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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

लॉक डाउन में क्या करें

तुम फुर्सत में ,हम फुर्सत में
तंग हो गए इस हालत में
कब तक चाय पकोड़े खायें
टी वी देखें ,मन बहलायें
एकाकीपन ग्रस्त हो गए
लॉक डाउन से त्रस्त हो गए
सभी तरफ छाये सन्नाटे
अपना समय किस तरह काटें
यूं न करें ,कुछ पौधे पालें
आफत को अवसर में ढालें
किचन गार्डन  एक बनाकर
उसमे सब्जियां खूब उगाकर
कुछ गमलों में फूल खिला ले
कुछ में तुलसी पौध लगा ले
बेंगन ,तौरी ,खीरा ,घीया
हरी मिर्च ,पोदीना ,धनिया
बोयें तरह तरह की सब्जी
मीठा नीम और अदरक भी
सींचें इन्हे ,प्यार से पालें
अपना सच्चा मित्र बनालें
इनका साथ तुम्हे सुख देगा
जब देखोगे ,तुम्हे लगेगा
तुम्हे देख खुश हो जाता है
पत्ता पत्ता मुस्काता है
कलियाँ फूल बनी विकसेगी
तुमको कितनी खुशियां देंगी
फिर  पुष्पों से निकलेंगे फल
और बढ़ेंगे हर दिन ,पलपल
होता तुम विकास देखोगे
खुशियां आसपास देखोगे
खुशबू फूल बिखेरेंगे जब
और पौधे सब्जी देंगे जब
घर की सब्जी ताज़ी ताज़ी
 खायेंगे सब ,खुश हो राजी
उनका स्वाद निराला होगा
 तृप्ति दिलाने वाला होगा
जितना प्यार इन्हे हम देंगे
कई गुना वापस कर देंगे
इसीलिये तुम मेरी मानो
सच्चा मित्र इन्हे तुम जानो
सुख पाओ इनकी संगत में
 काम यही अच्छा फुर्सत  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

पग ,पैर और चरण

मैंने पद को लात मार दी ,अपने पैरों खड़ा हो गया
मंजिल पाने ,कदम बढ़ाये ,ऊंचाई चढ़ ,बड़ा होगया
प्रगति पथ पर ,मुझे गिराने ,कुछ लोगों ने टांग अड़ाई
लेकिन मैंने मार दुलत्ती ,उन सबको थी  धूल  चटाई
चढ़ा चरणरज मातपिता की अपने सर ,आशीषें लेकर
पाँव बढ़ाये ,महाजनो के पदचिन्हों की पगडण्डी पर
न की किसी की चरण वंदना ,न ही किसी के पाँव दबाये
पग पग आगे बढ़ा लक्ष्य को ,बिना गिरे ,बिन ठोकर खाये
पथ में आये ,हर पत्थर का ,मैं आभारी ,सच्चे दिल  से
जिनके कारण ,मैंने सीखा ,पग पग लड़ना ,हर मुश्किल से

घोटू 
कोरोना लाया बरबादी

दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी
कितनो के ही प्राण हर लिए ,कई दुकाने बंद करवादी

रात चाँद धुंधला दिखता है और तारों की चमक खो गयी
पर्यावरण बहुत बिगड़ा है ,शुद्ध हवा दुश्वार हो गयी
जिन वृक्षों से ऑक्सीजन था मिलता ,हमने कटवा डाले
आज ऑक्सीजन के खातिर ,फिरते है हम मारे मारे
आज  फेंफड़े तरस रहे है ,शुद्ध हवा भी ना मिल पाती
दुष्ट कोरोना ऐसा आया , लेकर आया है  बरबादी  

बाज़ारों में सन्नाटा है ,हर जन है दहशत का मारा
श्रमिक गाँव को लौट रहे है ,तालाबंदी लगी दुबारा
भीड़ लग रही अस्पताल में ,नहीं मिल रहा बिस्तर खाली
प्राण दायिनी ,कई दवा की ,जम होती काला बाज़ारी
एक दूजे पर लगा रहे है लांछन ,हम सब है अपराधी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है  बरबादी

ना त्यौहार मन रहा कोई ,ना उत्सव ना भीड़भाड़ है
स्कूल कॉलेज बंद पड़े है , मॉल, सिनेमा सब उजाड़ है
कैसी गाज गिरी पृथ्वी पर ,कैसा कठिन समय यह आया
दुनिया के सारे देशों पर ,मंडरा रहा मौत का साया
रद्द हुए कितने आयोजन ,कितनो की शादी टलवा दी
दुष्ट कोरोना ऐसा आया ,लेकर आया है बरबादी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '   

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

लालच या बहानेबाजी

कहने को तो डाइटिंग पर चल रहे ,पर मिला न्योता ,
मुफ्त में मिल रही दावत ,चलो ज्यादा ठूस ही ले
सूख नीरस हुआ गन्ना ,जानते हम रस नहीं है ,
मुफ्त में पर मिल रहा है ,चलो थोड़ा चूस ही लें
पेट थोड़ा लूज़ है पर ,सालियान इसरार करती ,
ये भी खा लो ,वो भी खा लो ,टाल दें कैसे अनुग्रह
यार दोस्तों ने पिला दी ,हमें मालूम ,चढ़ गयी है ,
पेग पर हम पेग पीते ,भावना में जा रहे बह
थोड़ा लालच ,थोड़ी नीयत ,और कुछ भावुक हृदय हम ,
बात सबकी मानते ना तोड़ सकते दिल किसीका
डाइबिटीज भी हो गयी है ,और ब्लडप्रेशर बढ़ा है ,
कई बिमारी ग्रसित है ,मिल रहा है फल  इसीका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
रहो बच कर कोरोना से

दिनबदिन हो रहा  मुश्किल,कोरोना का खेल प्रियतम
रहो बच कर कोरोना से ,कष्ट कुछ दिन झेल  प्रियतम

पूर्णिमा के चाँद जैसा ,तुम्हारा आनन चमकता
और उस पर ,अधर सुन्दर से मधुर अमृत टपकता
गुलाबी ,अनमोल है ये ,रतन  चेहरे पर तुम्हारे
इन्हे ढक लो 'मास्क 'से तुम ,कोई ना नीयत बिगाड़े
नाक छिद्रों में सुहाने ,नित्य डालो तेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

हाथ ये कोमल कमल से ,हाथ कोई ना लगाये
इन्हे धो,रखना छिपाए ,कोई इनको छू न पाये
सभी से कुछ दूरियां तुम ,हमेशा रखना बनाकर
इसलिए बाहर न निकलो ,रखो तुम खुद को छुपाकर
भले ही बंधन तुम्हे ये ,लगे कुछ दिन जेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

टोकता रहता तुम्हे मैं ,मुझे लगता बहुत डर  है
तुम भी उन्नीस ,वो भी उन्नीस ,भटकने वाली उमर है
इसलिए 'वेक्सीन 'लगवा ,बनाकर हथियार इनको
कोप से इस महामारी के बचा रखना स्वयं को
कोरोना से ना कभी भी ,हो तुम्हारा मेल प्रियतम
दिनबदिन हो रहा मुश्किल ,कोरोना का खेल प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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