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सोमवार, 27 जनवरी 2014

मिर्ची

           मिर्ची
मिर्ची ,
जितनी छोटी होती है,
उतनी ही तेज होती है
लोंगा मिर्ची ,कभी मुंह में रख कर तो देखो,
आग लगा देती है
बड़ी,गठीली,हरी मिर्ची ,
जब सलाद की प्लेट में मुस्कराती है
बड़ा मन भाती  है
कभी हरी है,कभी लाल है
सचमुच कमाल है 
और जब फूल कर उसका बदन
शिमला मिर्ची सा जाता है बन
तो खो जाता है उसका चरपरापन
बुढ़ापे में भी ,सूख कर ,
कभी तड़के के काम आती है
कभी पिस कर ,व्यंजनो का स्वाद बढाती है
मिर्ची हर उम्र में,हर रंग और रूप में,
होती है चरपरी
उसकी तासीर गरम होती है ,
पर होती है स्वाद से भरी
ये गुणो की खान है
आती कई काम है
इससे नज़र उतारी जाती  है
किसी की नज़र न लगे,इसलिए ,
दूकानो के आगे लटकाई जाती है
जब बदमाशों की आँख में झोंकी जाती है
महिलाओ की इज्जत बचाती है
मिर्ची की तेजी,घोड़ी की तेजी से भी फास्ट होती है
दिन में खाओ,अगली सुबह ब्लास्ट होती है
कभी कभी ,बिना छूए या बिना खाये ,
भी  असर दिखाती है 
आपको हँसता और खुशहाल  देख,
लोगों को मिर्ची लग जाती है
मिर्ची और आम
दोनों आते है अचार बनाने के काम
मिर्ची का अचार,नीबू के साथ,खट्टा होता है
पर बड़ा चटपटा होता है
आम का भी अचार बनता है पर ,
आम और मिर्ची में होता है बड़ा अंतर
क्योंकि आम तो बढ़ती उम्र के साथ,
बदल लेता है अपना रंग और स्वाद
खट्टापना छोड़,हो जाता है मीठा,लाजबाब
पर मिर्ची ,छोटी हो या बड़ी,
लाल हो या हरी ,
कच्ची हो या पक्की
होती है बड़ी झक्की
हमेशा रहती है ,तेज और झर्राट
नहीं छोड़ पाती है अपना स्वाद
फिर भी,सबके मन को रूची है
क्योंकि,मिर्ची तो मिर्ची है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

दो सो साल पहले

             दो सो साल पहले

ना अखबार न म्यूजिक सिस्टम ,
                              टेबलेट ना ,ना कंप्यूटर
लालटेन और दीये जलते ,
                              ना बिजली की लाईट घर     
ना चलते बिजली के पंखे ,
                             न ही रेडियो ,टेलीविजन
सोचा है क्या ,कभी आपने ,
                              कैसे कटता  होगा जीवन
आवागमन बड़ा मुश्किल था ,
                               न थी रेल ,ना ही मोटर ,बस
या तो पैदल चलो अन्यथा ,
                                बैल गाड़ियां ,घोड़े या रथ
लोग महीनो पैदल चल कर ,
                                  तीर्थ यात्रायें करते थे  
गया गया सो गया ही गया ,
                                 ऐसा लोग कहा करते थे
होते थे दस ,पंद्रह दिन के ,
                                शादी और ब्याह के फंक्शन
खाना पीना,कई चोंचले,
                               जिससे लगा रहे सबका मन
चौपालों पर हुक्का पानी ,
                               गप्पों से दिन गुजरा करता
किन्तु बाद में ,घर आने पर,
                                 कैसे उनका वक़्त गुजरता
ना था अन्य मनोरंजन कुछ ,
                                 तो बेचारे फिर क्या करते 
पत्नी साथ मनोरंजन कर ,
                               थकते और सो जाया करते
शाम ढले ,होता अंधियारा ,
                               करे आदमी क्या बेचारा
इसीलिये हो जाते  अक्सर ,
                                हर घर में बच्चे दस,बारा
बढ़ती उम्र ,नहीं बचता था ,
                                 उनमे थोडा सा भी दम ख़म
तब पागल से ,हो जाते थे ,
                                सठियाना कहते जिसको हम
किन्तु आज के तो इस युग में,
                                जीवन पद्धिति ,बदल गयी है
बूढा हो ,चाहे जवान हो,
                               समय किसी के पास नहीं है
टी वी,इंटरनेट ,चेट में,
                             सारा समय व्यस्त रहते है
खोल फेस बुक या मोबाईल ,
                                ये बातें करते रहते है
अब तो वक़्त ,कटे चुटकी में ,
                                 पर तब कैसी होगी हालत
नहीं कोई भी संसाधन थे ,
                                     बूढ़े क्या करते होंगे तब 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम

                 मौसम 

मान जाओ इस तरह ना ,रूठने का है ये मौसम
प्यार की रंगीनियों को ,लूटने का है ये मौसम
लिपटने का,चिपटने का ,सिमिटने का,समाने का ,
बाँहों के बंधन में बंधकर,टूटने का है ये मौसम

घोटू 

प्रार्थना

         प्रार्थना
मैं तेरे आगे नतमस्तक ,
तू मेरा  मस्तक ऊंचा कर
मुझमे इतना साहस भर दे,
चलूँ उठाकर,मैं अपना सर
जीवन की सारी पीड़ाय़े ,
झेल सकूं मैं यूं ही हंसकर
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दे,
करता रहूँ कर्म जीवन भर
भला बुरा पहचान सकूं मैं ,
मुझ में तू ऐसी शक्ति भर
चेहरे पर मुस्कान ला सकूं,
किसी दुखी की पीड़ा हर कर 
लेकिन मद और अहंकार से ,
रखना दूर ,मुझे परमेश्वर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निंदक नियरे राखिये

             निंदक नियरे राखिये

           चमचों से बचो 

      निंदक पास रखो

      क्योंकि आपकी अपनी बुराई

      जो आपको नज़र न आयी

       आपको बतलायेंगे 

       खामियाँ  गिनवाएंगे 

       क्योंकि आप जिससे रहते है बेखबर

       ढूंढ लेती है निंदकों की नज़र

       आपकी कमी और दोष

       बताएँगे  खोज खोज

       जिससे थे आप अनजाने

       और बिना कोई बुरा माने

       गलतियां सुधारते रहिये

       व्यक्तित्व निखारते रहिये

        वरना चमचे

        खुद करेंगे मज़े

        अच्छाई बुराई से बेखबर

         आपकी तारीफें कर

         हमेशा वाही वाही करेंगे

         आपकी तबाही करेंगे

         बढा  अहंकार देंगे

          आपको बिगाड़ देंगे

         इसलिए ये है आवश्यक

         आसपास रखो निंदक

          क्योंकि वो ही आपको निखारेंगे

          आपका  व्यक्तित्व  संवारेंगे

 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'          

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