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सोमवार, 13 जुलाई 2020

खटास

रिश्तों में आने लगे ,थोड़ी अगर खटास
दूध प्रेम का लाइए ,जरा निवाया ,खास
ज़रा निवाया ख़ास , खटाई उसमें डालो
नया मिलेगा स्वाद ,दही तुम अगर जमालो
मिले हृदय से हृदय ,स्निघ्ता हो मख्खन की
बनी रहे आपस में प्रेम भावना  मन की

घोटू 
लोग कहते मैं गधा हूँ  

प्यार करता हूँ सभी से ,भावनाओं से बंधा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
इस जमाने में किसी को ,किसी की भी ना पड़ी है
हो गए सब  बेमुरव्वत  ,आई  अब  ऐसी  घडी है
जब तलक है कोई मतलब,अपनापन रहता तभी तक
सिद्ध होता स्वार्थ है जब ,छोड़ जाते साथ है सब
मूर्ख मैं ,सुख दुःख में सबके हाथ हूँ अपना बटाता
मुसीबत में किसी की मैं ,मदद करता ,काम आता
इस लिये ही व्यस्त रहता ,फ़िक्र से रहता लदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
रह गया है ,मैं और मेरी मुनिया का ही अब जमाना
बेवकूफी कहते ,मुश्किल में किसी के काम आना
आत्म केंद्रित होगये सब ,कौन किसको पूछता है
जिससे है मतलब निकलता ,जग उसी को पूजता है
मगर  जो  संस्कार मुझमे है   शुरु से  ये  सिखाया
सहायता सबकी  करो ,देखो न ,अपना या पराया
चलन उल्टा जमाने का ,मैं नहीं  फिट  बैठता हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
अगर दी क्षमता प्रभु ने ,और मुझको बल दिया है
जिससे मैंने ,बोझ कोई का अगर हल्का किया है
इससे मुझको ख़ुशी मिलती ,और दुआऐं है बरसती
किन्तु मुझको समझ पागल,दुनिया सारी ,यूं ही हंसती
सोचते सब ,अपनी अपनी ,और की ना सोचते  है
काम मुश्किल में न कोई ,आता, सबको कोसते है
हुआ क्या इंसानियत को ,सोचता रहता सदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
आज के युग में भला रखता कोई सद्भावना है
किसी के प्रति सहानुभूति की नहीं सम्भावना है
सोच सीमित हो गयी है ,भाईचारा लुप्त सा  है
अब परस्पर प्रेम करना ,हो गया कुछ गुप्त सा है
और इस माहौल में ,मैं  बात करता प्यार की  हूँ
एक कुटुंब सा रहे हिलमिल,सोचता  संसार की हूँ
शांति हो हर ओर कायम ,चाह करता  सर्वदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 11 जुलाई 2020

कौन कहता तुम पुरानी

नहा धो श्रृंगार करके
और थोड़ा सजसंवर के
भरी लगती ताजगी से
एक नूतन जिंदगी से
प्यार खुशबू से महकती
पंछियों जैसा चहकती
वही प्यारी सी सुहानी
कौन कहता तुम पुरानी

वो ही सुंदरता ,सुगढ़ता
प्यार आँखों से उमड़ता
प्रेम वो ही ,वो ही चाहत
वो ही पहली मुस्कराहट
राग वो ही साज वो  ही
प्यार का अंदाज वो ही
हो गयी थोड़ी सयानी
कौन कहता तुम पुरानी

नाज वो ही वो ही नखरे
और कातिल वो ही नज़रें
वो ही चंचलता ,चपलता
सादगी वो ही सरलता
वो ही मस्तानी अदायें
आज भी मुझको रिझायें
प्रेम करती हो दीवानी
कौन कहता तुम पुरानी

वो ही शरमाना ,सताना
रूठ जाना और मनाना
वो ही पहले सी नज़ाकत
शोखियाँ वो ही शरारत
हंसी वो ही खिलखिलाती
आज भी बिजली गिराती
तुम हो मेरी राज रानी
कौन कहता तुम पुरानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जिंदगी

उमर बढ़ती है
जिंदगी घटती है
चाहत बढ़ती है
संतुष्टि घटती है
दौलत बढ़ती है
शांति घटती है
हवस बढ़ती है
हंसी घटती है
और की चाह
करती है तबाह
मौत का दिन तय है
तो काहे का भय है
जब तक जियो
हंस कर जियो

घोटू 
आज मन बदमाश सा है

आज मन बदमाश सा है  
करेगा हरकत ये कोई ,हो रहा अहसास सा है
आज मन बदमाश सा है

न जाने क्यों ,आज अंदर ,सुगबुगाहट हो रही है
कुछ न कुछ करने की मन में ,कुलबुलाहट हो रही है
जागृत  सी हो रही है  ,वही फिर  आदत  पुरानी
कोई आ जाये  नज़र में ,करें  उससे  छेड़खानी
उठ रहा  शैतानियों का ,ज्वार मन में ख़ास सा है
आज मन बदमाश सा है

बहुत विचलित हो रहा,उतावला   और  बेसबर है
आज  मौसम है रूमानी ,क्या उसी का ये असर है
चाहता मिल जाये कोई , बना  कर कोई बहाना
शरारत  करने को आतुर ,हो रहा है ये दीवाना
डोलता ,कर मटरगश्ती ,कर रहा तलाश सा है
आज मन बदमाश सा है

देख सब दुनिया रही है ,डर इसे पर नहीं किंचित
लाख कोशिश कर रहा मैं ,पर न हो पाता नियंत्रित
गुल खिलायेगा कोई  ये ,ढूंढ बस मौका रहा है
आज यह व्यवहार उसका ,खुद मुझे चौंका रहा है
शराफत पर लग रहा ,जैसे ग्रहण  खग्रास सा है
आज मन बदमाश सा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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