मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शब्द जो लिखे न गए.....
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उभरे मन में लेकिन, समझे न गएशब्द जो लिखे न गए। अंतस खुश हो या उदास हो,भूख
हो या प्यास हो,ख्याल सांचों में ढले न गए,शब्द जो लिखे न गए।अधरों तक आकर
भी, रूह क...
13 घंटे पहले