार कर ,मुझे प्यार से खिलाती है
उसमे,मुझे  मेरी 'माँ'की छवि नज़र आती है
जब कभी बड़े हक़ से ,
छोटी छोटी चीजों के लिए जिद करती है
मुझे अपनी 'बेटी' सी लगती है
और जब नाज़ और नखरे दिखा कर लुभाती है
तब मुझे वो मेरी पत्नी नज़र आती है
कई बार मुझे लगता है कि इसी तरह ,
हम एक दूसरे में,अपना बिछुड़ा परिवार  ढूंढते है
 बस इसी तरह ,खरामा ,खरामा ,
 बूढ़ापे  के दिन कटते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 23 नवंबर 2014

जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

    जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

एक 'माया'मनाया करती थी अपना जन्मदिन,
                   हजारों के हजारों नोटों की माला पहन कर
एक 'मुलायम'ने मनाया ,बड़ी शौकत शान से ,
                     मंगाई लन्दन से बग्घी ,जुलुस निकला बैठ कर
केक लंबा पिचहत्तर फिट,मंगाया ,काटा ,गया ,
                    लोहियावादी मुखौटा,राजसी  अंदाज था
किन्तु 'मोदी'ने मनाया ,सादगी से जन्म दिन,
                    बिना आडम्बर किये और माँ का आशीर्वाद पा

घोटू 

शनिवार, 22 नवंबर 2014

आपके इस भैंसे को भी हंसायेंगे...


कल रात क्या बतायें
एक सपना ऐसा आया,
देखा कि हम हो गये
पूरे के पूरे 78 के और 
अंत समय अपना आया...
पड़ गये सोच में कि
दिखने में हैं हट्टे - कट्टे
न कोई रोग - न बीमारी,
ऐसे में भला कैसे 
हो जायेगी मौत हमारी...
यही सब उल - जुलूल
चल रहा था सोच विचार,
अचानक हुआ उजाला
छंट गया अंधकार
सामने हमारे यमराज जी
चुके थे पधार ...
डर तो लगा पर हास्य कवि हैं 
आदत से बाज कहां से आते,
कह दिया -
"अरे प्रभु आप ?!
इतना कष्ट उठाने 
की क्या जरूरत थी
हमारे लिये आपको
भैंसे से आने की क्या जरूरत थी?!
थोड़े दिन रुक जाते,
हम आपके लिये खरीद कर 
नई गाड़ी भिजवाते...!"
प्रभु बोले -
"अबे उल्लू किसको बनाता है?!
एक घर तक तो ले नहीं पाया
हमें गाड़ी का ख्वाब दिखाता है?!"
हमने हाथ जोड़कर कहा -
"क्षमा प्रभु क्षमा
हमारे सत्कर्मों पर
कुछ तो तरस खाइये,
साल - दो साल इस मामले को
आगे खिसकाने का 
कोई जुगाड़ हो तो बतलाइये...
हम दो - चार साल बाद
बड़े कवि बन जायेंगे
तो खुद ही चले आयेंगे,
यदि आप कहें तो अपने साथ
आठ - दस कवियों को ले आयेंगे,
रोज कवि सम्मेलन करायेंगे
एक से एक चुटकुले सुनायेंगे
आप ही नही आपके 
इस भैंसे को भी हंसायेंगे..."

- विशाल चर्चित

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

निमंत्रण

           निमंत्रण

दे गए मुझको निमंत्रण ,स्वप्न थे कल रात आ के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना   से
तुम्हारे स्वर्णिम बदन पर ,कल सुबह हल्दी चढ़ेगी
चन्द्र मुख यूं ही सुहाना  ,चमक और ज्यादा बढ़ेगी
तारिका की चुनरी में ,सज संवर तुम आओगी  तो,
यूं ही तो मैं  बावरा हूँ , धड़कने  मेरी   बढ़ेगी
देख कर सौंदर्य अनुपम ,गिर न जाऊं डगमगा के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना से
शाम मैं घोड़ी चढूंगा,आऊंगा  बारात लेकर
डाल वरमाला  गले में ,बांध लोगी तुम उमर भर
मान हम साक्षी अगन को ,सात फेरे ,साथ लेंगे ,
सात वचनों को में बंधेंगे ,निभाने को जिंदगी भर
तृप्ती कितनी पाउँगा में ,सहचरी  तुमको बना के 
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी   कामना से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आम का वृक्ष -उमर का असर

          आम का वृक्ष -उमर का असर

आम का वृक्ष,
जो कल तक ,
दिया करता था मीठे फल
अब छाँव देता है केवल
इसलिए उपेक्षित है आजकल
भले ही अब भी ,
उस पर कोकिल कुहकती है
पंछी कलरव करते है,
शीतल हवाएँ बहती है
पर,अब तो बस केवल
पूजा और शुभ अवसरों पर ,
कुछ पत्ते बंदनवार बना कर ,
लटका  दिये जाते है
जो उसकी उपस्तिथि  अहसास आते है
उसके अहसानो का कर्ज ,
इस तरह चुकाया जाता  है
कि उसकी सूखी लकड़ी को,
हवन में जलाया जाता है
फल नहीं देने  फल ,
उसे इस तरह मिल रहा  है 
आम का वृक्ष ,
अब बूढ़ा जो हो रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन संध्या

       जीवन संध्या

बड़ी बड़ी बुलंद इमारतें भी ,
शाम के धुंधलके में ,
नज़र  नहीं आती है
अस्तित्व होते हुए भी ,
 गुम  हो जाती है
ऐसा ही होता है,
जब जीवन की संध्या आती है

घोटू

बदलाव -बढ़ती उमर का

            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

सोमवार, 17 नवंबर 2014

तुम्हारे हाथों में

              तुम्हारे हाथों में

जो हाथ पकाते जब खाना ,तो गजब स्वाद भर जाता है
छू लेती जिन्हे हरी मेंहदी ,तो लाल रंग   रच जाता   है
जिन हाथों का कर पाणिग्रहण ,रिश्ता बंधता जीवन भर का
जिन हाथों की ही फुर्ती से ,चलता है काम सभी घर का
जो हाथ प्रेम से सहला कर ,पति मन में प्रेम जगाते है
जिन हाथों के ही बाहुपाश में ,दो प्रेमी बंध  जाते है
जिन हाथों में आ पैसा भी ,बहती गंगा बन जाता है
बस एक इशारा जिनका सब पतियों को खूब नचाता है
जिन हाथों में बेलन आता ,तो रोटी बना खिलाता है
गुस्से में पर वो ही बेलन ,हथियार बड़ा बन जाता है
रोता बच्चा खुश हो जाता है आकर के जिन हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
 
मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

शिकायत-तकिये की

         शिकायत-तकिये की

एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
              अकेले छोड़ कर के  साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
                इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण   जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
                 मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं  सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
                  बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है

घोटू 

जाती बहार के फल

        जाती बहार के फल

खिलता है तो लगता है सुहाना और महकता ,
                मौसम में  हर एक फूल पर चढ़ता शबाब है
अनुभव की बात आपको लेकिन हम बताएं ,
                  गुलकंद बन ,अधिक मज़ा देता  गुलाब है
मौसम में तो मिलते थे हमें रोज ही खाने ,
                  अब मुश्किलों से मिलते है,वो भी कभी कभी,
खाकर के देखो आम तुम जाती बहार के ,
                    पड़ जाते नरम,स्वाद में पर लाजबाब है

घोटू

बढ़तीं उमर की रईसी

          बढ़तीं उमर की रईसी

हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
         सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,स्टोन कीमती,
         शक्कर का पूरा कारखाना ,अपने साथ है
अम्बानी के तो गैस के कुवें समुद्र में ,
         हम तो बनाते गैस खुद ही ,दिन और रात है
है पास में इतना बड़ा अनुभव का खजाना ,
         जिसको कि बांटा करते है हम ,खुल्ले हाथ है    

घोटू

पूजा और प्रसाद

         पूजा और प्रसाद

बाद शादी के पडी बस ये ही आदत
किया करते रोज पत्नी की इबादत
और खाने मिल रहे पकवान तर है
चैन से ये जिंदगी होती बसर  है
नहीं पत्थर की प्रतिमा पूजते हम
हुस्न की जीवित प्रतिमा पूजते हम
पूर्ण श्रध्दा ,आस्था की  भावना से
सर नमाते,प्रेम की हम  कामना से
देवी के श्रृंगार हित नव वसन  लाते
स्वर्ण आभूषणो से उसको सजाते
प्रेम की भर भावना और जोश तन में
रतजगा भी किया करते ,कीर्तन में
आरती में लीन  होते,लगन से हम
भोग का परशाद पाते है तभी हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी जुकाम

           सर्दी  जुकाम

गमन आगमन पवन किया करती जिस पथ पर ,
                   उस पथ से अब बहती  गंगा जमुना  धारा
दबी पवन उद्वेलित होकर बड़े कोप से ,
                  छूट   तोप की तरह  ,गूंजा देती घर सारा
शीत  हो रही व्याप्त  और मौसम सिहरन  का ,
                  चली गयी है ऊष्मा फिर भी तप्त  बदन है
नहीं समझ में आता है क्या मुझे हुआ है ,
                   बैचैनी सी छाई ,तन में भारी पन  है
मुश्किल होती ,श्वासोच्छ्वास  मुझे  करने में ,
                   और चैन से सोना आज हराम होगया
अम्मा बोली,घुमा फिरा कर बातें मत कर ,
                  काढ़ा पी ले,तुझको सिर्फ  जुकाम होगया

घोटू

वक़्त वक़्त की बात

            वक़्त वक़्त की बात

रहता किसी  का  वक़्त  कभी  एक सा नहीं
किस्मत बदलती सबकी जब आता समय सही
रहती  है  दबी  ,आठ माह ,बक्से  के अंदर
मौसम में सर्दियों के जब  आती है निकल कर
तो प्यार सबका कितना फिर पाती रजाइयां
कितने  हसीन  जिस्मो  पर, छाती रजाइयां
हम भी रजाई की तरह ,अरमान   दबाये
बैठे है इन्तजार में  कि  अच्छे  दिन आएं
किस्मत हमारी ,हम पे भी हो  जाये मेहरबाँ
हमको भी अपनी बाहों में भर लेगी  दिलरुबां

घोटू

नाम का क्या काम

            घोटू के छक्के          
           नाम का क्या काम
                       १
'सर 'सर'कह कर जूनियर ,सर पर हमें चढाय
और अफसर ,सर नेम से,केवल  हमें  बुलाय 
केवल  हमें  बुलाय ,कहे 'लल्लाजी '  भौजी
बीबी काम  चलाय हमें कह 'ऐ  जी' ओ  जी'
बच्चे कहते 'पापा 'और  'मुन्ना'  माताजी
और 'साहब जादे 'कहते  है हमें   पिता जी
                        २
लम्बे चौड़े नाम का ,फैशन अब गुमनाम
'शार्ट फॉर्म 'के नाम से ,अब चलता है काम
अब चलता है काम ,हमारे इनिशियल से
 कोई  हमें जानता सिरफ़  फ्लेट  नंबर से
कह 'घोटू' कविराय ,कहे कन्याये 'अंकल'
चेहरा,नाम 'फेस बुक' पर ही दिखता केवल

घोटू

सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू आओ मनाएं बाल दिवस.....


सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
आओ मनाएं बाल दिवस.....

बाल दिवस है बाल दिवस
हम सबका है बाल दिवस,
सोनू - मोनू - पिंकू - गुड्डू
आओ मनाएं बाल दिवस....

कागज़ की एक नाव बनाएं
तितली रानी को बैठाएं,
नदी किनारे संग संग उसके
आओ हम सब चलते जाएँ....

तितली उड़े आकाश में
भगवान जी के पास में,
भगवान जी से लाये मिठाई
खा करके चलो करें पढ़ाई....

पढ़ना है जी जान से
ताकि हिन्दुस्तान में,
खूब बड़ा हो अपना नाम
खूब अच्छा हो अपना काम....

काम से पापा मम्मी खुश
काम से सारे टीचर खुश,
सारे खुश हो खुशी मनाएं
बड़े भी सब बच्चे हो जाएँ.....

बच्चों का हो ये संसार
बचपन की हो जय जयकार,
ना चालाकी - ना मक्कारी
ना ही कोई दुनियादारी.....

दुनिया पूरी हो बच्चों की
केवल हो सीधे - सच्चों की,
सच्चे दिल की ये आवाज
आओ धूम मचाएं आज.....

- VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, 12 नवंबर 2014

स्वच्छता अभियान

           स्वच्छता अभियान

तेरे मन में ,मेरे मन में,सबके मन में मैल ,
                              निकाले उसको  कैसे ?
लालच,स्वार्थ ,घृणा ,हिंसा का कचरा  फैला
                               बुहारे    उसको  कैसे ?
चला स्वच्छ अभियान ,हाथ में झाड़ू लेकर
 हटा  गंदगी, होगे  गाँव,सड़क ,सब सुन्दर
इधर उधर बिखरा कचरा तो बुहर  जाएगा
लीप पोत  कर ,रंग घरों का निखर जाएगा
किन्तु स्वच्छता तन संग, मन की आवश्यक है ,
                                       सँवारे  उसको कैसे?
तेरे मन में,मेरे मन में  ,सबके मन में  मैल ,
                                        निकाले उसको कैसे?
कलुषित हुए विचार,मनो पर मैल  चढ़ रहा
दिन दिन बेईमानी ,भ्रष्टाचार  बढ़  रहा
भुला दिए आदर्श,संस्कृति ,संस्कार  के
नित्य उजागर काण्ड हो रहे व्यभिचार के
चिंदी चिंदी बिखर रही है ,अबलाओं  की लाज,
                                 संभाले उसको कैसे ?
मेरे मन में,तेरे मन में,सबके  मन में मैल  ,
                                  निकाले उसको कैसे?

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

सारे ही ऐंठे हुए हैं...

सारे ही ऐंठे हुए हैं
सारे ही सबक सिखाने को
तैयार बैठे हुए हैं,
पता नहीं क्या हो गया है
पहले तो कुछ नहीं कहते थे
हर गलती को बच्चा समझकर
माफ करते थे,
लेकिन अब...

बाल कहते हैं कि-
तुम खुद तो खाते - पीते हो
अपनी पसंद का
पर हमें हमारा 
खाना तक नहीं देते,
जरा सा तेल तक 
तुमसे नहीं दिया जाता,
रोओगे जब हम 
छोड़ जायेंगे साथ
पूरी तरह से...

दिमाग को शिकायत है कि-
सुबह से लेकर रात तक
बस 'ये याद कर - वो याद कर'
नींद में भी सुकून नहीं है तुम्हें
जैसे कि हम कोई मशीन हों
एक दिन तब पता चलेगा बेटा
जब हम नहीं याद रखेंगे
तुम्हारा अपना नाम - पता भी...

आंखों को तकलीफ है कि-
हमेशा कंप्यूटर - मोबाइल पर
लगातार देखते रहते हो
कभी भी हमारे बारे में नहीं सोचते
हमें दर्द भी हो तो भी परवाह नहीं करते
ठीक है लगे रहो पर सोच लो
एक दिन चश्मा भी काम नहीं आयेगा...

कान कहते हैं कि -
दिन - रात मोबाइल पर
बतियाते रहते हो
न जाने किस - किससे,

कभी दायें तो कभी बायें
जैसे सबकी और सबकुछ ही 
बहुत जरूरी हो सुनना,
बस एक हमारी ही 
सुनना जरूरी नहीं है,
लेकिन तुम्हें पता तब चलेगा
जब हम बंद कर देंगे सुनना
तब अपना सिर धुनना...

दांतों का कहना है कि-
एक तो हमारी पसंद का खाना नहीं
और जो कुछ खाते भी हो
तो वो एकदम मरियल सा
वो भी निगल जाते हो सीधा
जैसे कि हमारी जरूरत ही नहीं

अच्छी बात है हम भी करते हैं
यहां से कूच करने की तैयारी...

दिल का रोना है कि -
जब देखो तब टेंशन ही देते हो
खुशी तो कभी देते नहीं
फिर भी उम्मीद करते हो कि
हम ऐसे ही हमेशा साथ देते रहें,
क्यों भाई, ठेका लिया है क्या?
एकाध झटका लगेगा तो
आ जायेगी अक्ल ठिकाने पर...

पेट महाशय बोलते हैं कि -
जो भी दिल में आता है
उल्टा - सीधा ठूंसते जाते हो
कभी सोचा है कि तुम हमसे
कितनी मेहनत कराते हो ?!
करा लो - करा लो, पर याद रखो
बहुत जल्दी ही हम तुमसे मेहनत करायेंगे
घंटों टॉयलेट में बिठायेंगे
दिन में तारे दिखलायेंगे
तुमको नानी याद दिलायेंगे...

पैरों को दुख है कि -
कदम - कदम पर चाहिये तुम्हें
मोटरसाइकिल, रिक्शा या कार,
घर और ऑफिस में भी 
हमेशा पसरे ही रहते हो,
न ज्यादा खड़े होते हो
न ज्यादा पैदल ही चलते हो,
इसतरह तुम हमें आलसी बना रहे
अच्छा, तो ऐसा है कि अब हम
पूरी तरह से सो जा रहे...

- विशाल चर्चित

रविवार, 9 नवंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: नगंता और अश्लीलता

रंग-ए-जिंदगानी: नगंता और अश्लीलता: अगर भारत विश्व कप में विजयी हो जाता हैं तो मैं सरेआम न्यूड हो जाऊगी ।,माँडल पूनम पाडें के इस बयान को हम सस्ती लोकप्रियता बटोरने की ब...

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

खुश हो लेते हैं रौशनी की कल्पना से ही...

अंधेरा है अब भी 
पर खुश हो लेते हैं
रौशनी की कल्पना से ही...

दुःख हैं बहुत से
पर दबा देते हैं
तमाम सुखों के 
काल्पनिक 
एहसासों से...

मुश्किलें हैं अनगिनत
पर हल कर लेते हैं
उन्हें खयालों में ही
हकीकत में हल होने तक...

खुशियां आती हैं जिन्दगी में
बहुत कम और कभी - कभी
पर मिला लेते हैं हमेशा इसमें
दूसरों की खुशियां और
 

बना डालते हैं अपने आसपास
एक खुशियों का सुन्दर सा जहां...

व्यस्त इतने रहते हैं
अपनों का हाल पूछने में कि
वक्त ही नहीं मिलता 
अपने हाल पर रोने का...

कमाई बहुत ज्यादा नहीं है पर
लोगों की दुआयें इतनी हैं कि
ख्वाबों में ही सही
बहुत मजे में कट रही है जिन्दगी...

- विशाल चर्चित

बुधवार, 5 नवंबर 2014

मेंहदी

                   मेंहदी

हरे पत्ते थे  झाडी  के,  खड़े  थे  यूं  ही जंगल में
मगर किस्मत गयी उनकी ,बदल बस एक ही पल में
हुए कुर्बान पिस कर के ,हुस्न का साथ जब पाया
हाथ में उनके जब आये ,रंग किस्मत का पलटाया
हो गया लाल रंग उनका , समां  कर तन में गौरी के
छोड़ दी छाप कुछ ऐसी  ,बस गए मन में गौरी के
सुहागन सज गयी प्यारी ,पिया ने  हाथ जब  चूमा
प्यार कुछ ऐसा गरमाया ,चढ़ गया  रंग दिन दूना
नहीं इतना सिरफ़ केवल,जोर किस्मत ने फिर मारा
चढ़ा कर सर पे गौरी ने ,सजाया रूप निज प्यारा
रंग लिए केश सब अपने ,चमक जुल्फों में यूं आयी
छटा बालों की यूं निखरी ,सभी के मन को वो भायी
चिन्ह सुहाग का तब से ,बतायी जाती  मेंहदी है
तीज,त्योंहार,शादी में ,लगाई जाती मेंहदी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

इलाज बतलाइये

         इलाज बतलाइये

किसी चीज को अगर चलाना ,लुब्रिकेंट लगाते है
इससे वो अच्छी चलती है,ऐसा लोग बताते  है
खुश्की की खुजली चलती है,जब जब सर्दी आती है
लुब्रिकेंट लगा देने से ,लेकिन कुछ  थम जाती  है
उल्टा चक्कर,परेशान पर ,मैं  खुश्की की खुजली से
कोई यदि उपचार बता दे ,धन्यवाद  दूंगा  जी से

घोटू

धरम-करम

          धरम-करम

धर्म के नाम पर केवल,हजारों खर्च कर देंगे
मगर भूखे गरीबों को,चवन्नी तक नहीं देंगे
मोक्ष की कामना या लालसा ले स्वर्ग की मन में,
तीर्थ और देव दर्शन में ,बिता सारी उमर देंगे
पुजारी पंडितों ने बुन रखे है जाल कुछ ऐसे ,
बनाये उस शिकंजे में ,फंसा हम अपना सर देंगे
पेट भूखे का भर दो गर ,मदद निर्धन की करदो गर
तहे दिल से दुआएं वो ,तुम्हे सारी  उमर  देंगे
मगर पाखंडियों के फेर  में जो रहोगे  उलझे ,
पता ना कल को क्या होगा ,बुरा वो आज कर देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शोर या रौनक

             शोर या रौनक

डालों पर पंछी बैठे हो ,और नहीं हो कुछ कलरव
सन्नाटा छाया हो तरु पर ,नहीं कभी भी यह संभव
चार औरतें यदि मिल बैठे ,और छाई हो चुप्पी सी
वैसे ये तो नामुमकिन है ,क्या हो सकता  ऐसा भी
मंदिर में घंटा ध्वनी ना हो,और नहीं संकीर्तन हो
मन भक्तों का नहीं लगेगा ,न ही रुचेगा  भगवन को
बच्चे वाले घर में ना हो,शोर शराबा ,चहल पहल
ऐसे घर में मुश्किल होता ,हमें बिताना ,पल,दो पल
बीबी की हरदम की बक बक ,हमको बड़ा सुहाती है
इसी बहाने घर में  थोड़ी ,   रौनक तो हो जाती  है
बच्चे और बीबी  की बातें ,रौनक है,मत शोर कहो
है जीवन का ये सच्चा सुख ,सुन आनंद विभोर रहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नव कविता

          नव कविता

मैंने  उनकी  सुंदरता  पर
चार पंक्तियाँ लिख दी केवल
उनने मुझे दे दिया उत्तर
एक प्यारा सा चुम्बन देकर
मेरी कलम सख्त,मसि काली
उनके होंठ नरम और लाली
मैंने शब्दों में उलझाया
उनने  जुल्फों में उलझाया
मेरी भाषा अलंकार की
उनकी भाषा शुद्ध प्यार की
मेरे शब्द पड़  गए बौने
जब उनके नाजुक होठों ने
मन का सारा प्यार घोल कर
मेरे कागज़ से कपोल पर
अपनी सुन्दर,प्यारी लिपी में
बड़े प्यार से, धीमे ,धीमे
ऐसा सुन्दर कुछ लिख डाला
जिसने किया  मुझे मतवाला
सिर्फ लेखनी की छुवन ने
उनकी मदमाती चितवन ने
ऐसी कविता मुझे सुना  दी
मेरे तन में आग लगा दी
दीवाना होकर पागल मैं
कलम छोड़ कर प्रत्युत्तर में
उनकी अपनी ही शैली में
प्यारी,मनहर,अलबेली में
उनकी ही भाषा में सुन्दर
उनके तन पर ,उनके मन पर
जगह जहाँ भी पायी खाली
मैंने नव कविता लिख डाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 2 नवंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: शेर के आगे पर मेमने का हाल

रंग-ए-जिंदगानी: शेर के आगे पर मेमने का हाल: नलकु की टुटी-फुटी छत। रातों की मुसलाधार बरसात। आँधियों का चहुँ और शोर था बहार की तरह अंदर भी अंधेरा घनघोर था। बिजली की दहाड़ के...

सर्दी का आगाज

           सर्दी का आगाज

कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत  नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी  सी धूप थी मन को भाई 
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से  पूरे बदन में कुछ खुश्की  सी  छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने  नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो  ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा  ठिगना  था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब  सब पसीना  था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन  ठिठुराने लगा है 
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 1 नवंबर 2014

मिज़ाज़ -मौसम का

             मिज़ाज़ -मौसम का

बदलने लग गया है इस तरह मिज़ाज़ मौसम का,
कभी सर्दी में गर्मी है कभी बरसात रहती है
हवा के रुख का बिलकुल भी ,नहीं अबतो पता चलता ,
कभी थमकर के रह जाती ,कभी तेजी से बहती है
बदलने लग गयी है ऐसे ही इंसान की फितरत ,
भरोसा क्या करे,किस पर ,पता ना कब दगा दे दे ,
भुला बैठा है सब रिश्ते ,पड़ा है पीछे  पैसों के ,
करोड़ों की कमाई की ,हमेशा  हाय रहती  है
कमाने की इसी धुन में ,हजारों गलतियां करता ,
भुला देता धरम ईमान और सच्चाई का रास्ता ,
पड़ा  नन्यानवे  के  फेर में रहता भटकता  है,
उसे अच्छे बुरे की भी ,नहीं पहचान  रहती   है
इमारत की अगर बुनियाद ही कमजोर हो और फिर,
मिला दो आप सीमेंट में,जरुरत से अधिक रेती ,
बिल्डिंगें इस तरह की अधिक दिन तक टिक नहीं पाती  ,
जरा सा झटका लगता तो,बड़ी जल्दी से ढहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तकिया-प्यार की दीवार

        तकिया-प्यार की दीवार

बिस्तरे पर पड़ा रहता ,यूं ही आँखें मीच मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी,तकिया हमारे बीच में
 
नरम और चिकना ,मुलायम,सुहाना अनमोल था
बाहों में कितना दबालो ,नहीं कुछ भी बोलता
कभी था सर का सिरहाना ,देता सुख की नींद था
और विरह के पलों में जो  तुम्हारे  मानिंद  था
नियंत्रित वो आजकल, कर रहा अपना प्यार है
बीच  में  मेरे तुम्हारे ,बन  गया  दीवार  है
बीच में संयम का दरिया हम न करते पार ,पर
बदलते रहते है करवट,तुम इधर और मैं उधर
चाहता हूँ पार करना ,रोज ये दहलीज   मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी ,तकिया हमारे बीच में
एक इसके साथ ही थे ,रात भर हम जागते
एक इसके सामने ही ,लाज थे हम त्यागते
एक ये ही साक्षी है  अपने मिलन,उन्माद का 
एक ये ही था सहारा ,सुख,शयन का,रात का
आजकल संयम शिखर सा ,बीच में है ये खड़ा
मौन मैं भी,मौन तुम भी ,मौन ये भी है पड़ा
मन बहलता आजकल बस दूर से ही देख कर
इधर मै प्यासा  तरसता ,तड़फती हो तुम उधर
देख ये बाधा मिलन की बहुत जाता खीज मै
नींद क्या खाक आएगी  ,तकिया हमारे बीच में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेल

                        मेल
इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी खिलाड़ी है ,
          दिलों से खेलना जिनके लिए एक खेल होता है
बहुत इतराते है कुछ तिल ,जो उनके गाल पर बैठे ,
         मगर ये तिल ,नहीं वो तिल कि जिनमे तैल होता है
परीक्षा प्यार की हर एक को ही देनी पड़ती है ,
         नतीजा जब निकलता   पास ,कोई फ़ैल होता है
यूं मिलना जुलना तो किसी से कब भी हो सकता,
         नहीं हो मैल जब मन में ,तो मन का मेल   होता है

घोटू

कम्बल

            कम्बल

मुश्किल से ही मिल पाता  है ,
            जो सुख हमको केवल,कुछ पल
उस सुख से लाभान्वित होते ,
                  रहते हो तुम,रात रात भर 
बड़े प्यार से छाये रहते
                  हो गौरी के तन के ऊपर
लोग तुम्हे कहते  है कम्बल ,
                   पर तुममे सबसे ज्यादा  बल

घोटू

पहली तारीख

             
                    
                   पहली तारीख
 
पहली तारीख की रही ना,पहली वाली बात अब,
          नगद नोटों में मिला करती थी हमको सेलरी
एक दिन तो समझते थे ,हम भी खुद को बादशाह,
            जब कि  नोटों से हमारी ,जेब रहती थी भरी 
करती थी बीबी प्रतीक्षा,बना अच्छा नाश्ता ,
            बच्चों की फरमाइशों का दौर आता था नया
जब से तनख्वाह बैंक में होने लगी है ट्रांसफर ,
            वो करारे नोट गिनने का का सुहाना थ्रिल गया

घोटू

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

रिश्ते ऊपर से बन आते है

      रिश्ते ऊपर से बन आते है

एक अनजान औरत ,
एक अनजान आदमी की,
बन जाती  है  सच्ची दोस्त और हमसफ़र
और उसके संग ,  जाता है बंध ,
एक इस तरह का बंधन ,
जिसे निभाया जाता है सारी उमर भर
ये नियति है या भाग्य का लेखा ,
जो एक अनजान,अनदेखा ,
दुनिया में सबसे ज्यादा प्यारा  लगने लगता है
क्या ये बंधन वरमालाये पहनाने से,
या कुछ कसमे खाने से ,
या अग्नी के सात फेरे लगा लेने  से बनता है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण ,
अपना सब कुछ अर्पण
चंद रस्मो रिवाजों से ही नहीं होता है
हम ये जानते है
इसलिए ये बात नहीं मानते है ,
जब लोग कहते,शादी एक समझौता है
कोई कहीं का  रहनेवाला 
कोई कहीं की रहनेवाली पर,
अपना सब कुछ  ऐसे ही नहीं लुटाता  है
,इसलिए हम मानते है,
पति और पत्नी का रिश्ता
ऊपर वाले के यहाँ से ही बन कर आता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शादी या दीवाली

             शादी या दीवाली

लटकती बिल्डिंगों पर जगमगाती ,इस तरह लड़ियाँ ,
            सजाया जैसे हो चेहरा ,किसी दूल्हे के चेहरे पर
खिल रहे फूल अरमानो के जैसे फुलझड़ी ,झड़ती,
            फटाखे फूटते मन में ,मिलन के ख्वाब रहरह कर
दिये से टिमटिमाते है ,कई सपने निगाहों में ,
             घड़ी वो आएगी कब जब करेंगे  लक्ष्मी  पूजन ,
भले ही बात ये मालूम है हमको,उन्हें,सबको,
             दिवाली चार दिन की,बाद में फिर रोज का चक्कर

घोटू 

कार का पुराना मॉडल

        कार का पुराना मॉडल

हमारी कार का मॉडल,पुराना  हो गया है पर ,
          अभी बकरार इंजिन का ,वही जलवा पुराना है
अभी भी स्टीयरिंग में और गियर में जान है वो ही ,
          वही रफ़्तार है कायम ,सफर वो ही सुहाना  है
ये दीगर बात है कि शॉक अब्सोर्बर पड़े ढीले,
            और टायर भी थोड़े घिस गए है इतना चल चल के ,
समय के साथ थोड़ा रंग भी है पड गया फीका, 
            फसें हम  प्यार में उसके ,वही गाडी चलाना   है           

घोटू

देशी विदेशी पकवान

            देशी विदेशी पकवान

होते है कुछ लोग पीज़ा की तरह ,
                     बेस में तो होते सादा ब्रेड से
किन्तु ऊपर से परत है चीज की ,
                 और भांति भांति के टॉपिंग सजे
और  कुछ होते परांठे आलू के,
                   देशी घी में नीचे से ऊपर सिके
भरा दिल में है मसाला चटपटा ,
                  स्वाद प्यारा और करारे भी दिखे
वैसे ही कुछ लोग पेस्ट्री की तरह ,
                   क्रीम से रहते है बस केवल ढके
कुछ है रसगुल्ले जलेबी की तरह ,
                     रहते पूरे  पूरे ही रस से  पटे
 देखलो देशी विदेशी फ़ूड में ,
                     फर्क रहता स्वाद में है किस क़दर
विदेशी में है दिखावा ऊपरी ,
                     और देशी प्यार से है तर बतर

घोटू

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

वर्ना.... आप दोनों से कट्टी !!!


पापा,
यहां गांव में
नानी के यहां,
न अच्छा है पानी
न अच्छा है खाना
और न अच्छी है
हमारी तबियत...
यहां डराते हैं हमें
घूमते हुए सांप
जहरीले डंकवाले बिच्छू
आप बोल दो
हनुमान जी से कि
हमें न काटें,
हमारा तो झगड़ा हुआ है
वो नहीं मानते
हमारा कहना पर
आपकी तो वो सुनते हैं न,
इसलिये आप बोल देना
जरूर से - ध्यान से,
वर्ना..... वर्ना 'आपका सर'
और हनुमान जी का भी 'सर'
आप दोनों से कट्टी,
कट्टी - कट्टी - कट्टी !!!

- विशाल चर्चित

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

हुस्नवाले

    हुस्नवाले

नज़र उठाते ,तो सबको कर देते घायल
नज़र झुकाते तो हामी का देते सिग्नल
हुस्नवालों ने भी ये कैसी अदा पायी है
मन में तो'हाँ' है ,मुंह पर मनाही  है
बड़ा अजीब होता हसीनो का है ये चलन
कत्ल भी करते है,चेहरे पे नहीं लाते शिकन 
नजाकत और जलवे बेमिसाल होते है
ये हुस्नवाले भी सचमुच कमाल होते है 
घोटू

कुछ हम भी खुश हो लेते है

        कुछ हम भी खुश हो लेते है

जीवन माला में मोती सा ,उनका प्यार पिरो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
वो कैसी भी हो कह देते ,बेहद आप खूबसूरत  हो
हंसती हो तो फूल खिलाती,तुम सुंदरता की मूरत हो
तारीफ़ करके, उनके मन में ,बीज प्यार  बो लेते  है
कुछ उनको खुश कर देते है, कुछ हम भी खुश हो लेते है
उनकी कार्य दक्षता के हम,सब के आगे गुण  गाते है
वो कैसा भी पका खिलाये ,हम तारीफ़ करके खाते है
उनके प्रेमपात्र बन कर हम ,उनका प्यार संजो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
 आप बांटते जितनी खुशियां,बदले में दूनी मिलती है 
लेनदेन के इसी चलन से ,जीवन की बगिया खिलती है 
उनको मीठी नींद सुला कर,हम भी थोड़ा सो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है ,कुछ हम भी खुश हो लेते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पटाखे

        हम पटाखे

हम पटाखे ,हमारा अस्तित्व क्या ,
           जब तलक बारूद,  तब तक जान है
कोई चकरी की तरह है नाचता ,
           कोई उड़ कर छू रहा आसमान है
कोई रह जाता है होकर फुस सिरफ ,
           जिसमे दम है वो है बम सा फूटता
फूल कोई फुलझड़ी से खिलाता,
           कोई है अनार  बन  कर  छूटता
पटाखे ,इंसान में एक फर्क है ,
            आग से आता पटाखा   रंग में
और इन्सां रंग दिखाता उम्र भर ,
              आग में होता समर्पित  अंत में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

कॉंग्रेस की दीवाली

   कॉंग्रेस की दीवाली

झड़ी झड़ी सी फुलझड़ी ,लगे सोनिया मेम
राहुल बम फुस हो गया,ऐसा बिगड़ा  गेम
ऐसा बिगड़ा गेम ,दिवाली ये दुखदायी
महाराष्ट्र और हरियाणा में नाक कटाई
यूं ही ज्यों त्यों हार ,कहाँ त्योंहार मनाये
कांग्रेस का ग्रेस गया,मुंह किसे दिखाए

घोटू

फूटे हुए पटाखे हम है

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: पंडित जी तो झेंप गए....

रंग-ए-जिंदगानी: पंडित जी तो झेंप गए....: इस बार दीवाली पर हर बार की तरह लक्ष्मी पूजन का आयोजन किया गया।पंडित जी आए और पूजा शुरू की गई,एक-एक करके सभी कार्य विधि-विधान से सम्पन्न...

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी: 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाते हुए हमें पचास साल से अधिक समय हो गया।   इतने सालों में बस एक   ही काम हुआ हैं। बडे-बडे मंचों पर बडे-बडे...

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी

रंग-ए-जिंदगानी: जन-जन की भाषा हैं हिंदी: 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाते हुए हमें पचास साल से अधिक समय हो गया।   इतने सालों में बस एक   ही काम हुआ हैं। बडे-बडे मंचों पर बडे-बडे...

बोलो जय हो चर्चित राज की....


कल छोटी दीपावली पर अपने एक मित्र का फेसबुक पर लेख पढ़ा कि 'मिडिया और पर्यावरण के रखवालो को पर्यावरण बचाने की याद सभी हिन्दू त्यौहारो पर ही आती है....जम के पटाखे छुड़ाइये, दिवाली है, बाकि के 364 दिन है पर्यावरण के लिए....' और बस इसी पर शुरू हो गया अपने भी दिमाग का चलना....और बन गया अच्छा - खासा एक व्यंग्य..... :D

भाई देखिये, आज अपनी दीवाली है... सबसे बड़ा त्योहार... दिमाग की ऐसी - तैसी मत कीजिये... हमारा जो मन करेगा करेंगे... आप अपना ये 'पर्यावरण का प्रवचन' अपने पास रखिये.... समझ गये न ?! हम कमाते हैं तो अपने लिये... गरीबों को देने के लिये थोड़े ही?! कोई गरीब है तो उसका नसीब... इसमें हमारी क्या गलती ?! एक तो महंगाई इतनी बढ़ गई है कि जेब का दीवाला निकल जाता है ऊपर से लोगों के भाषण कि 'ये मत करो - वो मत करो'... पिद्दी से पटाखे भी 40-50 रुपये के आते हैं.... मतलब कि कम से कम द हजार के पटाखे तो लेने ही पड़ते हैं... वर्ना पड़ोसियों में नाक कट जाती है... कहते हैं 'भिखमंगा कहीं का'.... कुछ लोग आकर समझाने लगते हैं कि 'बम यहां नहीं, कहीं और छुड़ाओ, फलां को ब्लड प्रेशर की बीमारी है'... अरे भाई जिसको बीमारी है वो कहीं और जाये हम क्यों जायें... हम तो यहीं बम भी दगायेंगे और यहीं रॉकेट भी... हमारा रॉकेट किसी के घर में जाता है तो इसमें हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि हम थोड़े न बोल के भेजते हैं कि 'जा बेटा फलां के घर में...'?!... अब रही बात प्रदूषण की तो तमाम गाड़ियों और फैक्टरियों से दिन - रात प्रदूषण होता है तब तो नहीं बोलते...पहले उनको बन्द कराओ जाकर.... अगर हम अपने मन का कर न सकें तो काहे की आजादी?! ....इसका मतलब है कि हम अभी भी गुलाम हैं.... इसलिये आओ भाइयों हम सब एकजुट होकर इस गुलामी के खिलाफ मुहिम छेड़ते हैं... अगर हम कामयाब हो गये तो... एक ऐसा राज्य स्थापित करेंगे जहां..... 'कोई भी नियम कानून नहीं होगा'.... 'कोई भी कुछ भी कर सकेगा'... 'कोई भी किसी के भी सिर पर बम फोड़ सकेगा'.... 'कोई भी अपना रॉकेट लिये दिये किसी के भी घर में घुस सकेगा'... 'मिट जायेगा दोपायों और चौपायों के बीच का फर्क'... 'कोई भी गरीब नहीं होगा, सारे अमीर ही होंगे... क्योंकि सबकुछ सबका होगा'... 'न पुलिस होगी न कानून होगा'... 'न रिश्वत होगी न भ्रष्टाचार होगा'...'जिसको जो मिले ले के निकल लो'... है न जबर्दस्त आइडिया ?? तो इसी बात पर प्रेम से बोलो... 'जय हो चर्चित राज की'.... शुभ दीवाली !!!

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