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बुधवार, 20 मई 2015

गुलों से ख़ार हो गये

           गुलों से ख़ार हो गये

बताएं क्या,सुनाएँ क्या ,है ऐसे हाल हो गये
खुली जो आँख उठ गए,लगी जो आँख सो गये
पुरानी याद आई तो,हँसे या रो लिए कभी,
लुटाया जिनपे प्यार था ,उन्ही पे भार हो गये
जला के खुद को आग पर ,पकाया खाना उम्र भर,
पुराने बर्तनो से हम भी अब भंगार हो गये
जमा थी पूँजी खुट गयी,कमाई सारी लूट गयी ,
घुटन ये मन में घुट गयी ,थे गुल,अब ख़ार हो गये
बची न कोई हसरतें ,उठाके कितनी जहमतें ,
बुने थे ख्वाब कितने ही,सब तार तार हो गये
कहें भी तो किसे कहें, है किसको वक़्त कि सुने ,
है  'घोटू' शिकवे और गिले ,कई हज़ार हो गये 

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुड मॉर्निंग '

                 गुड मॉर्निंग '
सवेरे ही सवेरे जब ,कोई मुस्का,मधुर स्वर में ,
        तुम्हे 'गुड मॉर्निंग' बोले ,बजेगी घंटियां  मन की
सुहागा होगा सोने में ,अगर मिल जाए पीने को,
         गरम एक चाय का प्याला ,ताजगी आएगी तन की
लगेगा उगता सूरज भी,तुम्हे हँसता और मुस्काता,
         हवाओं में भी आएगी , सुगन्धी तुमको चन्दन  की
'न्यूज़ पेपर 'जो खोलोगे ,तो फीलिंग आएगा मन में ,
          सुहागरात  में  तुमने ,    उठाई  घूंघट  दुल्हन की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 19 मई 2015

शादी का बंधन

            शादी का बंधन

दिया भगवान ने मुझको ,अगर धरती पे जीवन है
है इस पर पूर्ण हक़ मेरा ,मिला जो प्यारा  सा तन है
करूं उपयोग मैं इसका, जैसे  भी मन में आता है 
तो  क्यों प्रतिबन्ध ढेरों से,ज़माना ये लगाता है
कभी ना तो कभी ये प्रश्न ,सभी के मन में उठता है
नहीं स्वातंत्र्य है कुछ भी ,भला क्यों ये विवशता है
मिला उत्तर ये भगवन ने,दिया है मन भी तन के संग
बड़ा भावुक वो होता है, जो रंग जाता किसी के रंग
तो उसके साथ जीवन भर का फिर बंध  जाता बंधन है
तो फिर क्या तन और क्या मन,सभी उसको समर्पण है
अगर बंधन ये ना होता  ,न बच्चे ,,घर नहीं रहता 
तो  इन्सां  और पशुओं में ,नहीं अंतर कोई   रहता 
रोकने को जो  उच्श्रंखलता,व्यवस्था है गयी बाँधी
यही बंधन है सामाजिक  ,जिसे हम कहते है शादी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आज आया युग नया है

          आज आया युग नया है

लेखनी कागज़ पे कुछ लिखती नहीं अब
उँगलियाँ  'कीबोर्ड ' पर टंकित करे सब 
           भेजते  'ई मेल' से है  सब  संदेशे ,
'     पोस्ट' करने का ज़माना   लद  गया है
       इस तरह का आज आया  युग नया  है
'फेस बुक' पर फेस दीखते अब हमारे
देखते   'यू ट्यूब' पर सारे   नज़ारे
      होगये स्मार्ट लड़के,लड़कियां सब ,
       फोन ये स्मार्ट जब से आ गया है
       इस तरह से आज आया युग नया है
हो रही 'व्हाट्स एप'पर मेसेजबाजी
शादी तक के लिए होते लोग राजी
      नया 'चेटिंग' और 'डेटिंग' का तरीका ,
      उँगलियों के इशारों पर छागया  है
      इस तरह का आज आया युग नया है  
बाज़ारों की संस्कृति अब खो रही है
'ओन लाइन'सभी  'शॉपिंग' हो रही है
         हो गया होशियार इतना गुरु 'गूगल '
          हल समस्या का सभी वो पा गया है
         इस तरह का आज आया युग नया  है
अब न खाना पकाना अम्मा सिखाती
'रेसिपी'  यू ट्यूब 'पर है सभी आती
           'ओन लाइन'बुक किया,'पीज़ा' मंगाया,
           तीस मिनटों में वो झट घर आगया है
           इस तरह का आज आया युग नया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'       

सोमवार, 18 मई 2015

भोजन और संस्कृती

         भोजन और संस्कृती

कोई खाता इटालियन,कोई खाता यूरोपियन,
कोई मुग़लाइ खाता है,कोई चाइनीज है खाता 
कोई वेजिटेरियन  है ,तो  कोई मांसाहारी पर,
जिसे,जो खाने की आदत,वही खाना है मनभाता  
कभी राजस्थानी हम ,चूरमा बाटी खाते है,
तो कभी 'लिट्टी चोखा'है जो कि खाना बिहारी है
कभी मक्की की रोटी और साग सरसों का पंजाबी,
कभी छोले भठूरे की,लगे लज्जत  निराली  है
कभी है पाव और भाजी, वडा और पाव कोई दिन,
मराठी 'झुनका और भाखर',कभी हमको सुहाता है
ढोकले,खांखरेऔर फाफडे ,खाते हम गुजराती,
कभी इडली और डोसे  का, स्वाद मद्रासी आता है
कभी पुलाव कश्मीरी,कभी केरल 'इडीअप्पम' ,
हैदराबादी बिरयानी,कभी 'उडप्पी'का खाना है
कभी है चाट दिल्ली की, बेड़मी आलू यू. पी. के ,
कभी इन्दोर एम. पी. का,लगे खाना सुहाना है
मलाई पान 'लखनऊ के तो लड्डू कानपूर के है,
कभी है आगरा पेठा ,कभी खुर्जा की खुरचन है
कभी बंगाली रसगुल्ला,कभी ''श्रीखण्ड 'गुजराती,
कभी गुलाब जामुन और जलेबी लूटती मन है
हमारे देश में जितनी ,विविधता भाषा ,संस्कृति में,
है खाने और पीने में ,विविधता उतनी ही ज्यादा
भटकते तुम रहो कितने ही देशों और विदेशों में,
मज़ा हमको मगर असली,घर के खाने में ही आता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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