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सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

नेता और रिश्वत 

मैंने पूछा एक नेता से 
लोग तुम्हें है भ्रष्ट बताते 
बिन रिश्वत कुछ काम न करते 
सदा तिजोरी अपनी भरते
 नेता बोले बात गलत है
 यह मुझ पर झूठी तोहमत है 
 प्रगति पथ हो देश अग्रसर 
 यही ख्याल बस मन में रख कर 
 करता बड़े-बड़े जब सौदे
  करना पड़ते कुछ समझौते 
  काम देश प्रगति का करता 
  सेवा शुल्क ले लिया करता 
  इतना तो मेरा हक बनता 
  पर रिश्वत कहती है जनता 
  फिर थोड़ा हंस ,बोले नेता
   मैं रिश्वत ना ,प्रतिशत लेता 
   सच कहता हूं ईश्वर साक्षी 
   लिया अगर जो एक रुपया भी 
   जो कुछ लिया, लिया डॉलर में 
   एक रुपया ना आया घर में 
   जो भी मिलता है ठेकों में 
   सभी जमा है स्विस बैंकों में 
   हर सौदे में जो भी पाता 
   उसे चुनाव के लिए बचाता 
   पैसा जनता का, जनता में 
   बंट जाता है वोट जुटाने 
   और तुम कहते यह रिश्वत है 
   सोच तुम्हारी बहुत गलत है

मदन मोहन बाहेती घोटू

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

 उचटी उचटी नींद आती है,
 बिखरे बिखरे सपने आते 
 पहले से आधी खुराक भी ,
 खाना मुश्किल से खा पाते 
 डगमग डगमग चाल हो गई,
 झुर्री झुर्री बदन हो गया 
 ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
  इतना कम है वजन हो गया 
  थोड़ी देर घूम लेने से ,
  सांस फूलने लग जाती है 
  मन करता है सुस्ताने को 
  तन में सुस्ती सी जाती है 
  सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
  ये ही अब आहार हमारा 
  जिनके कभी सहारा थे हम
  वह देते हैं हमें सहारा 
  चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
 आलस ने है डेरा डाला 
 मन में कुछ उत्साह न बाकी,
  हाल हुआ है बुरा हमारा 
  फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
  और समय हम रहे काट हैं 
  बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
  बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 29 सितंबर 2022

रावण दहन 

हे प्रभु तू अंतर्यामी है 
बदला मुझ में क्या खामी है 
ताकि समय रहते सुधार दूं,
जितनी अधिक सुधर पानी है 

मानव माटी का पुतला है 
अंतर्मन से बहुत भला है 
काम क्रोध लोभ मोह ने 
अक्सर इसको बहुत छला है 

कई बार लालच में फंसकर 
पाप पुण्य की चिंता ना कर
कुछ विसगतियां आई होगी, 
भटका होगा गलत राह पर 

और कभी निश्चल था जो मन 
पुतला एक गलतियों का बन 
ज्ञानी था पर अहंकार ने, 
उसको बना दिया हो रावण 

प्रभु ऐसी सद्बुद्धि ला दो 
अंधकार को दूर भगा दो 
आज दशहरे का दिन आया 
उस रावण का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती घोटू
तब और अब 

पहले जब कविता लिखता था 
रूप बखान सदा दिखता था 

रूप मनोहर ,गौरी तन का 
चंदा से सुंदर आनन का 
मदमाते उसके यौवन का 
बल खाते कमनीय बदन का 
हिरनी सी चंचल आंखों का 
उसकी भावभंगिमाओं का 
हर पंक्ति में रूप प्रशंसा 
उसको पा लेने की मंशा 
मन में रूप पान अभिलाषा 
रोमांटिक थी मेरी भाषा 
मस्ती में डूबे तन मन थे 
वे दिन थे मेरे योवन के 
रहूं निहारता सुंदरता को, 
ध्यान न और कहीं टिकता था 
पहले जब कविता लिखता था

अब जब मैं कविता लिखता हूं 
कृष काया , बूढ़ा दिखता हूं

बचा जोश ना ,ना उमंग है 
बदला जीवन रंग ढंग है 
तन और मन सब थका थका है 
बीमारी ने घेर रखा है 
अब आया जब निकट अंत है
मेरा मन बन गया संत है 
याद आते प्रभु हर पंक्ति में 
डूबा रहता मन भक्ति में 
बड़ी आस्था सब धर्मों में 
दान पुण्य और सत्कर्मों में 
उम्र बढ़ रही ,बदला चिंतन 
पल-पल ईश्वर का आराधन 
पुण्य कमा लो इसी भाव में ,
हरदम मैं खोया दिखता हूं 
अब जब मैं कविता लिखता हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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