एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

मैं कल की चिन्ता छोड़
हंसी खुशी की जिंदगी जीता आज हूं
इसलिये खुश मिजाज हूं

कल जो होना है सो होगा
यह नियती ने कर रखा है निश्चीत
तो कल की कल भोगेंगे
आज तो रहो प्रसन्न चित्त
भविष्य की चिन्ता में
अपने सर पर परेशानियां मत ओढ़ो
आज का पूरा सुख लो
कल क्या होगा,कल पर छोड़ो
सबसे हंस कर मिलता हूं
किसी से नहीं रहता नाराज़ हूं
इसीलिए खुश मिजाज हूं

भविष्य की सोच सोच
अपने चेहरे पर शिकन मत लाओ
प्रेम से जियो, हंसो,
खेलो कूदो और खाओ
याद रखो,आज जो जीवन जी लोगे
कल नहीं जी पाओगे
जो खुशियों के अवसर खो दोगे
बाद में पछताओगे
जो है,उसी में खुश रहता हूं
न किसी की दया का मोहताज हूं 
इसलिए खुश मिजाज़ हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

बोलो राम राम श्याम


एक हैं मेरे प्यारे राम

एक हैं मुरलीधर घनश्याम 

दोनों का में सुमरू नाम 

बोलो राम राम श्याम 


दोनों के दोनों अवतारी 

दोनों की छवि सुंदर प्यारी 

दोनों हरते कष्ट तमाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे जन्मे बन रघुराई 

एकआये बन किशन कन्हाई

भाई लक्ष्मण और बलराम 

बोलो राम राम श्याम 


एक में रावण को संहारा 

एक ने मामा कंस को मारा 

सबको पहुंचा उस धाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक की लीला वृंदावन में 

एक थे चौदह वर्षों वन में

लिया किसी ने नहीं विश्राम

बोलो राम राम श्याम 


एक थी कृष्णा बांके बिहारी 

एक राम जी अवध बिहारी 

मुक्ति देता दोनों का नाम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे चक्र सुदर्शन धारे 

एक थे तीरंदाज निराले 

दोनों के दोनों बलवान 

बोलो राम राम श्याम 


एक में सागर सेतु बनाया 

एक ने द्वारका नगर बसाया 

दोनों की छवि है अभिराम 

बोलो राम राम श्याम 


एक थे मर्यादा पुरुषोत्तम 

एक थे ज्ञानी और विद्वन 

दिया एक ने गीता का ज्ञान 

बोलो राम राम श्याम


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुझते दीपक 


जिनने सदा अंधेरी रातों ,में जल किये उजाले है 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


अंधियारे में सूरज बनकर, जिनने ज्योति फैलाई 

सहे हवा के कई थपेड़े ,पर लौ ना बुझने पाई 

है छोटे, संघर्षशील पर ,सदा लड़े तूफानों से 

इनकी स्वर्णिम छटा ,हमेशा खेली है मुस्कानों से 

इनके आगे घबराते हैं ,पंख तिमिर के काले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो, ये दीपक बुझने  वाले हैं 


हो पूजन या कोई आरती दीप हमेशा जलते हैं 

दिवाली की तमस निशा को, जगमग जगमग करते हैं 

शुभ कार्यों में दीप प्रज्वलन होता है मंगलकारी 

स्वर्णिम दीप शिखा लहराती ,लगती है कितनी प्यारी 

बाती में है भरा प्रेम रस, मुंह पर सदा उजाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो ,ये दीपक बुझने वाले हैं 


है बुजुर्ग मां-बाप तुम्हारे,ये भी बुझते दिये हैं 

किये बहुत उपकार तुम्हारे ,सदा दिये ही दिये हैं 

खत्म हो रहा तेल ,उपेक्षा की तो ये बुझ जाएंगे 

इनमें भरो प्रेम रस थोड़ा, ये फिर से मुस्कुराएंगे 

इनकी साज संभाल करो , ये तुमको बहुत संभाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

लो जीवन का एक दिन और गुजर गया और उमर एक दिन से और घट गई 

बस ऐसे ही धीरे-धीरे जिंदगी कट गई 


जब हम व्यस्त ना होकर भी व्यस्त रहते हैं उम्र के इस दौर को बुढ़ापा कहते हैं 

सुबह उठो 

नित्य कर्म में जुटो

फिर सुबह की सैर पर निकल जाओ

फिर यारों की मंडली में बैठ कर गप्पे मारो और मन को बहलाओ 

थोड़ा सा व्यायाम कर लो 

अनुलोम विलोम कर धीमी और तेज सांस भर लो 

फुर्ती से भर जाएगा आपका अंग अंग फिर घर जाकर चाय की चुस्कियां लो बिस्कुट के संग

और फिर आज का ताजा अखबार चाटो एक-एक छोटी-मोटी खबर पढ़ वक्त काटो फिर लो फलों का स्वाद 

नाश्ते के पहले या नाश्ते के बाद 

फिर जो हो तो छोटा-मोटा काम करो 

और फिर थोड़ी देर लेट कर आराम करो


इस बीच हमेशा मोबाइल रहेगा साथ

देखते रहना फेसबुक व्हाट्सएप और करते रहना दोस्तों से जरूरी गैर जरूरी बात 

तब तक लंच का टाइम हो जाना है 

खाना खाकर थोड़ा सा सो जाना है 

और शाम को उठकर पियो चाय 

और थोड़ा सा नाश्ता  

स्विगी से मंगा सकते हो पिज़्ज़ा या पास्ता नहीं तो खाओ घर का डिनर 

और टीवी पर देखते रहो  सीरियल 

याद रखो कोई भी प्रोग्राम जिसके बाद मिलता हो भंडारा या प्रसाद 

उसे अटेंड करना नहीं भूलना 

क्योंकि इसे बदल जाता है मुंह का स्वाद बीच में टाइम के हिसाब से दवाइयां लेना भी है जरूरी

स्वस्थ रहने की है मजबूरी 

यूं ही जीवन चलता रहेगा बे रोकटोक 

बीच में अच्छी लगती है बीवी से नोंकझोंक

फिर जब लगे झपकी , सो जाओ

सपनों की दुनिया में खो जाओ

यूं ही चलता रहता है जीवन का क्रम 

अभी मैं जवान हूं यह गलतफहमी पालने का भ्रम 

आदमी में भर देता है उत्साह और नवजीवन 

बिना काम के भी व्यस्त रहकर दिनचर्या सिमट गई 

लो एक दिन उम्र और  घट गई

ऐसे ही धीरे धीरे जिन्दगी कट गई


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

मुझे स्वर्ग से भी बढ़कर लगता है प्यारा

मेरी जन्म भूमि आगर ने मुझे संवारा 


मैंने जो भी पाई सफलता है जीवन में 

बोया उसका बीज गया था इस आंगन में


याद आता है मिट्टी से वह पुता हुआ घर

सीखा चलना मां की उंगली पकड़ पकड़ कर 


सीखा था अ से अनार और क से ककड़ी

पूरी बारह खड़ी, याद थी मैंने कर ली 


रटे एक से चालीस तक के सभी पहाड़े

और छड़ी से मिली मास्टर जी की मारे 


शैतानी का दंड , हमें मुर्गा बनवाना 

वो गिल्ली,वो डंडा और वो पतंग उड़ाना


 वो स्लेटें,वो झोला और टाट की पट्टी 

वह पल-पल में हुई दोस्ती, पल में कट्टी 


वह तालाब में कपड़े धोना और नहाना

रामआसरे की सेव,चौधरी रबड़ी खाना 


वह प्यारे स्वादिष्ट सिंघाड़े ,काले काले 

वो खिरनी, जामुन ,आम मीठे रस वाले


वो शहर का हाई स्कूल दरबार की कोठी

दादी हाथों पकी जुवारी की वह रोटी 


भाई बहन के संग हुई जो पल-पल मस्ती

होती थी परिवार ,गांव की पूरी बस्ती


सोमवार को बैजनाथ , दर्शन को जाना

रास्ते में झाड़ी से तोड़ करौंदे खाना 


दशहरे को आते जब रावण का वध कर

पैर बुजुर्गों के छूते थे, घर-घर जाकर 


मां का लाड़ दुलार और वह पालन पोषण

मिली पिताजी की शिक्षाएं और अनुशासन


रोज शाम को छत पर जाकर गिरना तारे

क्या क्या करें याद हम ,क्या क्या और बिसारे 


जब भी आती याद,बहुत विव्हल होता मन

आंखों आगे , नाचा करता ,मेरा बचपन 


यहां की माटी लाल, मेरा तो है यह चंदन 

मातृभूमि तुझको मेरा शत शत अभिनंदन


मदन मोहन बाहेती घोटू 


हलचल अन्य ब्लोगों से 1-