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बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

  शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

इसने तो पिया था अमृत ,ये चाँद शरद का क्या जाने
होते है   कितने  दर्द  भरे, बुझते  दीयों के  अफ़साने
कहते है शरद पूर्णिमा पर ,चन्दा अमृत बरसाता है
अपनी सम्पूर्ण कलाओं पर ,इठलाता वह मुस्काता है
ये रूप देख उसका मादक ,मन विचलित सा हो जाता है
यमुना तट के उस महारास की यादों में खो जाता  है
उस मधुर चांदनी में शीतल,तन मन  हो जाता उन्मादा
याद आते  गोकुल,वृन्दावन ,आती है याद बहुत राधा
यूं ही हंस हंस कर रस बरसा,क्या जरूरत है तरसाने की
ये नहीं सोचता कान्हा की ,अब उमर न रास रचाने की
मदमाता मौसम उकसाता ,और चाह मिलन की जगती है
पर दम  न रहा अब साँसों में ,ढंग से न बांसुरी  बजती है
ये  चाँद पहुँच के बाहर है,फिर भी करता है बहुत दुखी
जैसे हमको ललचाती है ,पर घास न डाले  चन्द्रमुखी
वो यादें  मस्त  जवानी की ,लगती है मन को तड़फाने
इसने तो पिया था अमृत , ये चाँद  गगन का क्या जाने
होते   है   कितने  दर्द  भरे ,बुझते  दीयों  के  अफ़साने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

अजीब रिश्ते

        अजीब रिश्ते

ये रिश्ते भी ,कैसे अजीब होते है
पासवाले दूर ,और दूर वाले करीब होते है
माँ को अपने दामाद पर ,
बेटे से ज्यादा प्यार आता है
क्योंकि वह उसकी बेटी पर  ,
अपना जी भर के प्यार लुटाता है
और दामाद भी ,अपने माँ बाप से ज्यादा,
प्यार करता है अपने ससुर और सास से
जिन्होंने अपनी पाली पोसी बेटी ,
उसके हवाले करदी,उसके विश्वास पे
उसे पराये घर से आये ,
अपने दामाद की हर बात सुहाती है
लेकिन पराये घर से आयी ,
अपनी बहू में कई कमियां नज़र आती है
सोचती है कि बहू ने कुछ जादू टोना किया है
उससे उसका बेटा छीन लिया है
उसके मायके से आयी हर चीज लगती है ,
सस्ती और बेकार
उसको ताने मारे जाते है हर बार
और दामाद को ,बिठाया जाता है,पलकों पर
उसकी आवभगत में जुट जाता है सारा घर
वो तो क्या ,उसके घरवालो का भी ,
'वी आई पी ' की तरह होता है सत्कार
त्योंहारों पर उन्हें भेजे जाते है उपहार
ये उपहार या शादी में दिया हुआ दहेज ,
एक तरह की रिश्वत है ,जिसका मतलब साफ़ है
जरा ख्याल रखियेगा ,
हमारी फ़ाइल आपके पास है
लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आये
बहू और दामाद के लिए ,
अलग अलग मापदंड क्यों जाते है अपनाये?
जिन्हे समझदार बहू औरअच्छा दामाद मिलता है ,
वो बड़े खुशनसीब होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर की शान-सपाट मैदान

      सर की शान-सपाट मैदान
 
काले काले घुंघराले बाल ,
जो हुआ करते थे कभी जिस सर की शान
वहां है आज एक सपाट मैदान
बढ़ती हुई उमर के साथ
अक्सर कई लोगों में होती है ये बात
सर होने लगता है सपाट 
याने क़ि हम दिखने लगते है खल्वाट
बचपन से कमाई हुई ,सर के बालों की दौलत ,
होने जब लगती है गायब
परेशान हो जाते  है सब
आदमी बेचारा रोता है
क्या आपने कभी सोचा है ,
ऐसा मर्दों के साथ ही क्यों होता है ?
क्या औरतों को कभी मर्दों की तरह ,
इस तरह टकले होते हुए देखा है
या मर्दों ने ही ले रखा इसका ठेका है
टकले होने के बतलाये जाते कई कारण है
संस्कृत में एक उक्ती है,
खल्वाट क्वचित ही होते निर्धन है
याने कि अधिकतर टकले होते है धनवान
लक्ष्मीजी उन पर होती है मेहरबान
दूसरा कारण ये कि कुछ समझदार मर्द,
दिमाग पर जोर डाल कर,ज्यादा सोचते है
और जब बात समझ में नहीं आती ,
तो खीज कर अपना सर नोचते है
हो सकता है इनमे से कोई बात ,
उनके सर के बाल उड़ाती है
पर मेरी समझ में तो तीसरी ही वजह आती है
आदमी शादी के बाद,
बीबी का गुलाम हो जाता है 
उसकी हर बात मानता है ,
उसके आगे सर नमाता है
और उसके आगे ,सर टेकते टेकते ,
हो जाता है उसका बुरा हाल
और उड़ने लगते है उसके सर के आगे के बाल
दफ्तर में भी ,वो बॉस के आगे सर रगड़ता है
तब ही तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता है
इसलिए धीरे धीरे ,सर के आगे का,
बीच का मैदान ,सपाट हो जाता है
सड़क की दोनों तरफ ,वृक्षों की तरह,
कुछ ही बाल उगे रहते है,
और आदमी खल्वाट हो जाता है
कुछ पुरुषार्थी लोगों के,
आगे के बाल तो ठीक रहते है ,
पर पीछे की चाँद निकल आती है
ये उनकी पत्नी के भाई के प्रति,
उनका प्रेम दिखलाती है
चाँद को बच्चे मामा कहते है ,
याने वो बीबी का भाई ,आपका साला है
उसके कारण ही ये गड़बड़ घोटाला है
आपको साले की सेवा करनी पड़ती है,
उसे आप सर पर बैठाते है
इसीलिए सर पर चाँद धरे नज़र आते है
और जिनके जीवन में बहुत सारे घपले होते है
अक्सर वो पूरे के पूरे टकले होते है
कुछ भी हो ,चमकती हुई टाँट के अपने ठाठ है ,
उससे व्यक्तित्व निराला होता है
अनुभवों की पाठशाला होता है
चेहरे पर गंभीरता ,ओढ़ी हुई नज़र आती है
पर जब लड़कियां ,उन्हें अंकल कहती है,
तो दिल पर सैकड़ों छुरियाँ चल जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

पटाया माँ को कैसे था

             पटाया माँ को कैसे था

थे छोटे हम ,पिताजी से ,डरा करते थे तब इतना ,
         कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और ये आज के बच्चे, हुए 'मॉडर्न' है  इतने ,
         पिता से पूछते है ,'मम्मी' को ,कैसे पटाया  था
न 'इंटरनेट'होता था,न ही 'व्हाट्सऐप'होता था,
         तो फिर मम्मी से तुम कैसे,कभी थे 'चेट' कर पाते
 सुना है उस जमाने में,शादी से पहले मिलने पर,
           बड़ा प्रतिबन्ध होता था,आप क्या 'डेट'पर जाते 
बड़े 'हेण्डसम 'अब भी हो,जवानी में लड़कियों पर,
           बड़ा ढाते सितम होगे,उस समय जब कंवारे थे
'फ्रेंकली'बात ये सच्ची ,बताना हमको डैडी जी ,
            माँ ने लाइन मारी थी ,या तुम लाइन मारे थे
 कहा डैडी ने ये हंस कर ,थे सीधे और पढ़ाकू हम,       
      कहाँ हमको थी ये फुरसत ,किसी लड़की को हम देखें
तुम्हारी माँ थी सीधी पर ,तुम्हारे 'नाना' चालू थे ,
              पटाया उनने 'दादा' को,'डोवरी 'मोटी  सी देके

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                    
         

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी

रंग-ए-जिंदगानी: लघु-कथा - मजबूरी या समझदारी: शर्मा जी ने जब अपने बेटे राजेश से अपने खर्चे के सिए कुछ पैसे मांगे, तो राजेश नाक-भौं सिकोड़ने हुए बोला, “ पिताजी आपका क्या हैं ? आप तो ...

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