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शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

ये दिल मांगे मोर -तीन छक्के

इच्छाओं का अंत ना ,नहीं और का छोर
जाने फिर क्यों बावरा ,ये दिल मांगे मोर
ये दिल मांगे मोर ,अंत ना है लालच का
करना पड़ता किन्तु सामना ,सबको सच का
कह घोटू कवि ,दिन मुश्किल के आने वाले
छोड़ मोर का चक्कर ,जो है ,उसे संभाले

हमें चाहिये और की ,दे हम छोड़ तलाश
बेहतर रखें संभाल कर ,जो है अपने पास
जो है अपने पास ,बड़ा ही कठिन दौर है
कोरोना का संकट फैला   सभी  ओर  है
घोटू करे सचेत ,सभी को यह पुकार कर  
खड़े हुए हम ,तृतीय विश्वयुद्ध की कगार पर

बिगड़ा है वातावरण ,मन है बहुत उदास
अब तो मुश्किल हो रहा  लेना ढंग से सांस    
लेना ढंग से  सांस ,हवा में जहर भरा है
हरेक आदमी ,अंदर से कुछ डरा डरा है
दिया प्रेम का ,दीवाली पर ,रखें  जगा कर
घोटू आतिशबाजी रक्खे, दूर  भगाकर  

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
 
शरद पूनम की रात

कल की रात शरद पूनम थी, धुंधलाया सा चाँद दिखा
मुझको रोता और सिसकता ,मुरझाया सा चाँद दिखा
कहते है कि शरद रात में वह अमृत बरसाता है ,
पीत वर्ण था ,अमृत वर्षा का  न कहीं आल्हाद दिखा
अमृत बरसाया तो होगा  हवा बीच में  गटक  गयी ,,
मुझे हवा जहरीली का ,इतना ज्यादा उत्पात दिखा
मैंने छत पर खीर रखी थी ,आत्मसात करने अमृत ,
उठ कर सुबह सुबह जो खाई ,तीता तीता स्वाद दिखा
इतना ज्यादा आज प्रदूषित ,वातावरण हो गया है ,
मुझे प्रकृति के चेहरे पर ,दुःख और पीड़ा अवसाद दिखा
पता  नहीं  हम कब सुधरेंगे , पर्यावरण  सुधारेंगे ,
हमको जो भी दिखा सिर्फ वह अपना ही अपराध दिखा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

मिरची

मिरची,लाल,हरी या काली
सब है स्वाद  बढ़ाने  वाली
कोई पिसी ,कोई बिन पिसी
सबको करवाती है सी सी
चाट चटपटी ,मन को भाती
हरी मिर्च  पर  बहुत लुभाती
जितनी हरी ,छरहरी होती
उतनी अधिक चरपरी होती  
और ज्यों ज्यों वो मोटी होती
त्यों त्यों निज तीखापन  खोती
लोग इसलिए ही कहते है
मोटे  लोग ,ख़ुशी रहते है
हम सब लोग ,स्वाद के मारे
हरी मिर्च खा , लें  चटखारे
मुंह से काटो ,अगर ज़रा सी
तो बस निकला करता सी सी
खाकर मज़ा बहुत आता है
सारा मुंह ,झन्ना जाता है
आँखों में  ,पानी आ भरता
और कान से धुंवा निकलता
छूट पसीने भी जाते है
किन्तु चाव से सब खाते है
मीठा खाओ ,शांत हो जाती
पर अंदर खलबली मचाती
इसका असर देर तक टिकता
असली असर सुबह है दिखता
माने  आप या न माने पर
खाने से आने तक बाहर
असर हमेशा रहता कायम
मिर्ची में होता इतना दम
इसीलिये है मेरा कहना
तुम मिर्ची से बच कर रहना

घोटू  
यार तुम्हारा प्यार गजब है  

यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो
मैं तो कुछ भी ना कहता हूँ ,किन्तु समझ तुम जाती सब हो

मेरा मूड समझ लेने का ,तुम्हारा अंदाज निराला
बिन मांगे हाज़िर कर देती ,मेरे लिए चाय का प्याला
मेरी शकल देख ,मेरे दिल के हालत समझ लेती हो
मेरे होंठ हिले ,इस पहले ,मेरी बात समझ लेती हो
बिन मांगे ही मिल जाता है ,जिसकी मुझको लगी तलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

मेरी हर एक हरकत से तुम ,मन के भाव भांप  लेती हो
 मेरे अंदर क्या पकता है , बाहर से ही   झांक  लेती  हो
तुम्हे पता पहले चल जाता ,मैं क्या चाल चलूँगा ,अगली
मेरे पागलपन में  मेरा ,साथ  निभाती ,बन कर  पगली
 देख मेरा व्यवहार बदलता  ,लेती  जान ,मेरा मतलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

इतने दिन तक ,रहे संग संग ,एक रंग हो गया हमारा
एक हमारी सोच हो गयी ,एक ढंग हो गया हमारा
झगड़े नहीं हुआ करते है ,जब विचार मिलते आपस में  
तुम मेरे बस में  रहती हो  ,मैं रहता तुम्हारे  बस में
हर मुश्किल से लड़ सकता मैं ,मेरे साथ खड़ी तुम जब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है ,और तुम खुद भी यार गजब हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हवा की गड़बड़

बाकी सबकुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है
लेकिन सारी परेशानियों की  बस  ये जड़ है

सड़कों पर कितने ही वाहन दौड़ रहे है
और सबके सब ,कितना धुँवा छोड़ रहे है
उद्योगों से चिमनी भी है धुवाँ उगलती
गावों के खेतों में उधर पराली  जलती
दिवाली पर ,बम पटाखे ,करे प्रदूषण
साँसों को मिल नहीं पा रही है ऑक्सीजन
इतना ज्यादा वातावरण ,हो गया मैला
और फेफड़ों का दुश्मन कोरोना फैला
जीना मुश्किल हुआ ,मची इतनी भगदड़ है
बाकि सब कुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है  

उधर पश्चिमी हवा ,देश को रुला रही है
नव पीढ़ी भारतीय संस्कृति भुला रही है
संस्कार ,रिश्ते नाते और खाना पीना
रहन सहन सब बदल रहा है जीवन जीना
कुछ नेताओं ने माहौल बिगाड़ दिया है
हमको आपस में लड़वा दो फाड़ किया है
जाति धर्म ,अगड़ा पिछड़ा में कर बंटवारा
अपनी रोटी सेक, हवा को बहुत बिगाड़ा
पहन शेर की खाल ,राज्य करते गीदड़ है
बाकी सब कुछ ठीक,हवा में कुछ गड़बड़ है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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