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गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014

रिश्ते ऊपर से बन आते है

      रिश्ते ऊपर से बन आते है

एक अनजान औरत ,
एक अनजान आदमी की,
बन जाती  है  सच्ची दोस्त और हमसफ़र
और उसके संग ,  जाता है बंध ,
एक इस तरह का बंधन ,
जिसे निभाया जाता है सारी उमर भर
ये नियति है या भाग्य का लेखा ,
जो एक अनजान,अनदेखा ,
दुनिया में सबसे ज्यादा प्यारा  लगने लगता है
क्या ये बंधन वरमालाये पहनाने से,
या कुछ कसमे खाने से ,
या अग्नी के सात फेरे लगा लेने  से बनता है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण ,
अपना सब कुछ अर्पण
चंद रस्मो रिवाजों से ही नहीं होता है
हम ये जानते है
इसलिए ये बात नहीं मानते है ,
जब लोग कहते,शादी एक समझौता है
कोई कहीं का  रहनेवाला 
कोई कहीं की रहनेवाली पर,
अपना सब कुछ  ऐसे ही नहीं लुटाता  है
,इसलिए हम मानते है,
पति और पत्नी का रिश्ता
ऊपर वाले के यहाँ से ही बन कर आता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शादी या दीवाली

             शादी या दीवाली

लटकती बिल्डिंगों पर जगमगाती ,इस तरह लड़ियाँ ,
            सजाया जैसे हो चेहरा ,किसी दूल्हे के चेहरे पर
खिल रहे फूल अरमानो के जैसे फुलझड़ी ,झड़ती,
            फटाखे फूटते मन में ,मिलन के ख्वाब रहरह कर
दिये से टिमटिमाते है ,कई सपने निगाहों में ,
             घड़ी वो आएगी कब जब करेंगे  लक्ष्मी  पूजन ,
भले ही बात ये मालूम है हमको,उन्हें,सबको,
             दिवाली चार दिन की,बाद में फिर रोज का चक्कर

घोटू 

कार का पुराना मॉडल

        कार का पुराना मॉडल

हमारी कार का मॉडल,पुराना  हो गया है पर ,
          अभी बकरार इंजिन का ,वही जलवा पुराना है
अभी भी स्टीयरिंग में और गियर में जान है वो ही ,
          वही रफ़्तार है कायम ,सफर वो ही सुहाना  है
ये दीगर बात है कि शॉक अब्सोर्बर पड़े ढीले,
            और टायर भी थोड़े घिस गए है इतना चल चल के ,
समय के साथ थोड़ा रंग भी है पड गया फीका, 
            फसें हम  प्यार में उसके ,वही गाडी चलाना   है           

घोटू

देशी विदेशी पकवान

            देशी विदेशी पकवान

होते है कुछ लोग पीज़ा की तरह ,
                     बेस में तो होते सादा ब्रेड से
किन्तु ऊपर से परत है चीज की ,
                 और भांति भांति के टॉपिंग सजे
और  कुछ होते परांठे आलू के,
                   देशी घी में नीचे से ऊपर सिके
भरा दिल में है मसाला चटपटा ,
                  स्वाद प्यारा और करारे भी दिखे
वैसे ही कुछ लोग पेस्ट्री की तरह ,
                   क्रीम से रहते है बस केवल ढके
कुछ है रसगुल्ले जलेबी की तरह ,
                     रहते पूरे  पूरे ही रस से  पटे
 देखलो देशी विदेशी फ़ूड में ,
                     फर्क रहता स्वाद में है किस क़दर
विदेशी में है दिखावा ऊपरी ,
                     और देशी प्यार से है तर बतर

घोटू

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014

वर्ना.... आप दोनों से कट्टी !!!


पापा,
यहां गांव में
नानी के यहां,
न अच्छा है पानी
न अच्छा है खाना
और न अच्छी है
हमारी तबियत...
यहां डराते हैं हमें
घूमते हुए सांप
जहरीले डंकवाले बिच्छू
आप बोल दो
हनुमान जी से कि
हमें न काटें,
हमारा तो झगड़ा हुआ है
वो नहीं मानते
हमारा कहना पर
आपकी तो वो सुनते हैं न,
इसलिये आप बोल देना
जरूर से - ध्यान से,
वर्ना..... वर्ना 'आपका सर'
और हनुमान जी का भी 'सर'
आप दोनों से कट्टी,
कट्टी - कट्टी - कट्टी !!!

- विशाल चर्चित

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