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बुधवार, 15 जुलाई 2020

मिट्टी का गीत

गाँव में एक कच्चा घर था ,
मिटटी में ही बीता बचपन
मिट्टी का घर और दीवारें ,
मिट्टी से लिपा पुता आंगन

मिट्टी चूल्हे बनती रोटी ,
मिट्टी के मटके का पानी
मिट्टी के खेल खिलोने सब ,
गुड्डे गुड़िया ,राजा रानी

मिट्टी से बर्तन मँजते थे ,
मिट्टी से हाथ धुला करते
काली मिट्टी में दही मिला ,
मिट्टी से बाल धुला करते

मिट्टी की काली स्लेटों पर ,
खड़िया और पेमो से लिख कर
हमने गिनती लिखना सीखा ,
सीखे अ ,आ, इ ,ई  अक्षर

मिट्टी में गिरते पड़ते थे ,
मिट्टी में खेला करते थे
हम धूलधूसरित हो जाते ,
कपड़ों को मैला करते थे

लगती जब चोंट ,लगा मिट्टी ,
जो काम दवाई का करती
और बचत हमारी चुपके से ,
मिट्टी की गुल्लक में भरती

मिट्टी की सिगड़ी में दादी ,
सर्दी में तापा करती थी
गर्मी में मिट्टी की सुराही ,
ठंडे पानी से भरती  थी

दीवाली पर  लक्ष्मी गणेश ,
मिट्टी के  पूजे जाते थे
हम अपना घर करने रोशन ,
मिट्टी के  दीप  जलाते थे

हम कलश पूजते मिट्टी का ,
मिट्टी में लगते थे ज्वारे
मिट्टी हंडिया भर रसगुल्ले ,
पापा लाते ,लगते प्यारे

मिट्टी कुल्हड़ में गरम चाय ,
क्या स्वाद और क्या लज्जत थी
माँ कहती मिट्टी खाने की ,
हमको बचपन में आदत थी

मिट्टी का तन ,मिट्टी का मन ,
सारा बचपन मिट्टी मिट्टी
एक दिन मिट्टी में मिलकर हम ,
हो जायेंगे  मिट्टी मिट्टी  

अब कॉन्क्रीट के फ्लैटों में ,
मिट्टी को तरस तरस जाते
वो गाँव ,गाँव की वो मिट्टी ,
सच याद बहुत हमको आते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
टाइमपास

बचपने में गुजरती थी छुट्टियां ,
खेल करके ताश ,लूडो या केरम
बुढ़ापे में वक़्त अपना काटते ,
मोबाईल पर खेल करके गेम हम

घोटू 
प्रणय निवेदन

पाने  को प्यार तुम्हारा
मैंने डाली है  अरजी
अपनाओ या ठुकराओ  
आगे तुम्हारी  मरजी

मैं सीधा ,सादा भोला ,
हूँ एक गाँव का छोरा
सात्विक विचार है मेरे ,
छल और प्रपंच में कोरा

मैं मेहनतकश  बन्दा हूँ ,
और पढ़ालिखा हूँ प्राणी
अच्छे संस्कार भरे है ,
हूँ खालिस हिन्दुस्तानी

जो कहता ,सच कहता हूँ ,
ना बात बनाता फरजी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

स्पष्ट  सोच है मेरी ,
और सादा रहन सहन है
बरसाता प्यार सभी पर ,,
मेरा निर्मल सा मन है  
 
अब समझो बुरा या अच्छा
दुनियादारी में कच्चा
मैं करता नहीं दिखावा ,
हूँ एक आदमी सच्चा

जैसा दिखता हूँ बाहर ,
वैसा ही हूँ  अंदर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी मरजी

ऐसे जीवन साथी की ,
है मुझको बहुत जरूरत
जिसकी अच्छी हो सीरत ,
और बुरी नहीं हो सूरत

जो सीमित साधन में भी
मेरा घरबार चला ले
हो सीधी और घरेलू ,
बस रोटी दाल बनाले

इक दूजे की इच्छा का ,
जो करती हो आदर जी
अपनाओ या ठुकराओ
आगे तुम्हारी मरजी

कंधे से मिला कर कंधा ,
जो मेरा साथ निभाये
मैं उस पर प्रेम लुटाऊं ,
वो मुझ पर प्रेम  लुटाये

हो मिलन प्रवृत्ति वाली ,
घर में सब संग जुड़े वो
हो उच्च विचारों वाली ,
तितली सी नहीं उड़े वो

जिसका तन भी हो सुन्दर ,
और मन भी हो सुन्दर जी
अपनाओ या ठुकराओ ,
आगे तुम्हारी  मरजी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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