लोग कहते मैं गधा हूँ
प्यार करता हूँ सभी से ,भावनाओं से बंधा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
इस जमाने में किसी को ,किसी की भी ना पड़ी है
हो गए सब बेमुरव्वत ,आई अब ऐसी घडी है
जब तलक है कोई मतलब,अपनापन रहता तभी तक
सिद्ध होता स्वार्थ है जब ,छोड़ जाते साथ है सब
मूर्ख मैं ,सुख दुःख में सबके हाथ हूँ अपना बटाता
मुसीबत में किसी की मैं ,मदद करता ,काम आता
इस लिये ही व्यस्त रहता ,फ़िक्र से रहता लदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
रह गया है ,मैं और मेरी मुनिया का ही अब जमाना
बेवकूफी कहते ,मुश्किल में किसी के काम आना
आत्म केंद्रित होगये सब ,कौन किसको पूछता है
जिससे है मतलब निकलता ,जग उसी को पूजता है
मगर जो संस्कार मुझमे है शुरु से ये सिखाया
सहायता सबकी करो ,देखो न ,अपना या पराया
चलन उल्टा जमाने का ,मैं नहीं फिट बैठता हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
अगर दी क्षमता प्रभु ने ,और मुझको बल दिया है
जिससे मैंने ,बोझ कोई का अगर हल्का किया है
इससे मुझको ख़ुशी मिलती ,और दुआऐं है बरसती
किन्तु मुझको समझ पागल,दुनिया सारी ,यूं ही हंसती
सोचते सब ,अपनी अपनी ,और की ना सोचते है
काम मुश्किल में न कोई ,आता, सबको कोसते है
हुआ क्या इंसानियत को ,सोचता रहता सदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
आज के युग में भला रखता कोई सद्भावना है
किसी के प्रति सहानुभूति की नहीं सम्भावना है
सोच सीमित हो गयी है ,भाईचारा लुप्त सा है
अब परस्पर प्रेम करना ,हो गया कुछ गुप्त सा है
और इस माहौल में ,मैं बात करता प्यार की हूँ
एक कुटुंब सा रहे हिलमिल,सोचता संसार की हूँ
शांति हो हर ओर कायम ,चाह करता सर्वदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '