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गुरुवार, 23 जुलाई 2020

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From: madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Date: Thu, Jul 23, 2020 at 7:33 AM
Subject:
To: <bahetitarabaheti@gmail.com>


किस्सा एक कविता का जो
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 एक मधुर पेरोडी में बदल गयी
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मैंने एक व्यंग कविता लिखी 'बड़े आदमी '
ये कविता जब मैंने अपने मित्र प्रसिद्ध
गायक श्री अनिल जाजू को सुनाई तो
उन्होंने कहा कि यह एक प्रसिद्ध फिल्म
'पूरब और  पश्चिम ' 'के लोकप्रिय गीत की पेरोडी
बन सकता है ,तो फिर उनके साथ बैठ कर
काट छांट और जोड़तोड़ कर उसे एक मधुर
गीत का रूप दिया गया जो श्री अनिल जाजू के
मधुर स्वरों में रिकॉर्ड हुआ ,आपके मनोरंजन
के लिए कविता अपने मूल रूप में प्रस्तुत है
और वह मधुर  गीत भी प्रस्तुत है कृपया अपनी
प्रतिक्रिया अवश्य दें धन्यवाद
कविता -बड़े आदमी
बड़ा आदमी

अगर ठीक से भूख लगती नहीं
लूखी सी रोटी भी पचती  नहीं
समोसे,पकोडे ,अगर तुमने छोड़े ,
तली चीज से हो गयी दुश्मनी हो
न दावत कोई ना मिठाई कोई
जलेबी भी तुमने न खाई कोई
कोई कुछ परोसे, तो मन को मसोसे ,
खाने में करते तुम आनाकनी हो
तो लगता है ऐसा कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

अगर चाय काली ,सुहाने लगे
नमक भी अगर कम हो खाने लगे
जो चाहता दिल ,त्यों जीने के खातिर ,
अगर वक़्त की आपको जो कमी हो
नहीं ठीक से तुम अगर सो सको
जरासी भी मेहनत करो तो थको
लिए बोझ दिल पर ,चलो ट्रेडमिल पर
दवाओं के संग दोस्ती जो जमी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम ,बड़े आदमी हो

रहो काम में जो फंसे इस कदर
घरवालों खातिर समय ना अगर ,
जाते हो हंसने,जो लाफिंग क्लब में
मुस्कान संग हो गयी अनबनी हो
मोबाईल हाथों से छूटे नहीं
मज़ा जिंदगी का जो लुटे नहीं
सपने तुम्हारे ,हुए पूर्ण सारे ,
मगरऔर की भूख अब भी बनी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

अब सुनिये इस कविता से जन्मा वह
मधुर गीत श्री अनिल जाजू के स्वरों में 

सोमवार, 20 जुलाई 2020

पिटना और पटना

मैं कोरी बात नहीं करता ,ते बात है पूरे अनुभव की
पिटते रहना ,पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

बचपन की बात याद हमको ,जब हम करते थे शैतानी
पापाजी  बहुत पीटते थे ,थी पड़ती मार हमें  खानी
स्कूल में यार दोस्तों संग , चलती रहती थी मार पीट
जब होम वर्क ना कर लाते ,मास्टर जी देते हमे पीट
बस चलता रहा सिलसिला ये ,पिटते पिटते हो गए ढीठ
गिरते पिटते कॉलेज पहुंचे ,हमने न दिखाई मगर पीठ
अच्छे नंबर से पास हुए ,ये बात बहुत थी गौरव की
पिटते रहना ,पट के रहना बस यही प्रकृति है मानव की

फिर बीते दिन पिटने वाले,हम पर चढ़ रही जवानी थी
एक दौर सुहाना जीवन का ,ये उमर बड़ी मस्तानी थी
कैसे भी उठापटक कर के ,एक लड़की हमे पटानी थी
और सामदंड से झपट लपट ,पटरी उस संग बैठानी थी
ये काम कठिन,झटपट न हुआ ,पर धीरे धीरे निपट गया
जब पट के कोई हृदयपट को, मेरे  दिल सेआ लिपट गया
मन की वीणा ने झंकृत हो ,एक नयी रागिनी ,अनुभव की
पिटते रहना ,पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

फिर कर्मक्षेत्र में जब उतरे ,मुश्किल से माथा पीट लिया
पाने को अच्छा जॉब कोई ,कितनो से ही कॉम्पीट किया
 फिट होना है जो सही जगह,आवश्यक है तुम रहो फिट
खुद पिटो या पीटो औरों को ,सिलसिला यही होता रिपीट
 घर में बीबी से रहो पटे ,साहब ऑफिस में रखो पटा
तो कभी न तुम पिट पाओगे ,मन में रट लो ये बात सदा
इस राह शीध्र सम्भव होगा ,सीढ़ी पर चढ़ना वैभव की
पिटते रहना पट के रहना ,बस यही प्रकृति है मानव की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 18 जुलाई 2020

उल्लू का पट्ठा

जब खरी खरी बातें करता ,लोगों को लगता खट्टा हूँ
इस मिक्सी वाले युग में भी ,मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

इस ऐसी कूलर के युग में ,हाथों वाला पंखा झलता
लोगो के हाथों लेपटॉप ,मैं तख्ती ,स्लेट लिए चलता
बीएमडब्लू में चले लोग ,मैं हूँ घसीटता बाइसिकल
साथ समय के चलने की ,मुझमे रत्तीभर नहीं अकल
सिद्धांतों की रक्षा खातिर ,मैं करता लट्ठमलट्ठा  हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

ना फ्रिज में रखी हुई बोतल,मैं मटकी का ठंडा पानी
बस लीक पुरानी पीट रहा ,मैं हूँ इस युग में बेमानी
मेरा एकल परिवार नहीं संयुक्त परिवार चलाता हूँ
मैं गैस न, मिट्टी के चूल्हे पर भोजन नित्य बनाता हूँ
स्वादिष्ट ,फ़ायदेबंद ,गुणी ,मैं ताज़ा ताज़ा मठ्ठा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

देखो दुनिया कितनी बदली ,इंसान चाँद तक पहुँच गया
मैं साथ वक़्त के नहीं चला ,और दकियानूसी वही रहा
ग्रह शांति हेतु पहना करता ,दो चार अंगूठी, रत्न जड़ा
बिल्ली यदि काट जाय रास्ता ,मैं हो जाता हूँ वहीँ खड़ा
नीबू मिरची लटका कर घर ,मैं बुरी नज़र से बचता हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बड़ा आदमी

अगर ठीक से भूख लगती नहीं
लूखी सी रोटी भी पचती  नहीं
समोसे,पकोडे ,अगर तुमने छोड़े ,
तली चीज से हो गयी दुश्मनी हो
न दावत कोई ना मिठाई कोई
जलेबी भी तुमने न खाई कोई
कोई कुछ परोसे, तो मन को मसोसे ,
खाने में करते तुम आनाकनी हो
तो लगता है ऐसा कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

अगर चाय काली ,सुहाने लगे
नमक भी अगर कम हो खाने लगे
जो चाहता दिल ,त्यों जीने के खातिर ,
अगर वक़्त की आपको जो कमी हो
नहीं ठीक से तुम अगर सो सको
जरासी भी मेहनत करो तो थको
लिए बोझ दिल पर ,चलो ट्रेडमिल पर
दवाओं के संग दोस्ती जो जमी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम ,बड़े आदमी हो

रहो काम में जो फंसे इस कदर
घरवालों खातिर समय ना अगर ,
जाते हो हंसने,जो लाफिंग क्लब में
मुस्कान संग हो गयी अनबनी हो
मोबाईल हाथों से छूटे नहीं
मज़ा जिंदगी का जो लुटे नहीं
सपने तुम्हारे ,हुए पूर्ण सारे ,
मगरऔर की भूख अब भी बनी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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