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शुक्रवार, 17 मार्च 2023

प्रकृति से बातचीत 

आज सवेरे ,प्रातः प्रातः
मैंने प्रकृति से करी बात 
 
कोयल को कूकी, मैं भी कुहका
चिड़िया चहकी , मैं भी चहका
कलियां चटकी और फूल खिले,
वे भी महके , मैं भी महका

 जब चली हवाएं मंद मंद 
 मैंने त्यागे सब प्रतिबंध 
 मैं भी बयार के संग संग 
 स्वच्छंद बहा, लग गए पंख 
 
 और जब कपोत का झुंड उड़ा 
 तो मैं भी उनके साथ जुड़ा 
 पूरे अंबर की सैर करी ,
 मैंने भी उनके साथ साथ 
 मैंने प्रकृति से करी बात 
 
जब रजनी बीती, भोर हुआ 
तो मैं आनंद विभोर हुआ 
पूरब में छाई जब लाली 
तो आसमान चितचोर हुआ 

भ्रमरों ने किया मधुर गुंजन 
हो गया रसीला मेरा मन 
तितली फुदकी, मैं भी फुदका,
कर नर्तन पाया नवजीवन 

बादल से जब सूरज झांका 
तो मैंने भी उसको ताका 
किरणे चमकी , मैं भी चमका
 फिर की प्रकाश से मुलाकात 
 मैंने प्रकृति से करी बात 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूनना 

कई चीजों का स्वाद 
बढ़ जाता है भूनने के बाद 
जैसे जब भुनता है चना 
स्वाद हो जाता है चौगुना 
भुनी हुई मूंगफली 
होती है स्वाद भरी 
पापड़ का असली स्वाद 
आता है भूनने के बाद 
मकई के दाने जब भुने जाते हैं 
स्वादिष्ट पॉपकॉर्न बन जाते हैं 
हम चाव से भुनी हुई शकरकंद खाते हैं 
चावल भी भूनकर पर परमल हो जाते हैं
भुने हुए बैंगन से बनता है भरता 
जिसको की खाने को सब का मन करता 
भुने हुए आलू का स्वाद होता है कमाल 
भुने खोए से बनते है,पेड़े लाल लाल 
और बड़े नोट को भुनाया जाय अगर
हमें प्राप्त होती है ढेर सारी चिल्लर
लेकिन जब आदमी जला भुना होता है 
तो वह खतरनाक ,कई गुना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
जब बूढ़े बूढ़े मिलते हैं 

1
गणित का एक नियम जो हमें सिखलाया है जाता 
 माइनस से मिले माइनस नतीजा प्लस में हैआता 
हो बूढ़े माइनस तुम और बूढ़े माइनस हम है,
मिले तो प्लस,जवानी का, मजा दूना है हो जाता

2
परीक्षा में अगर मिलते, हैं नंबर साठ से ज्यादा सफलता तुम को मिलती है डिवीजन फस्ट कहलाता 
उम्र के साठ से ज्यादा, गुजारे वर्ष ,मेहनत कर,
डिवीजन फस्ट पाया है,जिएं हम ठाठ से ज्यादा 
3
 अनुभव से भरे रहते ,भले ही वृद्ध होते हैं 
 करा लो काम कुछ भी तुम, सदा कटिबद्ध होते हैं 
अगर मिलते इकट्ठे हो,जवानी लौट फिर आती,
  इन्हे कमजोर मत समझो ,बड़े समृद्ध होते हैं
  4
भले धुंधली सी आंखें हैं, भले कमजोर होता तन 
जवानी जोश जज्बे से ,भरा रहता है लेकिन मन 
न जाओ उम्र पर ,चावल पुराने स्वाद होते हैं महकता उतना ज्यादा है पुराना जितना हो चंदन
  5 
जमा पूंजी है अनुभव की, किसी के ना सहारे हम 
बुलंद है हौसले अपने, नहीं समझो बिचारे हम 
रहे हम दोस्त बन कर के, हमारे तुम, तुम्हारे हम 
यूं मिल खुशियों से जीवन के, बचे दिन भी गुजारे हम

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 15 मार्च 2023

कभी कभार 

रोज-रोज की बात न करता, कहता कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी ,तुम थोड़ा सा प्यार

 प्यासी आंखें निरखा करती ,तेरा रूप अनूप 
 हम पर भी तो पड़ जाने दो गरम रूप की धूप 
 हो जाएंगे शांत हृदय के ,दबे हुए तूफान 
 जन्म जन्म तक ना भूलूंगा, तुम्हारा एहसान
 मादक मदिरा के यौवन की यदि छलका दो जाम
 सारा जीवन ,न्योछावर कर दूंगा तेरे नाम 
 रहे उम्र भर ,कभी ना उतरे ,ऐसा चढ़े खुमार रोज-रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
 बरसा दिया करो हम पर भी, तुम थोड़ा सा प्यार
 
घड़ी दो घड़ी बैठ पास में सुन लो दिल की बात 
अपने कोमल हाथों से सहला दो मेरे हाथ 
ना मांगू चुंबन आलिंगन, ना मांगू अभिसार
मुझे देख तिरछी चितवन से मुस्कुरा दो एक बार 
 तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा करके यह उपकार लेकिन मुझको मिल जाएगा खुशियों का संसार 
मुझे पता है तुम जवान, मैं जाती हुई बहार 
 रोज रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी बस थोड़ा सा प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बीत गया फिर एक बरस 

लो बीत गया फिर एक बरस 
कुछ दिन चिंताओं में बीते,
कुछ दिन खुशियों के हंस हंस हंस 
लो बीत गया फिर एक बरस 

हर रोज सवेरे दिन निकला,
 हर रोज ढला दिन ,शाम हुई 
 कोई दिन मस्ती मौज रही 
 तो मुश्किल कभी तमाम हुई 
 सुख दुख ,दुख सुख का चक्र चला,
 जैसा नीयति ने लिखा लेख 
 जो भी घटना था घटित हुआ,
 हम मौन भुगतते रहे ,देख 
 जो होनी थी वह रही होती 
 कुछ कर न सके ,हम थे बेबस
 लो बीत गया फिर एक बरस 
 
 रितुये बदली ,गर्मी ,सर्दी ,
 आई बसंत ,बादल बरसे 
 जीना पड़ता है हर एक को 
 मौसम के मुताबिक ढल करके 
 परिवर्तन ही तो जीवन है,
 दिन कभी एक से ना रहते 
 हैं विपदा तो आनंद कभी 
 जीवन कटता सुख दुख सहते 
 आने वाले वर्षों में भी,
  यह चक्र चलेगा जस का तस 
  लो बीत गया फिर एक बरस 
  
ऐसे बीता, वैसे बीता,
या जैसे तैसे बीत गया 
उम्मीद लगाए बैठे हैं,
 खुशियां लाएगा वर्ष नया 
 पिछले वर्षों के अनुभव से 
 हमने जो शिक्षा पाई है 
 वह गलती ना दोहराएंगे 
 यह हमने कसमें खाई है 
 कोशिश होगी आने वाला
 हर दिन हो सुखद, हर रात सरस 
 लो बीत गया फिर एक बरस

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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