आलस का मजा
आपने सोने का मजा तो लिया होगा
आपने बिछोने का मजा भी लिया होगा
लेकिन कितनी ही बार ऐसा भी होता है
आदमी सुबह तलक गहरी नींद सोता है
जल्दी से उठने का मन नहीं होता है
पर हालतों से करना पड़ता समझौता है
एक मन कहता है ,पड़े रहो मत जागो
एक मन कहता है अब निद्रा को त्यागो
कभी आंख खुलती है कभी बंद हो जाती
बदन कसमसाता है और अंगड़ाई आती
कभी फिर करवट ले सोने को मन करता
सोने और जगने में यूं ही द्वंद है चलता
तन कहता जग जाओ, मन कहता सो जाओ
फिर से तुम सपनों की दुनिया में खो जाओ
इसी कशमकश को तो कहते हैं आलस हम
जगने की मजबूरी ,नींद टूटने का गम
बदन टूटने लगता आती है जम्हाई
कभी इधर कभी उधर लेते हैं हम अंगड़ाई
नींद का खुमार मुश्किल से छूट पाता है
सच में ऐसे आलस में बड़ा मजा आता है
मदन मोहन बाहेती घोटू