मेरा गाँव-मेरा देश
मेरे गाँव के हर आँगन में ,बिरवा है तुलसीजी का ,
गली गली में मीरा जी के ,देते भजन सुनाई है
हर घर एक शिवालय सा है,हर दिवार पर राम बसे ,
कान्हा की बंसी बजती ,रामायण की चौपाई है
मंदिर से घण्टाध्वनि आती ,भजन कीर्तन होता है,
ताल मंजीरे ,ढोलक के स्वर ,सदा गूंजते रहते है
जहां गंगा की एक डुबकी में पुण्य कमाया जाता है,
जहां गाय को गौमाता कह लोग पूजते रहते है
जहां पीपल ,वट वृक्ष,आंवला ,का भी पूजन होता है,
रस्ते के पत्थर भी पूजे जाते कह कर पथवारी
अग्नि की पूजा होती है ,दीप वंदना होती है ,
हवन यज्ञ में आहुति दे ,पुण्य कमाते है भारी
गंगा जमुना का उदगम भी ,तीर्थ हमारा होता है,
गंगाजल लोटे में भर कर ,उसकी पूजा की जाती
हम पत्थर की मूरत में भी ,प्राण प्रतिष्ठा करते है,
सात अगन के फेरे लेकर ,बनते है जीवनसाथी
हम सीधे सादे भोले है ,मगर आस्था इतनी है,
उगते और ढलते सूरज को अर्घ्य चढ़ाया जाता है
जहाँ औरतें व्रत करती है, पति को लम्बी उम्र मिले,
चन्द्रदेव के दर्शन कर के भोजन खाया जाता है
श्राद्धपक्ष में सोलह दिन तक ,तर्पण करते पुरखों का,
श्रद्धा से सर उन्हें नमाते ,हम उनके आभारी है
धर्म सनातन,बहुत पुरातन ,धन्य धन्य यह संस्कृती है,
हम भारत के वासी ,भारतमाता हमको प्यारी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरे गाँव के हर आँगन में ,बिरवा है तुलसीजी का ,
गली गली में मीरा जी के ,देते भजन सुनाई है
हर घर एक शिवालय सा है,हर दिवार पर राम बसे ,
कान्हा की बंसी बजती ,रामायण की चौपाई है
मंदिर से घण्टाध्वनि आती ,भजन कीर्तन होता है,
ताल मंजीरे ,ढोलक के स्वर ,सदा गूंजते रहते है
जहां गंगा की एक डुबकी में पुण्य कमाया जाता है,
जहां गाय को गौमाता कह लोग पूजते रहते है
जहां पीपल ,वट वृक्ष,आंवला ,का भी पूजन होता है,
रस्ते के पत्थर भी पूजे जाते कह कर पथवारी
अग्नि की पूजा होती है ,दीप वंदना होती है ,
हवन यज्ञ में आहुति दे ,पुण्य कमाते है भारी
गंगा जमुना का उदगम भी ,तीर्थ हमारा होता है,
गंगाजल लोटे में भर कर ,उसकी पूजा की जाती
हम पत्थर की मूरत में भी ,प्राण प्रतिष्ठा करते है,
सात अगन के फेरे लेकर ,बनते है जीवनसाथी
हम सीधे सादे भोले है ,मगर आस्था इतनी है,
उगते और ढलते सूरज को अर्घ्य चढ़ाया जाता है
जहाँ औरतें व्रत करती है, पति को लम्बी उम्र मिले,
चन्द्रदेव के दर्शन कर के भोजन खाया जाता है
श्राद्धपक्ष में सोलह दिन तक ,तर्पण करते पुरखों का,
श्रद्धा से सर उन्हें नमाते ,हम उनके आभारी है
धर्म सनातन,बहुत पुरातन ,धन्य धन्य यह संस्कृती है,
हम भारत के वासी ,भारतमाता हमको प्यारी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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