पूजा और प्रसाद
बाद शादी के पडी बस ये ही आदत
किया करते रोज पत्नी की इबादत
और खाने मिल रहे पकवान तर है
चैन से ये जिंदगी होती बसर है
नहीं पत्थर की प्रतिमा पूजते हम
हुस्न की जीवित प्रतिमा पूजते हम
पूर्ण श्रध्दा ,आस्था की भावना से
सर नमाते,प्रेम की हम कामना से
देवी के श्रृंगार हित नव वसन लाते
स्वर्ण आभूषणो से उसको सजाते
प्रेम की भर भावना और जोश तन में
रतजगा भी किया करते ,कीर्तन में
आरती में लीन होते,लगन से हम
भोग का परशाद पाते है तभी हम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बाद शादी के पडी बस ये ही आदत
किया करते रोज पत्नी की इबादत
और खाने मिल रहे पकवान तर है
चैन से ये जिंदगी होती बसर है
नहीं पत्थर की प्रतिमा पूजते हम
हुस्न की जीवित प्रतिमा पूजते हम
पूर्ण श्रध्दा ,आस्था की भावना से
सर नमाते,प्रेम की हम कामना से
देवी के श्रृंगार हित नव वसन लाते
स्वर्ण आभूषणो से उसको सजाते
प्रेम की भर भावना और जोश तन में
रतजगा भी किया करते ,कीर्तन में
आरती में लीन होते,लगन से हम
भोग का परशाद पाते है तभी हम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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