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मंगलवार, 17 मई 2022

सुख की तलाश

क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर सुख तो तुम्हारे अंदर है 

झांको अपने अंतरतर में ,खुशियों का भरा समंदर है
 तुम को जीवन के जीने का, बस दृष्टिकोण बदलना है
 निज सोच सकारात्मक रखना, सुख के रस्ते पर चलना है 
 वो लोग दुखी हो जाते हैं ,सुख की तलाश में भटक भटक 
 जब लोग मोह के नाले में जाती है उनकी नाव अटक 
 लोगों की अच्छाई देखो , उनमें कमियां तुम ढूंढो
 मत 
 यदि जी भर प्यार लुटाओगे ,दूना आयेगा तुम्हे पलट
 बिखरे हैं मानसरोवर में , सुख के मोती , कंकर दुख के
बन करके तुमको राजहंस ,चुगना होगा मोती सुख के
इस जीवन की सुख ही सुख का ,झरना झर रहा निरंतर है 
क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर, सुख तो तुम्हारे अंदर है

घोटू 

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

नारी का श्रृंगार तो पति है

BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: नारी का श्रृंगार तो पति है: नारी का श्रृंगार तो पति है पति पर जान लुटाए एक एक गुण देख सोचकर कली फूल सी खिलती जाए प्रेम ही बोती प्रेम उगाती नारी प्यारी रचती जाए *****
 नारी का श्रृंगार तो पति है
पति पर जान लुटाए
एक एक गुण देख सोचकर
कली फूल सी खिलती जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*****
प्रेम के वशीभूत है नारी
पति परमेश्वर पर वारी
व्रत संकल्प अडिग कष्टों से
सौ सौ जन्म ले शिव को पाए
कर सेवा पूजा श्रद्धा से
फूली नहीं समाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
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चाहत से मुस्काए गजरा
बल पौरुष से केश सजे
नेह प्रेम पर माथ की बिंदिया
झूम झूम नव गीत रचे
नैनों से पति के बतिया के
हहर हहर लव चूमे जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
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जहां समर्पण प्यार साथ है
नारी अद्भुत बलशाली
नही कठिन कुछ काज है जग में
सीता सावित्री या अपनी गौरी काली
मंगल सूत्र गले में धारे
मंगल लक्ष्मी करती जाये
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
निज बल अभिमान चूरकर
चरण वंदना में रत रहती
हो अथाह सागर भी घर में
त्याग _ प्रेम दिल लक्ष्मी रहती
विष्णु पालते जग को सारे
लक्ष्मी ममता ही बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
पति के प्रेम की रची मेंहदी
देख भाग्य मुस्काती मन में
वहीं अंगूठी संकल्पों की
रहे चेताती सात वचन की
दंभ द्वेष पाखण्ड व छल से
दूर खड़ी, अमृत बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
गौरी लक्ष्मी सीता पाए
सरस्वती का साथ निभाए
पुरुष भी क्यों ना देव कहाए??
क्यों ना वो जग पूजा जाए?
प्रकृति शक्ति की पूजा करके
निज गौरव नारी को माने
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत। 29.04.2022
3.33_4.33 पूर्वाह्न

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

तेरा प्यार 

मैंने सारे स्वाद भुलाए, जबसे तेरा प्यार चखा है 
अपने से भी ज्यादा तूने हरदम मेरा ख्याल रखा है

खुद से ज्यादा तुझको रहती हरदम औरों की है चिंता
नेह उमड़ता है नैनों से ,और बरसती रहती ममता 
परेशानियां सब सह लेगी ,मुंह पर कोई शिकन ना लाए 
लेकिन ख्याल रखेगी सबका ,कोई कुछ तकलीफ न पाए 
तेरे मुस्काते चेहरे ने, हृदय हमारा सदा ठगा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए जबसे तेरा प्यार चखा है

 नर्म हृदय तू ,सदा नम्रता तेरे उर में रहती बसती 
सारे काम किया करती है तू खुश होकर हंसती हंसती
 तुझ में अच्छे संस्कार हैं तू गृहणी व्यवहार कुशल है 
 सुख और चैन मेरे जीवन में, तेरे मधुर प्यार का फल है 
सद्भावों से भरी हुई तू, जीवनसंगिनी और सखा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए ,जब से तेरा प्यार चखा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मेरी पत्नी बहुत मधुर है 

मेरी उमर हो गई अस्सी
मैं अब भी हूं मीठी लस्सी 
पिचहत्तर होने आई है 
पत्नी मेरी रसमलाई है 
हम दोनों का साथ अनूठा 
यह भी मीठी ,मैं भी मीठा 
सीधी सादी, सुंदर भोली 
 बहुत मधुर मीठी है बोली 
सब के संग व्यवहार मधुर है 
दिल से करती प्यार मधुर है 
कभी सुहाना गाजर हलवा 
कभी जलेबी जैसा जलवा 
कभी गुलाब जामुनो जैसी 
या कातिल काजू कतली सी 
रबड़ी है ये कलाकंद है 
हर एक रुप में यह पसंद है 
अधरम मधुरम वदनम मधुरम
 नयनम मधुरम चितवन मधुरम
 मनमोहक मुस्कान खान है 
 मिठाई की ये दुकान है 
 यह तो था सौभाग्य हमारा 
 जो पाया है साथ तुम्हारा 
 सहगामिनी पति की सच्ची 
 मेरी तारा सबसे अच्छी 
 जीवन में बहार बन आई 
 जन्मदिवस की तुम्हे बधाई

मदन मोहन बाहेती घोटू 
आज भी 

आज भी कातिल अदायें आपकी हैं ,
आज भी शातिर निगाहें आपकी हैं 
आज भी लावण्यमय सारा बदन है,
आज भी मरमरी बांहे आपकी है 
महकता है आज भी चंदन बदन है ,
आज भी है रूप कुंदन सा दमकता 
अधर अब भी है गुलाबी पखुड़ियों से,
और चेहरा चांद के जैसा चमकता 
बदन गदरा गया है मन को लुभाता,
कली थी तुम फूल बनकर अब खिली हो 
 भाग्यशाली मैं समझता हूं मै स्वयं को 
 बन के जीवनसंगिनी मुझको मिली हो 
 केश अब भी काले ,घुंघराले ,घनेरे 
 और अंग अंग प्यार से जैसे सना हो 
 हो गई होगी पिचत्तर की उमर पर ,
 मुझे अब भी लगती तुम नवयौवना हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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