दृष्ट सहस्त्र चंद्रो
मैंने इतने पापड़ बेले, तब आई समझदारी मुझ में
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ में
जब साठ बरस की उम्र हुई ,सब कहते थे मैं सठियाया
और अब जब अस्सी पार हुआ ,कोई ना कहता असियाया
मैंने जीवन में कर डाले, एक सहस्त्र चंद्र के दर्शन है
अमेरिका का राष्ट्रपति ,मेरा हम उम्र वाइडन है
है दुनिया भर की चिंतायें ,फिर भी रहता हरदम खुश मैं
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ कुछ मैं
चलता हूं थोड़ा डगमग पर, है सही राह का मुझे ज्ञान
तुम्हारी कई समस्याओं, का कर सकता हूं समाधान
नजरें कमजोर भले ही हो ,पर दूर दृष्टि में रखता हूं
अब भी है मुझ में जोश भरा, फुर्ती है ,मैं ना थकता हूं
मेरे अनुभव की गठरी में ,मोती और रत्न भरे कितने
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं
लेकिन यह पीढ़ी नई-नई ,गुण ज्ञान पारखी ना बिल्कुल
लेती ना लाभ अनुभव का , मुझसे ना रहती है मिलजुल
मेरी ना अपेक्षा कुछ उनसे ,उल्टा में ही देता रहता
वो मुझे उपेक्षित करते हैं, मैं मौन मगर सब कुछ सहता
सच यह है अब भी बंधा हुआ, मैं मोह माया के बंधन में
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं
मदन मोहन बाहेती घोटू