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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार
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पुराण बतलाते है
जब जब धर्म की हानि होती है,
भगवान अवतार ले कर आते है
त्रेता में राम का रूप धर कर अवतार लिया
द्वापर में कृष्ण रूप में प्रकटे,
और दुष्टों का संहार किया
पर आजकल,इस कलयुग में,धर्म की हानि नहीं,
धर्म का विस्तार हो रहा है
जिधर देखो उधर धर्म ही धर्म,
का प्रचार हो रहा है
भागवत कथाएं,
गाँव गाँव शहर,कस्बो में,
टी.वी. के कई चेनलों में,
साल भर चलती है
कितनी भीड़ उमड़ती है
भागवत कथा सुन कर कितने ही श्रोताओं में,
मोक्ष की आस जगी है
तीर्थो में उमड़ती भीड़ को देखो,
सब में पुण्य कमाने की होड़ लगी है
मंदिरों में आजकल इतने लोग जाते है
कि भक्तों को दर्शन देते देते,
भगवान भी थक जाते है
तब सांवरिया सेठ का रूप धर,
भगवान ने नानीबाई का मायरा भरा था
अपने भक्त नरसी मेहता पर उपकार करा था
आज कल कई सेठ,
कितनी ही गरीब कन्याओं का,
सामूहिक विवाह करवाते है
और भरपूर पुण्य कमाते है
तब एक श्रवण कुमार ने,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाई थी,
कांवड़ में बिठा कर
आज कितने ही श्रवण  कुमार,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाते है,
हेलिकोफ्टर  में बिठा कर
पहले आदमी जब गया तीर्थ था जाता,
तो गया गया सो गया ही गया था कहा जाता
और आज कल गया जानेवाला,
सुबह गया जाता है,
और शाम तक वापस भी लौट आता है
धर्म का लगाव बढ़ता ही जा रहा है
लोगों में भक्ति भाव ,बढ़ता ही जा रहा है
तो जो लोग कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहें है
बेकार कर रहे है
क्योंकि जब इतनी धार्मिक भावनायें,
भारत में जागृत है
तो भगवान को अवतार लेने की क्या जरुरत है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जिनके गलत सुलूक रहे हैं।
शंख वही अब फूक रहे हैं।

भरा गन्‍दगी से अन्‍तर्मन,
वो औरों पर थूक रहे हैं।

कोयल तो आश्‍चर्यचकित है,
सारे कौवे कूक रहे हैं।

राम बने फिरते हैं अब वो,
कल तक जो शम्‍बूक रहे हैं।

निकले हैं सागर मन्‍थन को,
कभी कूप मन्‍डूक रहे हैं।

काटे गये अँगूठे फिर भी,
कहॉं निशाने चूक रहे हैं। 

रचनाकार-नागेन्‍द्र अनुज,
प्रतापगढ़ ।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

नारी

क्यों भूल जाते हैं उस सत्य को जो,
हर किसी के जीवन का अंश है,
जिसके होने से ही दुनिया है,
देश है,परिवार है और आने वाला वंश है |

उसके जीवित रहने पर दुखी होने वाले इंसान,
क्यों नहीं सोचते वो है एक नन्ही जान |
मार डालते हैं उसे अपने क्रूर हाथों से,
जीवित रहने पर जलाते हैं अपनी कडवी बातों से |

जबकि जानते हैं वही तो लक्ष्मी है,वही तो सरस्वती है,
फिर भी आज तक इस दुनिया में वही होती सती है | 
क्यों न उसे मिलता वह सम्मान है,
जिसके कारन इस दुनिया में जान है |

वह जननी है,वह माता है,वह बेटी है और वही विधाता है,
पर इस बात को कोई क्यों समझ नहीं पाता है ?
वह कल भी सहती थी ,आज भी सहती है,
पर कल न सहेगी,क्यूकि कल की नारी इस दुनिया से अकेली ही लड़ेगी |

रचनाकार-अनु डालाकोटी
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै--

प्रवीण जी ने फेसबुक से विदा ली


क्षण भर चेहरे देख के, करें जरूरी काम |
बड़ा मुखौटा काम का, छूटे नशे तमाम |

छूटे नशे तमाम, नशे का बनता राजा |
छोड़ जरुरी काम, बुलाये आजा आजा |

कह रविकर रख होश, मुखौटा खोटे लागै |
रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै ||

सत्तरवें जन्म दिन पर

सत्तरवें जन्म दिन पर


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीत

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