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शुक्रवार, 8 मई 2015

तरकारी और इंसान

                तरकारी और इंसान

लोग कुछ गोल बेंगन से ,बिना पेंदी के होते है ,
   चमकती प्यारी सी रंगत और सर पर ताज चढ़ता है
कहीं पर वो नहीं टिकते ,इसलिए आग पर सिकते ,
    भून  कर के ,मसल करके ,बनाया जाता भड़ता  है
बड़ी प्यारी ,हरी भिन्डी ,जनानी उँगलियों जैसी ,
    बिचारी चीरी  जाती ,भर मसाला, स्वाद दिखती  है
आम पक ,होते है मीठे ,मगर वो टिक नहीं पाते ,
      केरियां कच्ची कट कर भी,बनी अचार ,टिकती है
तरोई हो या हो लौकी ,नरम,कमनीय होती है ,
     प्यार का ताप  पाते ही ,पका करती है  मतवाली
कटीली कोई कटहल सी ,जो काटो तो चिपकती है,
    बढ़ाती सबकी लज्जत है  , कोई नीबू सी रसवाली 
बड़ा बेडौल अदरक पर ,गुणों की खान होता है ,
     बड़ी सेक्सी ,हरी मिरची ,लोग खा सिसियाते है
करेले में है कड़वापन ,'शुगर'का वो मगर दुश्मन,
     भले ही खुरदुरा है तन   , स्वाद  ले लोग खाते है
बड़ा ढब्बू सा है कद्दू ,मगर है बंद मुट्ठी सा,
     वो ताज़ा ही रहा करता ,जब तलक बंद रहता है
और धनिया ,पुदीना भी शहादत देते जब अपनी ,
           और पिसते है बन चटनी ,तभी आनन्द  रहता है
इन्ही सब्जी से हम सब है ,हरेक की है अलग सूरत ,
    हरेक की है अलग फितरत, सभी में कुछ न कुछ  गुण है
कोई आगे है है जाता बढ़ ,कोई बेचारा जाता सड़ ,
      कौन किस काम में बेहतर,गुणी लोगो को मालूम  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

आशिक़ी

              आशिक़ी

आशक़ी का जूनून इंसां पे ,होता जब भी है हावी ,
    शराफत जाती तेल लेने और इज्जत स्वाह हो जाती
नतीजा ये निकलता है ,कोई बर्बाद हो जाता ,
      किसी की डूबती किश्ती ,किसी की वाह हो जाती

घोटू

फ़िल्मी रीत -हिन्दुस्तानी

            फ़िल्मी रीत -हिन्दुस्तानी

'घोटू'फिल्मिस्तान में  ,दो की चले दुकान
छाया इनका राज है,एक कपूर,एक खान
एक कपूर एक खान ,इन्ही की यहाँ बपौती
बरसों  से छाये , दादा   से  लेकर पोती
इंडस्ट्री पर ,कब्जा जमा हुआ है इनका
और ज़माना भी कायल है ,इनके फन का

घोटू

एक सलमान-दो दो ज्ञान

           एक सलमान-दो दो ज्ञान
                             १
   भले ही है ,भलामानस ,है बिरला  एक लाखों में
   बड़ा ही है दबंग दिल से ,बसा कितनी ही आँखों में ,
   नशे में क्या बुराई है ,कोई सलमान से  पूछे ,
  जमानत जो नहीं मिलती,तो होता बंद सलाखों में
                              २
लड़ाया इश्क़ कितनो से ,चलाये तीर नज़रों के ,
         किसी को मारा थप्पड़ तो ,पराई हो  गयी  कोई
बहुत सी लड़कियां गोरी,अभी भी मरती है उस पर ,
    चल रहा है अभी तक तो ,सिलसिला वो का ही वोही
बड़ा ही है दबंग बन्दा ,रंगे है सबके रंग बन्दा ,
      किसी भी काली लड़की पर ,नज़र उसने नहीं डाली
पड़ गया गलती से पीछे ,वो एक काली हिरणिया के,
             कटाये जेल के चक्कर   ,बुरी हालत बना डाली

घोटू

तब मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक...

मौन हो जाता है
अत्यंत आवश्यक,
तब -
जब हो गया हो
बहुत अधिक
कहना या सुनना,
जब लगने लगे कि
अब नहीं चाहते लोग
आपकी सुनना...
जब नहीं चल रहा हो
किसी पर अपना बस,
प्रतिकूल परिस्थितियों
के कारण जब
नहीं रह जाये
जीवन में कोई रस...
जब व्यथित हो चला
हो आपका मन,
जब नीरसता से भरा
हो वातावरण...
तब हो जायें शांत
तब हो जायें स्थिर
तब हो जायें उदासीन
तब हो जाये मौन...
क्योंकि -
मौन आत्मचिन्तन है
मौन आत्ममंथन है
मौन है परिमार्जन ह्रुदय का
मौन आत्मा का स्पंदन है...

- विशाल चर्चित

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