सबकी नियति
इतने अंडे देख रहे तुम,कोई कब तक मुस्काएगा
नियति एक ,टूटना सबको,हर अंडा तोडा जाएगा
कोई यूं ही ,चोंटें खा खा ,करके चम्मच की टूटेगा
उसे दूध में मिला कोई ,ताक़त पाने का ,सुख लूटेगा
डूबा गरम गरम पानी में ,कोई अंडा ,जाए उबाला
और तोड़ कर,उसे काट कर ,खाया जाए वो बेचारा
कोई तोड़ कर ,फेंटा जाता ,गरम तवे पर जब बिछ जाता
तो प्यारा सा ,आमलेट बन,ब्रेकफास्ट में ,खाया जाता
कुछ किस्मतवाले ,तोड़े भी जाते ,फेंटे भी जाते है
मैदे में मिल, ओवन में पक ,रूप केक का वो पाते है
उन्हें क्रीम से ,सजा धजा कर ,सुन्दर रूप दिया जाता है
मगर किसी के ,जन्म दिवस पर ,उसको भी काटा जाता है
टुकड़े टुकड़े खाया जाता ,मुंह पर कभी मल दिया जाता
किसी सुंदरी ,के गालों का ,पा स्पर्श,बहुत इतराता
सबकी अपनी अपनी किस्मत,मगर टूटना सबको पड़ता
कोई ओवन,कोई तवे पर ,और पानी में कोई उबलता
चाहे अंडा हो या इंसां , होती सबकी ,एक गति है
सबका है क्षणभंगुर जीवन,और एक सबकी नियति है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'