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सोमवार, 29 मई 2017

सभी को अपनी पड़ी है 

सभी को अपनी पड़ी है ,
कौन किसको पूछता है 
पालने को पेट अपना,
हर एक  बंदा जूझता है 
कोई जुट कर जिंदगी भर ,
है सभी साधन जुटाता 
कोई पाता विरासत में ,
मौज जीवन भर मनाता 
कोई जीवन काटता है,
कोई जीवन जी रहा है 
कोई रहता है चहकता ,
कोई आंसू पी रहा है 
अपनी अपनी जिंदगी का,
नज़रिया सबका अलग है 
कोई तो है मस्त मौला ,
कोई चौकन्ना,सजग है 
कोई जाता मंदिरों में ,
लूटने दौलत धरम की 
ये जनम तो जी न पाता ,
सोचता अगले जनम की 
गंगाजी में लगा डुबकी,
पाप कोई धो रहा है 
और वो इस हड़बड़ी में,
आज अपना खो रहा है 
कोई औरों के फटे में ,
मज़ा लेकर झांकता है 
अपनी कमियों को भुलाकर ,
दूसरों की ,आंकता है 
नहीं नियति बदल सकती ,
भाग्य के आधीन सब है 
उस तरह से नाचते है ,
नचाता जिस तरह रब है 
बहा कर अपना पसीना ,
तुमने जो दौलत कमाई 
वो भला किस कामकी जो ,
काम तुम्हारे न आयी 
इसलिए अपनी कमाई,
का स्वयं उपभोग कर लो 
जिंदगी जितनी बची है,
उतने दिन तक मौज है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 बेबसी 

कुछ के आगे बस चलता है. ,कुछ के आगे हम बेबस है ,
     कहने को मरजी  के मालिक,रहते किस्मत पर निर्भर है 
लेकिन हम अपनी मजबूरी ,दुनिया को बता नहीं पाते ,
       जिस को पाने को जी करता ,वो चीज पहुंच के बाहर है 
क्या खाना है ,क्या पीना है,इस पर बस चलता है अपना ,
       इस पर न जबरजस्ती कोई ,जो मन को भाया,वो खाया 
बालों पर चलता अपना बस ,क्योंकि ये घर की खेती है ,
       जब भी जी चाहा ,बढ़ा लिए ,जब जी में आया,मुंडवाया 
जब जी चाहा, जागे,,सोये, जब जी चाहा ,नहाये ,धोये,
       लेकिन जीवन के हर पथ पर ,अपनी मरजी कब चलती है 
कुछ समझौते करने पड़ते ,जो भले न दिल को भाते है 
           रस्ते में  यदि  हो बाधाएं ,तो  राह  बदलनी  पड़ती  है 
लेकिन ये होता कभी कभी,कि अहम बीच में आजाता ,
      तो फिर मन को समझाने को ,हमने कुछ ऐसा काम किया 
शादी के बाद पड़ी पल्ले ,बीबी तो बदल नहीं सकते ,
        तो फिर मन की सन्तुष्टि को,हमने बिस्तर ही बदल लिया 

घोटू 
इस ढलते तन को मत देखो 

कोई कहता ढलता सूरज,कोई कहता बुझता दिया,
          कोई कहता सूखी नदिया ,मुरझाया फूल कोई कहता 
मै कहता हूँ कि मत देखो ,तुम मेरे इस ढलते तन को..  ,
         इस अस्थि पंजर के अंदर ,मस्ती का झरना है  बहता 
है भले ढली तन की सुर्खी,है भरा भावनाओं से मन ,
               ढले सूरज में भी होती,उगते सूरज की लाली   है 
माना है जोश नहीं उतना ,पर जज्बा अब भी बाकी है,
            अब भी तो ये मन है रईस ,माना तन पर कंगाली है 
मत उजले केशों को देखो ,मत करो नज़रअंदाज हमें,
               अंदाज हमारे देखोगे ,तो घबरा गश खा जाओगे 
स्वादिष्ट बहुत ये पके आम,हैं खिले पुराने ये चांवल,
             इनकी अपनी ही लज्जत है ,खाओगे,भूल न पाओगे 

घोटू 

गुरुवार, 25 मई 2017

वाहन सुख 

कुछ लक्ष्मीजी के वाहन पर ,ऐसी लक्ष्मी की कृपा हुई ,
वो इंद्र सभा में जा बैठे और इंद्र वाहन से फूल गए 
कुछ शीतलामाता के वाहन ,सीधे सादे सेवाभावी,,
माता का जब वरदान मिला ,अपनी स्वरलहरी भूल गए 
थे कभी विचरते खुले खुले ,जब से शिववाहन बन बैठे,
शिवजी के संग पूजे जाते ,अब उनकी शान निराली है 
कुछः दुर्गाजी के वाहन ने ,ऐसा आधिपत्य जमाया है ,
उनके कारण दुर्गामाता ,कहलाती शेरांवाली है 
बिल से जब निकले कुछ मूषक ,बन गए गजानन के वाहन,
मोदक के साथ देश को भी ,वो कुतर कुतर कर खाते है
विष्णु के वाहन गरुड़ आज ,मंदिर में पूजे जाते है ,
यम के वाहन महिष  से पर ,सभी लोग घबराते है 
है हंस सरस्वती का वाहन,और उसकी शान निराली है 
पानी और दूध पृथक करता ,पर वो भी चुगता है मोती  
ये वाहन और वाहन  चालक ,चालाक बहुत सब होते है ,
साहब की सेवा करते है ,जिससे है स्वार्थसिद्धि होती  

घोटू 

होटल के बिस्तर की आत्मकथा 

जाने कितनी बार मिलन की सेज मुझी पर सजती है 
खनका करती कई चूड़ियां ,और पायलें बजती है 
 कितने प्रेमी युगल ,मिलन का खेल यहाँ करते खेला 
कितनी बार दबा करता मै और झटके करता झेला 
नित नित नए और कोमल तन का मिलता स्पर्श मुझे 
देख  प्रेम लीलाएँ उनकी ,कितना मिलता हर्ष मुझे 
कई प्रौढ़ और बूढ़े भी आ करते याद जवानी को 
मै सुख का संरक्षण देता ,थके हुए हर प्राणी को 
मै निरीह ,निर्जीव बिचारा ,बोझ सभी का हूँ सहता 
नहीं किसी से कुछ भी कहता ,बस चुपचाप पड़ा रहता 
कोई होता मस्त,पस्त  कोई ,कोई उच्श्रृंखल सा 
मै सबको सुकून देता हूँ , मै हूँ बिस्तर होटल का  

घोटू 

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