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सोमवार, 25 मई 2020

पत्तल उठाते रह गये

सपन मन में मिलन के सब  कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते  रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये
 कोई मंदिर में घुसा ,परशाद  सारा ले गया ,
और हम भक्ति भरे  ,घंटी बजाते रह गये
पेंच डाला कोई ने और हमारी काटी पतंग ,
बचाने को मांजा हम ,गिररी घुमाते रह गये
हमने रखवाली करी थी फसल की जी जान से
काट ली कोई ने ,हम भूसा उठाते  रह गये
मेहमां बन,लोग आये ,जीम कर सब,घर गये,
और भूखे पेट हम  ,पत्तल उठाते रह गये  

घोटू 
ऑरेंज कॉउंटी -समाचार

गर्मी के दिन सुहाने , नहीं सकेंगे भूल
रहता जब लबालब ,अपना स्वीमिंगपूल
अपना स्वीमिंग पूल ,लगाते थे हम गोते
दिन भर रहते चुस्त, वजन में भी कम होते
कोरोना डर 'घोटू'  घुस कर रहते घर में
बस अब तैरा करते ,सपनो के सागर  में

घोटू 

रविवार, 24 मई 2020

मुक्तक

सपन मन में मिलन के सब  कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते  रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये

घोटू 
बस चला यूं ही किये

याद में तेरी हम दिल को ,बस जला ,यूं ही किये
दाल अपनी गल न पायी ,बस गला यूं ही किये
लोग चखते रहे सब ,हमको मिला ना एक भी ,
प्यार से ,प्यारे पकोड़े ,हम तलां यूं ही किये
पता था कि मंजिले मक़सूद पाना है कठिन ,
प्रेम की टेढ़ी डगर पर ,हम चलां यूं ही किये
जानते अच्छी तरह से ,तुम पराया माल हो ,
मिल ही जाओ भाग्य से ,मन को छलां यूं ही किये
हमने शबरी की तरह चख ,मीठे फल तुमको दिये ,
जूंठे फल क्यों दिये हमको तुम गिला यूं ही किये  
चाहते थे आम मीठे , करेले की बेल पर ,
हो गये मायूस ,हाथों को मला यूं ही किये

घोटू 
मुश्किल से ही होती है

उमड़े यौवन की रखवाली ,मुश्किल से ही होती है
झुकी हुई नज़रें मतवाली ,मुश्किल से ही होती है
जिसके मन में ,सदा अँधेरा ,मावस का पसरा रहता ,
उसमें खुशियों की दीवाली ,मुश्किल से ही होती है
जहाँ महकते फूल प्यार के ,और कलियाँ मुस्काती हो ,
बहुत सुरक्षित ,वो फुलवारी ,मुश्किल से ही होती है
फटे हाल पर बजा बांसुरी सदा चैन की ,खुश रहती ,
ऐसी सुखी ,शाही कंगाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे साज औ' साजिंदे हो ,और सुरीले गायक हो ,
बजे न ताली ,तो कव्वाली ,मुश्किल से ही होती है
लाख लाद दो गहनों से और ,ढेरों साड़ी दिलवा दो,
लेकिन मेहरबान घरवाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे दिन के इन्तजार में हमने बरसों बिता दिये
सुस्त सभी, 'घोटू ' खुशहाली ,मुश्किल से ही होती है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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