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रविवार, 24 मई 2020

कोरोना की देन

क्या बतायें ,कोरोना ने ,हमको है क्या क्या दिया
मुंह पे पट्टी बाँध कर के ,बोलना  सिखला दिया
अपनों से भी ,बना कर के ,रखो दो गज दूरियां ,
पाठ हमको  मोहब्बत का, इस तरह उल्टा दिया
सैर अक्सर विदेशों की ,करते थे गर्मी में हम ,
लॉकडाउन करके घर के अंदर ही बिठला दिया
मेहरियों को घर में घुसने पर लगा प्रतिबंध जब ,
झाड़ू पोंछा ,रोटियां भी बेलना सिखला दिया
रामायण और महाभारत के पुराने सीरियल  ,
दिखला त्रेता और द्वापर युग हमें पहुंचा दिया
साठ दिन,चौबीसों घंटे मियां बीबी संग रहे ,
किस तरह ,एक दूसरे को,झेलना सिखला दिया  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


वाइरस
 १
मुक्तक
---------
मैं रसिक हृदय ,बचपन से ही ,शौक़ीन बहुत हूँ अमरस का
जब हुआ युवा ,तो नज़रों से ,करता था पान रूप रस का
लग गया प्रेम रस का चस्का ,पाया जब स्वाद अधर रस का
सारा रस प्रेम नदारद अब  ,डर कोरोना के वाइरस का

सवैया
------
बचपन से अब तक ,आम चूसे छक छक ,
अमरस को स्वाद अब भी ,मेरे मन भाये है  
जवानी में रूप रस को पान को लग्यो चस्को
रसवन्ती कन्यायें जब ,रूपरस लुटाये है
स्वाद अधर रस को चख ,प्रेमरस डूब गयो ,
रसिक हृदय ,रस प्रेमी ,'घोटू ' कहलाये है
एक रस एसो  आयो ,सारे रस  भुलवायो ,
कोरोना के वाइरस से ,सब ही घबराये है

गुणी पाठकों ,,
भाव वही ,शब्द वही पर अलग अलग छंदों में
लिखा है -एक मुक्तक है दूसरा सवैया है -
आपको कौनसा अच्छा लगा ,कृपया प्रतिक्रिया दें
धन्यवाद
आपका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

शनिवार, 23 मई 2020

आम और जिंदगी -चार दोहे

मैंने चूँसा आम रस  ,तुमने किया हलाल
तुमने टुकड़े खाये, मैं ,रस पी हुआ निहाल

अलग तरीके खान के ,फल है वो ही एक
तुम गूदा टुकड़े करो , देते गुठली फेंक
३  
दबादबा,कर पिलपिला ,मैं पीयूँ रस  घूँट
चूंस गुठलियां, ले रहा  ,दूना आनंद  लूट

ये जीवन है ,आम सा  ,चूंसो ,मज़ा उठाव
यूं न काट,टुकड़े करो,कांटे,चुभा न  खाव

घोटू 

शुक्रवार, 22 मई 2020

हम प्यार जताना भूल गये

इस कोरोना के कारण तुम ,
हमको तरसाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये  ,

जब दिन भर रहते जुदा जुदा
संध्या तक बढ़ती मिलन क्षुधा
अब इतने दिन लॉकडाउन में ,
हम पास पास  ही रहे  सदा
बच्चों से नज़र बचा करके ,
चुंबन को चुराना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये

चाहे कितने ही  रखो छुपा ,
तुम मास्क बाँध ,रस भरे अधर  
सोफे पर चिपके बैठे हम ,
संग देखे टी वी गढ़ा नज़र
तिरछी नज़रों के तीर चला ,
तुम भी तड़फाना भूल गए
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये

मीठे संग रह ,हलवाई की ,
मिट जाती है मीठे की तलब
ना लगती ज्यादा मिलन प्यास ,
चौबिस घंटे तुम पास हो जब
रह काम काज में व्यस्त सदा ,
तुम सजना सजाना भूल गये
 हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये    

दीवानापन था विवाह पूर्व ,
अपनापन शादी बाद हुआ
बन गया एक दिनचर्या सा ,
जब मिलन,सुलभ दिनरात हुआ
तुम भी शरमाना भूल गये ,
हमको ललचाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतना ,
हम प्यार जताना भूल गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हम प्यार जताना भूल गये

जब दिन भर रहते जुदा जुदा
संध्या तक बढ़ती मिलान क्षुधा
अब इतने दिन लॉक डाउन में ,
हम पास पास  ही रहे  सदा
बच्चों से नज़र बचा करके ,
चुंबन को चुराना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये

चाहे कितने ही  रखो छुपा ,
तुम मास्क बाँध ,रस भरे अधर  
सोफे पर चिपके बैठे हम ,
संग देखे टी वी गढ़ा नज़र
तिरछी नज़रों के तीर चला ,
तुम भी तड़फाना भूल गए
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये

मीठे संग रह ,हलवाई की ,
मिट जाती है मीठे की तलब
ना लगती ज्यादा मिलन प्यास ,
चौबिस घंटे तुम पास हो जब
रह काम काज में व्यस्त सदा ,
तुम सजना सजाना भूल गये
 हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये    

दीवानापन था विवाह पूर्व ,
अपनापन शादी बाद हुआ
बन गया एक दिनचर्या सा ,
जब मिलन,सुलभ दिनरात हुआ
तुम भी शरमाना भूल गये ,
हमको ललचाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतना ,
हम प्यार जताना भूल गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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