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रविवार, 16 अप्रैल 2023

मेरी बेटी 

मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 
हर एक बात में, मेरी करती रहे हिमायत

कितनी निश्चल ,सीधी साधी, भोली भाली 
हंसती रहती, उसकी है हर बात निराली 
कुछ भी काम बताओ ,करने रहती तत्पर
कुछ भी कह दो,नहीं शिकन आती चेहरे पर 
सच्चे दिल से ,मेरा रखती ख्याल हमेशा 
नहीं प्यार करता है कोई उसके जैसा 
कितनी ममता भरी हुई है उसकी चाहत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी नियामत 

जितना प्यार दिया बचपन में मैंने उसको 
उसे चोगुना करके ,बांट रही है सबको 
चुस्ती फुर्ती से करती सब काम हमेशा 
उसके चेहरे पर रहती मुस्कान हमेशा 
कुछ भी काम बता दो ,ना कहना, ना सीखा 
सब को खुश रखने का आता उसे तरीका 
हर एक बात पर ,देती रहती मुझे हिदायत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 

मैके,ससुराल का रखती ख्याल बराबर 
दोनों का ही रखती है बैलेंस बनाकर 
सबके ही संग बना रखा है रिश्ता नाता 
कब क्या करना ,कैसे करना ,उसको आता जिंदादिल है खुशमिजाज़ है लगती अच्छी 
मुझको गौरवान्वित करती है मेरी बच्ची 
होशियार है ,उसमें है भरपूर लियाकत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी इनायत 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुजुर्ग साथियों से 

हम बुजुर्ग हैं अनुभवी हैं और वरिष्ठ हैं 
पढ़े लिखे हैं, समझदार, कर्तव्यनिष्ठ है 
 बच्चों जैसे, क्यों आपस में झगड़ रहे हम
 अपना अहम तुष्ट करने को अकड़ रहे हम 
 हम सब तो ढलते सूरज, बुझते दिये हैं 
 बड़ी शान से अब तक हम जीवन जिये हैं 
 किसे पता, कब कौन बिदा ले बिछड़ जाएगा कौन वृक्ष से ,फूल कौन सा ,झड़ जाएगा 
 इसीलिए जब तक जिंदा , खुशबू फैलाएं 
 मिल कर बैठे हंसी खुशी आनंद मनाएं 
 आपस की सारी कटुता को आज भुलाएं 
 रहें प्रेम से और आपस में हृदय मिलाएं 
 अबकी बार हर बुधवार 
 ना कोई झगड़ा ना तकरार 
 केवल बरसे प्यार ही प्यार
चवन्नी की पीड़ा 

कल मैंने जब गुल्लक खोली 
एक कोने में दबी दबी सी, सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली 

आज तिरस्कृत पड़ी हुई मैं,इसमें मेरी क्या गलती थी 
मुझे याद मेरे अच्छे दिन ,जोर शोर से मैं चलती थी 
मेरी क्रय शक्ति थी इतनी, अच्छा खानपान होता था 
सवा रुपए की परसादी में ,मेरा योगदान होता था 
अगली सीट सिनेमाघर की ,क्लास चवन्नी थी कहलाती 
सस्ते में गरीब जनता को ,पिक्चर दिखला, दिल बहलाती 
जब छुट्टा होती तो मिलते चार इकन्नी , सोलह पैसे 
मेरी बड़ी कदर होती थी ,मेरे दिन तब ना थे ऐसे 
मार पड़ी महंगाई की पर, आकर मुझे अपंग कर दिया 
मेरी वैल्यू खाक हो गई ,मेरा चलना बंद कर दिया 
अब सैया दिल नहीं मांगते,ना उछालते कोई चवन्नी 
और भिखारी तक ना लेते, मुझे देखकर काटे कन्नी
पर किस्मत में ऊंच-नीच का चक्कर सदा अड़ा रहता है 
कभी बोलती जिसकी तूती, वह भी मौन पड़ा रहता है 
भोग रही मैं अपनी किस्मत ,जितना रोना था वह रो ली 
एक कोने में दबी दबी सी , सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिंतन 

कल की बातें, कड़वी खट्टी ,याद करोगे, दुख पाओगे 
आने वाले ,कल क्या होगा, यदि सोचोगे ,
घबराओगे 
जो होना है , सो होना है ,व्यर्थ नहीं चिंता में डूबो,
भरसक मजा ,आज का लो तुम , तभी चैन से जी पाओगे

घोटू 

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

मैं पप्पू हूं 

लोग मुझे पप्पू कहते मैं,बचपन से सिरफिरा रहा हूं 
सभी मिलाते हैं हां में हां, मैं चमचों से घिरा रहा हूं

कभी नमाजी टोपी पहनी कभी जनेऊ मैं लटकाता 
अपना धर्म बदलता रहता, ब्राह्मण में खुद को बतलाता 
मैं लोगों को गाली देता, लोग मुझे गाली देते हैं एक प्रतिष्ठित खानदान की, बिगड़ी फसल मुझे कहते हैं 
लंबी-लंबी करी यात्रा ,फिर भी आगे ना बढ़ पाया 
ना तो कुर्सी पर चढ़ पाया, ना ही में घोड़ी चढ़ पाया 
मैंने जो भी काम किया है अपने मन का,
अपने ढंग का
अपनी जिद पर अड़ा रहा मैं ,हार गया सोने की लंका 
अंट शंट मै बकता रहता ,करता रहता हूं गुस्ताखी 
राजघराने का वारिस हूं ,राजा नहीं मांगते माफी 
 कितना लोगों ने समझाया क्षमा मांग लो,हो गई गलती 
लेकिन क्षमा मांग कर कैसे ,कर लूं अपनी मूंछें नीची 
प्राइम मिनिस्टर मैं बन जाऊं, मम्मी जी की यह हसरत है 
मैं विदेश में, बुरा बताता ,भारत को ,मेरी आदत है

अपनी हरकत से मैं अपनी ,पार्टी नीचे गिरा रहा हूं 
लोग मुझे पप्पू कहते मैं बचपन से सिरफिरा रहा हूं

घोटू

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