शिकायत-तकिये की
एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
अकेले छोड़ कर के साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है
घोटू
एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
अकेले छोड़ कर के साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है
घोटू
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