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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

जमना-जमाना

         जमना-जमाना

जो जमता है पानी तो बनता बरफ  है ,
पिघल कर के जाता वो फिर पानी बन है
कोई बात  जंचती ,नहीं गर है दिल को,
'जमा ही नहीं मामला'कहते हम है
जमा करते पैसा हम बैंकों में क्योंकि,
हमें पड़ती जरुरत,वो फिर काम आता
जमाने को रूतबा ये सारा ज़माना ,
है कैसे ही,कितने ही ,चक्कर चलाता
कभी रंग अपना जमाता है कोई,
यारों की जब वो है महफ़िल जमाता
शादीशुदा आदमी इस जहाँ में ,
है होता ससुर सासजी  का जामाता
हरेक इन्सां ,बचपन में होता सरल है,
तरल दूध जैसा ,सरस,शुद्ध,पावन
दही की तरह पर है जमने वो लगता ,
जवानी का उसमे जब लगता है जावन
बड़े काम का और ठहरा हुआ सा,
मथो मठ्ठा बनता,कभी बनता मख्खन
कभी चटपटा चाट बन कर के होता,
कभी स्वाद देता,कढ़ी ,रायता बन
जमा बर्फ फिर से पिघल  बनता पानी,
जमा दूध ,फिर दूध, कभी बन न पाता
जमा,जमगया ,वीर पुरुषों के जैसा ,
कदम अपने वापस कभी ना हटाता 

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'

करवा चौथ पर

             करवा चौथ पर

मद भरा मृदु गीत हो तुम,सुहाना संगीत हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत हो तुम
बंधा जब बंधन सुहाना ,लिए मुझ संग सात फेरे
वचन था सुख ,दुःख सभी में  ,रहोगी तुम साथ मेरे
पर समझ में नहीं आता ,जमाने की रीत क्या है
मै सलामत रहूँ ,तुमने ,आज दिन भर व्रत रखा है
खूब मै ,खाऊँ पियूं और दिवस भर निर्जल रहो तुम
कुछ न  खाओ ,इसलिए कि  ,उम्र मेरी रहे अक्षुण
तुम्हारे इस कठिन व्रत से ,कौन सुख मुझको मिलेगा
कमल मुख कुम्हला गया तो ,मुझे क्या अच्छा लगेगा
पारिवारिक रीत ,रस्मे , मगर पड़ती  है  निभानी
रचा मेहंदी ,सज संवर के ,रूप की तुम बनी रानी
बड़ा मनभावन ,सुहाना ,रूप धर ,मुझको रिझाती
शिथिल तन,दीवार व्रत की ,मगर है मुझको सताती
प्रेम की लौ लगी मन में ,समर्पण , चाहत बहुत है
एक व्रत जो ले रखा है ,बस वही पतिव्रत  बहुत है
चन्द्र का कब उदय होगा ,चन्द्रमुखी तुम खड़ी उत्सुक
व्रत नहीं क्यों पूर्ण करती ,आईने में देख निज  मुख
रूप का अनुपम खजाना ,और मन की मीत  हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत  हो  तुम
 
       मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

फलों की चाट

      फलों की चाट

कच्चे आम हरे होते है ,पक जाते तो होते पीले
खट्टे और सख्त होते है,पकते, होते नरम,रसीले
सारा खट्टापन खो जाता ,पकने पर आता मिठास है
छाजाती मनभावन खुशबू,और आजाता मधुर स्वाद है 
होते पुरुष ,फलों के जैसे ,बदला करते ,साथ उमर के
खट्टे भी है,मीठे भी है ,सुख देते सबको जी भर के
किन्तु औरतें ,मिर्ची जैसी ,इनको नहीं बदलना आता
रंग बदलता,साथ उमर के,किन्तु चरपरापन ना जाता
होती है जब ,हरी छरहरी,पकती  होती सुर्ख लाल है
रंग बदले पर तीखी रहती ,नहीं बदलती ,मगर झाल है
जितनी पतली और छरहरी ,उतनी अधिक चरपरी होती
ज्यों ज्यों  मोटी होती जाती,त्यों त्यों तीखापन है खोती
लोंगा मिर्ची आग लगाती ,मन भाती शिमला मिर्ची है
काली,लाल,हरी,पीली हो ,लेकिन मिर्ची तो मिर्ची  है
दुबली और छरहरी औरतें ,होती तीखी,नखरेवाली
जैसे जैसे होती मोटी ,वैसे वैसे  होती  'जॉली'
फल से पुरुष,औरतें मिर्ची ,फिर भी रहते साथ साथ है
तभी चटपटा ,चाट सरीखा, जीवन होता ,बड़ा स्वाद है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की

              तरक्की

आँखों में सपने उमड़ने लगे है
अब लोग आगे भी बढ़ने लगे है
कदम चार चल के ही जाते थे थक जो,
वो अब पर्वतों पे भी ,चढ़ने लगे है
छोटे से गावों और कस्बों के बच्चे ,
अब 'आई आई टी' में पढ़ने  लगे है
रखा रिक्शेवालों ने ,मोबाइल नंबर ,
वो भी अब तो 'मार्केटिंग' करने लगे है
कल काम पर हम न आएंगे मेडम,
महरी के  मेसेज   मिलने लगे है
वो आया था कल ,ले मिठाई का डब्बा ,
पड़ोसी से रिश्ते ,सुधरने  लगे है
दिखी जब से नेता के हाथों में झाड़ू ,
सड़कों से पत्ते खुद उड़ने लगे है
आएंगे दिन अच्छे ,लगता है ऐसा ,
समय से अब दफ्तर जो खुलने लगे है

घोटू

शादी के दस्तूर

   शादी के दस्तूर

शादी के संस्कार में ,
होते है जितने भी दस्तूर
हर एक की ,कुछ न कुछ ,
अहमियत होती है जरूर
जैसे सगाई में अंगूंठी का पहनाना
लड़का ,लड़की की ऊँगली में ,
अंगूठी पहना कर कहता है ,
देख मुझे ऊँगली पर मत नचाना
और लड़की ,लड़के को अंगूठी पहना कर,
 कहती है ,मै कुछ भी करूं ,
तुम मेरी तरफ ऊँगली मत उठाना
शादी के पहले ,दूल्हे दुल्हन को ,
हल्दी चढ़ाई  जाती है
इसमें शरीर के चार पांच स्थानो पर,
तैल  में मिली ,हल्दी लगाईं जाती है
और इस तरह उन्हें किया जाता है  आगाह
बहुत ज्यादा खुश मत हो,करके ब्याह
क्योंकि शादीके बाद ,
किचनमे करना पडेगा काम 
और तेल और हल्दी के लगेंगे दाग तमाम
शादी के समय ,दूल्हे की सुरक्षा का ,
पूरा ध्यान भी है रखा जाता
और इसी चक्कर में दूल्हे का चेहरा ,
पहना कर सेहरा है ढका जाता
ये इस डर से,कि कहीं पहचान न  ले ,
उसकी वो सारी गर्ल फ्रेंड्स ,
जिनसे उसने किया था शादी का वादा 
फिर उसे घोड़ी पर बिठाया जाता है
एक बार फिर सोच समझ कर ,
भागने का मौका दिया   जाता है
कहीं दूल्हा भाग न जाए ,इस डर से,
दुल्हन की सहेलियां भी घबराती है
इसीलिये ,दूल्हे के जूते छुपाती है
और शादी के समय ,जब सात फेरे
है लगाए जाते
शुरू शुरू में दूल्हा रहता है आगे
पर बाद में दुल्हन ही लीड करती है
शादी के बाद भी ,शुरू मे थोड़े दिन,
दूल्हे का रौब चलता है ,
पर बाद में सारी उमर पत्नी की ही चलती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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