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रविवार, 15 अक्टूबर 2023

बुझते दीपक 


जिनने सदा अंधेरी रातों ,में जल किये उजाले है 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


अंधियारे में सूरज बनकर, जिनने ज्योति फैलाई 

सहे हवा के कई थपेड़े ,पर लौ ना बुझने पाई 

है छोटे, संघर्षशील पर ,सदा लड़े तूफानों से 

इनकी स्वर्णिम छटा ,हमेशा खेली है मुस्कानों से 

इनके आगे घबराते हैं ,पंख तिमिर के काले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो, ये दीपक बुझने  वाले हैं 


हो पूजन या कोई आरती दीप हमेशा जलते हैं 

दिवाली की तमस निशा को, जगमग जगमग करते हैं 

शुभ कार्यों में दीप प्रज्वलन होता है मंगलकारी 

स्वर्णिम दीप शिखा लहराती ,लगती है कितनी प्यारी 

बाती में है भरा प्रेम रस, मुंह पर सदा उजाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो ,ये दीपक बुझने वाले हैं 


है बुजुर्ग मां-बाप तुम्हारे,ये भी बुझते दिये हैं 

किये बहुत उपकार तुम्हारे ,सदा दिये ही दिये हैं 

खत्म हो रहा तेल ,उपेक्षा की तो ये बुझ जाएंगे 

इनमें भरो प्रेम रस थोड़ा, ये फिर से मुस्कुराएंगे 

इनकी साज संभाल करो , ये तुमको बहुत संभाले हैं 

इनमें फिर से तेल भरो , ये दीपक बुझने वाले हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

लो जीवन का एक दिन और गुजर गया और उमर एक दिन से और घट गई 

बस ऐसे ही धीरे-धीरे जिंदगी कट गई 


जब हम व्यस्त ना होकर भी व्यस्त रहते हैं उम्र के इस दौर को बुढ़ापा कहते हैं 

सुबह उठो 

नित्य कर्म में जुटो

फिर सुबह की सैर पर निकल जाओ

फिर यारों की मंडली में बैठ कर गप्पे मारो और मन को बहलाओ 

थोड़ा सा व्यायाम कर लो 

अनुलोम विलोम कर धीमी और तेज सांस भर लो 

फुर्ती से भर जाएगा आपका अंग अंग फिर घर जाकर चाय की चुस्कियां लो बिस्कुट के संग

और फिर आज का ताजा अखबार चाटो एक-एक छोटी-मोटी खबर पढ़ वक्त काटो फिर लो फलों का स्वाद 

नाश्ते के पहले या नाश्ते के बाद 

फिर जो हो तो छोटा-मोटा काम करो 

और फिर थोड़ी देर लेट कर आराम करो


इस बीच हमेशा मोबाइल रहेगा साथ

देखते रहना फेसबुक व्हाट्सएप और करते रहना दोस्तों से जरूरी गैर जरूरी बात 

तब तक लंच का टाइम हो जाना है 

खाना खाकर थोड़ा सा सो जाना है 

और शाम को उठकर पियो चाय 

और थोड़ा सा नाश्ता  

स्विगी से मंगा सकते हो पिज़्ज़ा या पास्ता नहीं तो खाओ घर का डिनर 

और टीवी पर देखते रहो  सीरियल 

याद रखो कोई भी प्रोग्राम जिसके बाद मिलता हो भंडारा या प्रसाद 

उसे अटेंड करना नहीं भूलना 

क्योंकि इसे बदल जाता है मुंह का स्वाद बीच में टाइम के हिसाब से दवाइयां लेना भी है जरूरी

स्वस्थ रहने की है मजबूरी 

यूं ही जीवन चलता रहेगा बे रोकटोक 

बीच में अच्छी लगती है बीवी से नोंकझोंक

फिर जब लगे झपकी , सो जाओ

सपनों की दुनिया में खो जाओ

यूं ही चलता रहता है जीवन का क्रम 

अभी मैं जवान हूं यह गलतफहमी पालने का भ्रम 

आदमी में भर देता है उत्साह और नवजीवन 

बिना काम के भी व्यस्त रहकर दिनचर्या सिमट गई 

लो एक दिन उम्र और  घट गई

ऐसे ही धीरे धीरे जिन्दगी कट गई


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

मुझे स्वर्ग से भी बढ़कर लगता है प्यारा

मेरी जन्म भूमि आगर ने मुझे संवारा 


मैंने जो भी पाई सफलता है जीवन में 

बोया उसका बीज गया था इस आंगन में


याद आता है मिट्टी से वह पुता हुआ घर

सीखा चलना मां की उंगली पकड़ पकड़ कर 


सीखा था अ से अनार और क से ककड़ी

पूरी बारह खड़ी, याद थी मैंने कर ली 


रटे एक से चालीस तक के सभी पहाड़े

और छड़ी से मिली मास्टर जी की मारे 


शैतानी का दंड , हमें मुर्गा बनवाना 

वो गिल्ली,वो डंडा और वो पतंग उड़ाना


 वो स्लेटें,वो झोला और टाट की पट्टी 

वह पल-पल में हुई दोस्ती, पल में कट्टी 


वह तालाब में कपड़े धोना और नहाना

रामआसरे की सेव,चौधरी रबड़ी खाना 


वह प्यारे स्वादिष्ट सिंघाड़े ,काले काले 

वो खिरनी, जामुन ,आम मीठे रस वाले


वो शहर का हाई स्कूल दरबार की कोठी

दादी हाथों पकी जुवारी की वह रोटी 


भाई बहन के संग हुई जो पल-पल मस्ती

होती थी परिवार ,गांव की पूरी बस्ती


सोमवार को बैजनाथ , दर्शन को जाना

रास्ते में झाड़ी से तोड़ करौंदे खाना 


दशहरे को आते जब रावण का वध कर

पैर बुजुर्गों के छूते थे, घर-घर जाकर 


मां का लाड़ दुलार और वह पालन पोषण

मिली पिताजी की शिक्षाएं और अनुशासन


रोज शाम को छत पर जाकर गिरना तारे

क्या क्या करें याद हम ,क्या क्या और बिसारे 


जब भी आती याद,बहुत विव्हल होता मन

आंखों आगे , नाचा करता ,मेरा बचपन 


यहां की माटी लाल, मेरा तो है यह चंदन 

मातृभूमि तुझको मेरा शत शत अभिनंदन


मदन मोहन बाहेती घोटू 


रविवार, 8 अक्टूबर 2023

जमाना बदल गया है

मेरा देश कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था ,
पर देखो परिस्थितियों कितनी बदल गई है आज सोना आसमान को छू रहा है , और 
आसमान में चिड़िया नजर आती नहीं है

मेरे देश की धरती जो कभी सोना थी  
उगलती 
आज उन खेतों में पराली है जलती

कभी हरियाली से भरे हुए जंगल हुआ करते थे ,
आज जाने कहां खो गए हैं 
जिधर देखो उधर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं 

कभी मेरे देश में बहती थी दूध दही की नदियां खूब 
और आजकल प्लास्टिक की पैकिंग में मिल रहा है दूध 

पश्चिम की हवाओं ने पूरब की लाली को ऐसा बुझाया है
कि मेरी देश की संस्कृति और संस्कारों को मिटाया है
अब जन्म दिवस की तिथि ऐसे मनाई जाती है 
दीप जलाये नहीं जाते,
 मोमबत्ती बुझाई जाती है 

पहले जहां पग पग रोटी पग पग नीर
हुआ करता था 
अब नीर प्लास्टिक की बोतल में दिख रहा है ,
और हर तरफ ढाबे खुल गए हैं जहां रोटी और खाना बिक रहा है 

पुराने ऋषि मुनियों के गुरुकुल 
हो गए हैं गुल 
और जगह-जगह कोचिंग क्लासेस गई है खुल 

अतिथि देवो भव की परंपरा अब सिर्फ पांच सितारा होटल में पाई जाती है 
अब खुशी के मौका पर गुड़ और पताशे नहीं बंटते ,केक खाई जाती है 

शादी के पहले साथ रहने का चलन चल गया है 
पता नहीं हम बदले हैं या जमाना बदल गया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

राधा तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन

तीन लोक तारण तरण

है तेरे आधीन 


राधे राधे तेरे नाम ने, सबके कारज साधे

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे 


राधे तू बरसाने वाली

सब पर सुख सरसाने वाली 

तेरी सूरत प्यारी प्यारी 

कान्हा के मन भाने वाली 

अपनी प्यारी युगलछवि के

तू दर्शन करवा दे 

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे


मेरे प्यारे कृष्ण मुरारी 

मेरे गोवर्धन गिरधारी 

ऐसी प्रीत लगाई तुझ पर

वो तो जाएं वारी वारी

मुग्ध हो गए,तेरे रूप ने

रक्खा उनका बांधे 

बोलो राधे राधे राधे बोलो राधे राधे राधे 


कान्हा बंसी मधुर बजाते 

कान्हा तुझ पर प्यार लुटाते 

जमुना तट पर, बंसी वट पर 

तुझ संग रास रचाते

एक झलक उस महारास की

 हमको भी दिखला दे 

बोलो राधे राधे राधे ,बोलो राधे राधे राधे


 कान्हा ऐसे भये दीवाने 

प्रीत तेरे संग जोड़ी 

राधे कृष्णा , राधे कृष्णा

अमर हो गई जोड़ी 

हम भक्तों पर भी थोड़ी सी

किरपा तू बरसा दे 

बोलो राधे राधे राधे

बोलो राधे राधे राधे


मदन मोहन बाहेती घोटू 

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