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बुधवार, 30 जून 2021


एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 29 जून 2021

आम आदमी

 मैं आदमी आम हूं  अनमना हू
 बजाते हैं सब ही मैं वो झुनझुना हूं 
 आश्वासनो के लिए ही बना हूं 
 बहुत ही परेशां, दुखों से सना हूं
 
मैं वक्ता नहीं हूं पर बकता नहीं हूं
 कमजोरियों को ,मैं ढकता नहीं हूं 
 बिना पेंदी जैसा लुढ़कता नहीं हूं 
 बुरों के करीब में भटकता नहीं हूं
 
 सही जो लगे मुझको, लिखता वही हूं
 सच्चाई के रास्ते से डिगता नहीं  हूं
 बिकाऊ नहीं हूं ,मैं बिकता नहीं हूं 
 जो भीतर हूं बाहर से दिखता वही हूं 
 
धनी हूं मगर मैं धुरंधर नहीं हूं 
हमेशा जो जीते ,सिकंदर नहीं हूं 
हिलोरे है मन में, समंदर नहीं हूं
कला मेरे अंदर ,कलंदर नहीं हूं

प्रणेता हूं लेकिन मैं नेता नहीं हूं 
खुशी बांटता, कुछ भी लेता नहीं हूं 
हारा नहीं पर विजेता नहीं हूं 
चमचों का बिल्कुल चहेता नहीं हूं

 जब आता इलेक्शन सभी खोजते हैं
  मिलता जो मौका, सभी नोचते हैं 
  मेरे हित की बातें नहीं सोचते हैं 
  मेरे नाम पर सब उठाते मजे हैं 
  
ये शोषण दिनोदिन ,मुझे खल रहा है 
बहुत ही दुखी ,मेरा दिल जल रहा है 
जिसे मिलता मौका ,मुझे छल रहा है 
नहीं अब चलेगा, जो यह चल रहा है 

मेरे दिल में लावा, उबल अब रहा है 
ये ज्वालामुखी बस ,धधक अब रहा है
बहुत सह लिया, अब न जाता सहा है
नई क्रांति को यह ,लपक कब रहा है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
एक फूल की जीवन यात्रा 

केश की शोभा बन, रूपसी बाला के ,
सुंदर से बालों पर सजता सजाता हूं 
केशव की मूरत को, फूलों की माला में,
गुंथ कर मैं पूजन में, पहनाया जाता हूं 
या अंतिम यात्रा में ,मानव के जीवन की,
 शव पर में श्रद्धा से ,किया जाता अर्पित हूं
 केश से केशव तक ,जीवन से ले शव तक 
 मानव की सेवा में , सर्वदा समर्पित हूं

घोटू
बादल बरसे  यह मन तरसे 

काले काले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा 
गरम चाय के साथ पकोड़े ,खाने को मन तरस रहा 

 बारिश की बूंदों से भीगी, धरती आज महकती है 
 सोंधी सोंधी इसकी खुशबू, कितनी प्यारी लगती है 
 कहीं तले जा रहे समोसे , जिव्हा उधर लपकती है 
 बाहर पानी टपक रहा है, मुंह से लार टपकती है 
 गरम जलेबी,रस से भीनी,मन पर कोई बस न रहा  काले कले मेघ घिरें है, रिमझिम पानी बरस रहा
 
भीगा भीगा, गीला गीला, प्यारा प्यारा यह मौसम 
पानी की बौछारें ठंडी,हुआ तर बतर तन और मन 
घर में ऑफिस खोले बैठे ,पिया करोना के कारण मानसून पर सून न माने,सुने नहीं मेरी साजन 
पास पास हम ,आपस में पर ,सन्नाटा सा पसर रहा 
काले काले मेघ घिरें है,रिमझिम पानी बरस रहा

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 26 जून 2021


शुक्रिया जिंदगी 

मुझे जिंदगी से अपनी है, ना शिकवा ना कोई गिला 
संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला 

एक प्यारी सुंदर पत्नी है, प्यार लुटाने वाली जो 
मेरे जीवन में लाई है, खुशहाली, हरियाली जो 
मेरे हर एक ,सुख और दुख में, साथ निभाती आई है 
बढ़ती  हुई उमर में उसका साथ बड़ा सुखदाई है
एक प्यारी सी बिटिया है जो हर दम रखती ख्याल मेरा
 सदा पूछती रहती है जो ,मेरे सुख-दुख ,हाल मेरा 
समझदार एक बेटा ,जिसमें भरा हुआ है अपनापन
चढा प्रगति की सीढ़ी पर वह ,मेरा नाम करे रोशन 
भाई बहन सब के सब ही तो प्यार लुटाते हैं जी भर 
जब भी मिलते अपनेपन से, दिल से मेरी इज्जत कर 
यार दोस्त जितने भी मेरे, वे सब के सब अच्छे हैं 
मददगार हैं साथ निभाते और ह्रदय के सच्चे हैं 
और सभी रिश्तेदारों संग , बना प्रेम का भाव वहीं
 ना कोई से झगड़ा टंटा, मन में कोई मुटाव नहीं 
 बढ़ती उमर ,क्षरण काया का कुछ ना कुछ तो होना है 
फिर भी तन मन से दुरुस्त मैं,ना दुख है ना रोना है 
यही तमन्ना है कि कायम रहे उम्र भर यही सिला   
मुझे जिंदगी से अपनी है ,ना शिकवा ना कोई गिला 
संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला

मदन मोहन बाहेती घोटू



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