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रविवार, 28 अगस्त 2022

गई शान,अभिमान पस्त है ,
फूटी किस्मत अब रोती है 
कभी मूसलाधार बरसता ,
अब तो बस रिमझिम होती है 

बादल आते हैं मंडराते ,
फिर भी सूखा पड़ा हुआ है 
ना बरसेगा ये बादल भी,
अपनी जिद पर अड़ा हुआ है 
बहती कभी हवाएं ठंडी 
लेकिन सौंधी गंध न आती 
अब बगिया में फूल खिलते
 जिन पर थी तितली मंडराती
 इस मौसम में सूखी बगिया ,
 अपनी सब रौनक होती है 
 कभी मूसलाधार बरसता,
 अब तो बस रिमझिम होती है 
 
कभी उमंगों के रंगों में ,
रंगा हुआ था सारा जीवन 
पंख लगा कर हम उड़ते थे ,
मौज मस्तियों का था आलम 
पहले थे पकवान उड़ाते ,
अब खाते हैं सूखी रोटी 
काम न आती, जो जीवन भर 
करी कमाई हमने मोटी
बोझिल मन और बेबस आंखें, 
बरसाती रहती मोती है
कभी मूसलधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

चंदन की हो या बबूल की,
 हर लकड़ी के अपने गुण है 
 लेकिन जब वह जल जाती है 
 सिरफ राख ही रह जाती है 
 
मैली बहती गंदी नाली ,
जब मिल जाती है गंगा से 
अपनी सभी गंदगी खो कर ,
वह भी गंगा बन जाती है  

अगर फूल गिरता माटी पर,
 मिट्टी भी खुशबू दे देती ,
 सज्जन संग सत्संग हमेशा 
 मन को शुद्ध किया करता है 
 
अच्छे कर्म किए जीवन के 
आया करते काम हमेशा 
मानव देव पुरुष बन जाता
 घड़ा पुण्य का जब भरता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कटी जवानी लाड़ लढाते,
 कटा बुढ़ापा लड़ते लड़ते 
 गलती कोई ने भी की हो ,
 दोष एक दूजे पर मढ़ते

 रस्ते में कंकर पत्थर थे,
  ठोकर खाई संभल गए हम
  सर्दी धूप और बरसाते,
   झेले कई तरह के मौसम
  लेकिन जब तक रही जवानी ,
  हर मौसम का मजा उठाया 
  मस्ती के कोई पल को भी,
   हमने होने दिया न जाया 
   खाया पिया मौज उड़ाई ,
   घूमे पूरी दुनिया भर में 
   थे जवान हम पंख लगे थे,
   उड़ते फिरते थे अंबर में 
   जोश भरा था और उमंग थी
   पैर नहीं धरती पर पड़ते
   कटी जवानी , लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा लड़ते-लड़ते 
     
फिर धीरे-धीरे चुपके से,
 दबे पांव आ गया बुढ़ापा 
 घटने लगी उमंग जोश सब,
 संदेशा लाया विपदा का 
 लाड़ प्यार सब फुर्र हो गया ,
 जब तन था कमजोर हो गया
  तानाकशी एक दूजे पर,
  नित लड़ाई का दौर हो गया 
  किंतु लड़ाई जो भी होती,
   प्यार छुपा रहता था उसमें 
   वक्त काटने का एक जरिया
   यह झगड़ा होता था सच में 
  और जीवन का सफर कट गया 
   अपनी जिद पर अड़ते अड़ते 
   कटी जवानी लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा, लड़ते-लड़ते

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

जीवन पथ

मैं जब इस दुनिया में आया 
प्रभु ने जीवन मार्ग बताया 
जिस रस्ते पर चले महाजन
उस पथ का तुम करो अनुसरण 
मैंने तुम्हें चुना मुरलीधर
और तुमको आदर्श मानकर
किया वही तुमने जो किया 
तुम जैसा ही जीवन जिया 
जीवन पद्धति को अपनाया
 दूध दही और मक्खन खाया 
 गोपी सर की हंडिया फोड़ी
  घर-घर जा,की माखन चोरी 
  मैंने दूध दही और माखन 
  खाकर किया बदन का पोषण 
  छेड़छाड़ का मजा उठाया
   प्यार गोपियों का भी पाया 
   किया बांसुरी का भी वादन 
   और चुराया राधा का मन 
   अपनी गर्लफ्रेंड के संग में 
   मैं भी रंगा रास के रंग में 
   सच वह दिन से बड़े सुहान
    फिर फिर हम होने लगे सयाने 
    मथुरा छोड़ गए तुम गोकुल 
   कॉलेज गया छोड़ मै स्कूल 
    राजकाज तुम रहे हो उलझ कर
    मैं भी बना बड़ा एक अफसर
    और रिटायर होने पहले 
    तूने त्यागे सभी झमेले 
    सब लड़ाईया छोड़ी छाड़ी
     राजनीति का बना खिलाड़ी 
     महासमर में महाभारत के 
    लिप्त रहा पर सबसे बचके
    तूने ना हाथियार उठाया 
    कूटनीति से काम चलाया 
    गीता का उपदेश सुना कर 
    दूर किया अर्जुन का सब डर
    सागर तीरे बसा द्वारका 
    दिया संदेशा तूने प्यार का 
    और द्वारकाधीश कहाया
     सबके मन को बहुत लुभाया
      देव पुरुष तू महान हो गया 
      हम सब का भगवान हो गया 
      मैंने भी गोवा के तट पर 
      कोठी एक बनाई सुंदर 
      सपने पूर्ण किए सब मन के 
      सारे सुख भोगे जीवन के 
      तुझमें मुझमें बस ये अंतर
      आठ पत्नियों का पति बन कर
      तूने सारी उमर गुजारी
      मै रह कर एक पत्नी धारी
      बड़ी शांति से मैं जिया
      और प्यार का अमृत पिया
      फिर भी प्रभु धन्यवाद तुम्हारा
      जीवन काटा सुन्दर प्यारा
      तेरे चरण चिन्ह पर चल कर
      जीवन जिया बहुत मनोहर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
    
    

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

तुम काहे को हो घबराती 

तुम मेरे कारण चिंतित हो ,
मुझको तुम्हारी चिंता है ,
फिर से अच्छे दिन आएंगे 
तुम काहे को हो घबराती 
अपने मन को ना समझाती

 हमने  मिल जुल हंसी खुशी से
  सुख-दुख सब जीवन के झेले
  अपनी जोड़ी, जोड़ी प्रभु ने,
   हम तुम जीवन भर के साथी 
   तुम काहे को हो घबराती 
   अपने मन को ना समझाती
   
   संकट कटे ,कम हुई पीड़ा,
    सुख के बादल फिर बरसेंगे 
    हम गाएंगे, मुस्कुराएंगे ,
    फिर खुशियों के फूल खिलेंगे 
    बासंती मौसम आएगा 
    और हवा होगी मुस्काती 
    तुम काहे को हो घबराती
    अपने मन को ना समझाती 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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